-पंशु
हां,
मुझे चोट लगी,
थपेड़ लगी,
तुमने टोका,
मुझे बुरा लगा,
तुमने मुझे,
यहां घिसा,
वहां घिसा,
इधर रगड़ा,
उधऱ रगड़ा,
तुमने देखा भी नहीं,
मैं कितना रिसा,
मैं कितना छटपटाया,
मैं अंदर अंदर ही रोया,
लेकिन, मैं चढ़ा
रहा, कसौटी पर,
तुम घिसते रहे,
मैं पिसता रहा।
घिसने से डरता,
पिसने से भागता,
तो बना रहता,
वही खान से निकला
स्याह काला पत्थर,
पर, आज मैं,
शुक्रगुजार हूं
एहसान मंद हूं
उन थपेड़ों का,
उन चपेटों का,
क्योंकि
आज मै हीरा हूं।
-पंशु। 09102014
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