पंशु। 25092014
ये जो सूतों के
धागों में बंधी हैं,
तेरी खुशबुएं
मेरे ख्वाबों में बसी हैं।
इन लिहाफों में,
इन किताबों में,
इन हवाओं में,
इन फिज़ाओं में,
जागता हूं, सोचता हूं,
फिर सहमकर सिमटता हूं,
तेरी खुशबुएं,
मेरी सांसों में बसी हैं।
तेरी खुशबुएं
मेरे ख्वाबों में बसी हैं।
ये जो सूतों के
धागों में बंधी हैं,
तेरी खुशबुएं
मेरे ख्वाबों में बसी हैं।
जब सिमट कर तू
आए पनाहों में,
गेसू तेरे यूं
बिखरे हैं शानों पे,
सूंघता हूं, ढ़ूंढता हूं,
फिर पलट कर खोजता हूं,
तेरी खुशबुएं
मेरी रग रग में बसी हैं।
तेरी खुशबुएं
मेरे ख्वाबों में बसी हैं।
ये जो सूतों के
धागों में बंधी हैं,
तेरी खुशबुएं
मेरे ख्वाबों में बसी हैं।
Text © Pankaj Shukla । 2014
(Pic not used for any commercial purpose)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें