गुरुवार, 16 अक्तूबर 2014

मौके का दौर तुम, फिर भी मोहब्बत तुमसे...

-पंशु-

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ना खत, ना खयाल फिर भी मोहब्बत तुमसे,
तुम्ही से हर गिला फिर भी मोहब्बत तुमसे।

तेरी ये ज़िद मेरा दीवानापन औ पगलाना,
ये रहे ना रहे, रहे फिर भी मोहब्बत तुमसे।

ना हुई सहर ना ही सूरज का सलाम आया,
तेरी बेरुखी बेलौस फिर भी मोहब्बत तुमसे।

बस इक रात ही तो संग तुम्हारे बीती थी,
तारों के साथ तुम फिर भी मोहब्बत तुमसे।

ये हवा, ये रोशनी, चमन की खुशबुएं सारी,
मौके का दौर तुम, फिर भी मोहब्बत तुमसे।

© पंशु। 16102014

सोमवार, 13 अक्तूबर 2014

फिर करेंगे यार मेेरे तुझसे, मेरे गम की बातें.

-पंशु-

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​दरो दीवार से क्या पूछो मेरे दम की बातें,
मेेरे उस यार से पूछो मेरे गम की बातें.

वो मिरा यार सहर में मुझे बहलाता है,
तुम हो कि शाम से पूछो मेरे गम की बातें.

इक ​​तेरे दोस्त से बस की शिकायत थोड़ी सी,
​अब​ ना कहना ना मालूम मेरे गम की बातें.

ये बातें वो बातें बची गुजरी सारी बातें,
जगरातें सोै रातें करतीं मेरे गम की बातें.

लौट आओ ना, बसते तो नहीं लगते हो,
फिर करेंगे यार मेेरे तुझसे, मेरे गम की बातें.

© पंशु। 13102014

गुरुवार, 9 अक्तूबर 2014

बहुत, शुक्रिया !


-पंशु

हां,
मुझे चोट लगी,
थपेड़ लगी,
तुमने टोका,
मुझे बुरा लगा,

तुमने मुझे,
यहां घिसा,
वहां घिसा,
इधर रगड़ा,
उधऱ रगड़ा,

तुमने देखा भी नहीं,
मैं कितना रिसा,
मैं कितना छटपटाया,
मैं अंदर अंदर ही रोया,

लेकिन, मैं चढ़ा
रहा, कसौटी पर,
तुम घिसते रहे,
मैं पिसता रहा।

घिसने से डरता,
पिसने से भागता,
तो बना रहता,
वही खान से निकला
स्याह काला पत्थर,

पर, आज मैं,
शुक्रगुजार हूं
एहसान मंद हूं
उन थपेड़ों का,
उन चपेटों का,

क्योंकि
आज मै हीरा हूं।

-पंशु। 09102014

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