किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार, किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार, किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार, जीना इसी का नाम है..! - शैलेंद्र (1959)
रविवार, 25 सितंबर 2011
ज़िक्र इक शाम का...
ज़िक्र इक शाम का यूं कर आया,
सरे राह ख्वाबों का सफर उग आया,
वो नहीं ना उनकी बेचैनी सा आलम है,
मेरी आंखों में ये आब है किसका साया।
वो गुमज़ुबां सी बोली, उसने आंखों से सुना,
थिरकते पांव की खुरचन को सिरहाने पे बुना,
खिंची थी मेड़ सी, अब मिलने का मातम है,
तेरी हंसी तेरी मुस्कान से क्यूं फिर शरमाया
मेरी आंखों में ये आब है किसका साया,
ज़िक्र इक शाम का यूं कर आया,
सरे राह ख्वाबों का सफर उग आया।
कभी थी ताप अब छांव रुई के फाहे सी,
कसम दी कोसों की अब दिल में चाहे सी
कहीं ना दूर गया वो, उसी का आदम है,
ख़री बात पे टिक के वो कब का भर पाया,
मेरी आंखों में ये आब है किसका साया,
ज़िक्र इक शाम का यूं कर आया,
सरे राह ख्वाबों का सफर उग आया।
© पंकज शुक्ल। 2011।
Pic Courtesy: Nokia । Vfx: Sound N Clips।
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bahut hi sunder sir....
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मित्र..
जवाब देंहटाएंएक बार फिर आपके शब्द कौशल ने मन्त्र मुग्ध कर दिया...नमन है आपकी लेखनी को...अद्भुत
जवाब देंहटाएंनीरज
नीरज गोस्वामी- तहे दिल से शुक्रिया नीरज जी। मेरा की बोर्ड भी आपको नमन कर रहा है। :)
जवाब देंहटाएंकभी थी ताप ब छांव रुई के फाहे सी,
जवाब देंहटाएंकसम दी कोसों की अब दिल में चाहे सी
कहीं ना दूर गया वो, उसी का आदम है,
ख़री बात पे टिक के वो कब का भर पाया,
मेरी आंखों में ये आब है किसका साया,
ज़िक्र इक शाम का यूं कर आया,
सरे राह ख्वाबों का सफर उग आया।
बहुत ही खूबसूरत। अंदाज-ए-बयां का क्या कहना। आप शब्दों से ऐसे खेलते हो कि शब्दों की माला बन जाती है और उनके अर्थ इस तरह हो जाते हैं कि जैसे हर एक उसका पात्र हो। यही तो सर्वश्रेष्ठ लेखक/कवि की पहचान है जो सीधे दिल में उतर जाती है। एक बार फिर से शुक्रिया।
शुक्रिया हरेश।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत :)
जवाब देंहटाएंशुक्रिया महुवा..
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