रविवार, 21 सितंबर 2014

तुम कब आओगे?


-पं.शु.

तुम आओगे,
यही सोच के तो,
चौखट जागी है।

तुम आओगे,
यही सोच के तो,
चूल्हे की आग बाकी है।

तुम आओगे,
यही सोच के तो,
बाली उतारी है।

तुम आओगे,
यही सोच के तो,
हर रात भारी है।

तुम आओगे ना?

तुम कब आओगे,
के जब रात सहर
हो रही होगी?

तुम कब आओगे,
के जब आंख तर
रो रही होगी?

तुम कब आओगे,
के जब बिरहन रीत
बो रही होगी?

तुम कब आओगे,
के जब माहुर प्रीत
खो रही होगी?

तुम नहीं आओगे ना?


21092014 ।


Text © Pankaj Shukla । 2014
(Pic not used for any commercial purpose)

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