किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार, किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार, किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार, जीना इसी का नाम है..! - शैलेंद्र (1959)
सोमवार, 26 सितंबर 2011
तेरी लाडो मुन्नी मेरी...
दर ओ दीवार कभी बनते हैं घरों से सजते हैं,
रहा करे सुपुर्द ए खाक़ मेरी बसुली, कन्नी मेरी।
दरिया ए दौलत में उसे सूकूं के पानी की तलाश,
तर बतर करती बूंद ए ओस सी चवन्नी मेरी।
तू सही है गलत मैं भी नहीं ना कोई झगड़ा है,
वो आसमां उक़ूबत का ये घर की धन्नी मेरी।
मेरी गुलाटियों औ मसखरी को मजबूरी न समझ,
उछाल रुपये सा न मार ग़म की अठन्नी मेरी।
रगों में इसकी खून मेरा तो हो दूध तेरा भी,
सर ए दुनिया रहे चमके तेरी लाडो मुन्नी मेरी।
© पंकज शुक्ल। 2011।
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waaaaaaaaaaaaaah apratim kavita ..
जवाब देंहटाएं:) वैसे तो तारीफ हर किसी की मुस्कुराहट देती है, पर तारीफ जौहरी करे तो थोड़ा इतराने हीरा भी लगता है। धन्यवाद डॉक्टर साहिबा।
जवाब देंहटाएंपंकज सर,
जवाब देंहटाएंबहुत खूब लिखा है आपने.
बहुत बहुत शुक्रिया ब्रजमोहन भाई..
जवाब देंहटाएंआभार वंदना जी आपकी हौसला अफजाई का। तेताला का ख़ासतौर से धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंदरिया ए दौलत में उसे सूकूं के पानी की तलाश,
जवाब देंहटाएंतर बतर करती बूंद ए ओस सी चवन्नी मेरी।
bahut khoobsoorat panktiyan hai sir.adbhud.
बहुत गहन भाव लिए सुन्दर गज़ल ...
जवाब देंहटाएंLAJAWAB...NAYE KAAFIYON NE RANG JAMA DIYA...BADHAI SWIIKAREN
जवाब देंहटाएंसदा जी..बहुत बहुत शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंहेमंत मिश्रा - धन्यवाद मिश्रा जी। आपके संदेश मिलते रहते हैं। जल्दी ही आपसे बात करता हूं। ईश्वर आपको स्वस्थ, सानंद व सदमार्ग पर रखे।
जवाब देंहटाएंसंगीत जी- शुक्रिया, अरसे बाद आपकी दाद मिली। बहुत अच्छा लगा। :)
जवाब देंहटाएंनीरज गोस्वामी- आपकी कसौटी पर खरा निकला तो चमकना सुफल रहा नीरज जी। काफिया, रदीफ़ और बहर का ज्यादा ज्ञान तो नहीं है लेकिन कोशिश जारी है।
जवाब देंहटाएंमेरी गुलाटियों औ मसखरी को मजबूरी न समझ,
जवाब देंहटाएंउछाल रुपये सा न मार ग़म की अठन्नी मेरी।
बहुत जबरदस्त प्रस्तुति. बधाई.
धन्यवाद रचना जी। आपकी तारीफ मेरा हौसला बढ़ाती है।
जवाब देंहटाएंदरिया ए दौलत में उसे सूकूं के पानी की तलाश,
जवाब देंहटाएंतर बतर करती बूंद ए ओस सी चवन्नी मेरी।
bahut khub shukla ji wakai dilko chhugai apki ye pankati