गुरुवार, 16 अक्तूबर 2014

मौके का दौर तुम, फिर भी मोहब्बत तुमसे...

-पंशु-

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ना खत, ना खयाल फिर भी मोहब्बत तुमसे,
तुम्ही से हर गिला फिर भी मोहब्बत तुमसे।

तेरी ये ज़िद मेरा दीवानापन औ पगलाना,
ये रहे ना रहे, रहे फिर भी मोहब्बत तुमसे।

ना हुई सहर ना ही सूरज का सलाम आया,
तेरी बेरुखी बेलौस फिर भी मोहब्बत तुमसे।

बस इक रात ही तो संग तुम्हारे बीती थी,
तारों के साथ तुम फिर भी मोहब्बत तुमसे।

ये हवा, ये रोशनी, चमन की खुशबुएं सारी,
मौके का दौर तुम, फिर भी मोहब्बत तुमसे।

© पंशु। 16102014

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