संकट में इतिहास ही सच्चा गाइड है...
हम जो हैं, हम जिस तरह के हैं और हम क्यों हैं, यही इतिहास है...
इतिहास के पन्नों से ही एक और पहेली। क्या आप जानते हैं कि वो कौन सा कांग्रेसी नेता है जिसने अमृतसर रेलवे स्टेशन पर अलग अलग घड़ों से हिंदुओं और मुसलमानों को पानी पिलाते देख अपना सफर वहीं रोक दिया और खुद खड़े होकर वे घड़े तुड़वाए? नहीं, ये महात्मा गांधी नहीं थे।
एक छोटा सा सवाल और। वो कौन सी शख्सीयत थी जिसने पहले पंडित मोती लाल नेहरू और फिर पंडित जवाहर लाल नेहरू के निजी सचिव के तौर पर काम किया?
आपका स्कोर क्या रहा? तीन में से दो या फिर तीन में से एक, या फिर.... J
अगर आप को इनमें से एक का भी जवाब पता है तो फिर आप बधाई के हक़दार हैं क्योंकि हिंदुस्तान की आज की नौजवान आबादी को तो इनमें से एक का भी जवाब ना तो पता है और ना ही किसी ने इन्हें ये बताने की कोशिश ही की। ये सब देश के महान स्वतंत्रता सेनानी थे और ये सब मुसलमान थे।
लेकिन...
लेकिन, क्या इनके बलिदानों और समर्पण को आधुनिक भारत में कोई पहचान मिली? क्या हमने ऐसा कुछ किया जो ना सिर्फ इनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि हो, बल्कि देश की गंगा जमुनी तहज़ीब की सही तस्वीर पेश कर सके।
ग्लोबल न्यूज़ नेटवर्क की प्रस्तुति ताकि सनद रहे..., इन्हीं सवालों का जवाब है।
ताकि सनद रहे, अलग अलग डॉक्यूमेंट्रीज़ की एक ऐसी सीरीज़ है जिसमें देश की आज़ादी में हिस्सा लेने वाली चंद मशहूर और कुछ अनजान सी रह गईं मुस्लिम शख्सीयतों को आज की पीढ़ी के सामने दिलचस्प और रोचक अंदाज़ में पेश किया जाएगा।
इनमें से किसी ने मशहूर ग़ज़ल “चुपके चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है..” लिखी तो कोई आगे चलकर बना युवक कांग्रेस का संस्थापक। ये वो लोग हैं जिन्होंने अपने पेशे और अपनी अच्छी खासी गृहस्थी को आग लगा दी सिर्फ इसलिए कि देश में आज़ादी का दीया जल सके। ये वो लोग हैं जिनसे हर हिंदुस्तानी और ख़ासकर अल्पसंख्यकों ने तिरंगे की आन बान और शान बढ़ाने की प्रेरणा ली और आज भी ले रहे हैं।
ताकि सनद रहे, एक उम्मीद है उन हज़ारों लाखों लोगों की, जिनको लगता है कि अल्पसंख्यक नेताओं की तरफ भारतीय मीडिया ने कभी ख़ास तवज्जो नहीं दी।
ताकि सनद रहे, ये बताने के लिए है कि “जो इतिहास को भूल जाते हैं, भविष्य उनको भूल जाता है।”
isi muslim prem ne desh ke hinduon ko doyam darje ka banakar rakh diya. jo itihas se sabak nahi lete itihas unhe sabak lene layak nahi chhodta aur hinduon ne yahi kiya hai.
जवाब देंहटाएंAApko dher sari badhayi.........kis liye??aap bhi vaise hi kadiya jod lijiye jaise humne jodi hai...pata chala tha ki kuch din pahle aap Lucknow,Unnao aur kanpur me hai......
जवाब देंहटाएंRegards
Punit
Bhai saab... a very informative article.. I always thought that this particular ghazal "sarfaroshi ki tamanna.." was written by Pandit Rm Prasad Bismil... and knowing you for past so many years I am sure that you can not make information public untill unless you have done a full research on it and you are 110% sure about it... (The Gandhi-Vadhera story is an example)....
जवाब देंहटाएंKeep putting such nice, informative and interesting things on your blog...
Also.. Congratulations for being invited at several international film festivals.. Someday I would like to watch all the films you have made...
Good luck for future projects...
Regards - AMIT