
वो जो हलचल है तेरे दिल में मेरी हरक़त है,
मेरी जुंबिश ही तेरे हुस्न की ये बरक़त है।
मेरी गुस्ताख़ नज़र ने तुझे फिर से देखा,
तू कुछ औऱ खिली, और रंगीं शफ़क़त है।
गुम हूं पास तेरे तू ही ढूंढती मुझको,
मेरे सीने में छिपी क्या ये तेरी हसरत है।
तेरे करीब हूं, फिर भी जुदा सी तू मुझसे,
मेरी तदबीर से संवरी ये किसकी किस्मत है।
तेरा ये गोरा रंग, फितरत मेरी ये काली सी,
ना तू मंदिर में रहे फिर भी मेरी इबादत है। (पं.शु.)
पेंटिंग सौजन्य- संगीता रोशनी बाबानी