जैसा कि अक्सर होता है कि इतिहास के अनछुए और अनदेखे पहलुओं को आज की रौशनी में देखने की कोशिशों पर सवाल उठ ही जाते हैं। आज़ादी के सिपहसालार हसरत मोहानी के बारे में जो दो कड़ियां मैंने पिछले दिनों लिखीं, उनका संपादित स्वरूप अख़बार "नई दुनिया" ने शनिवार के संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित किया है। इस लेख को ज़ाहिर है देश के तमाम प्रदेशों में पढ़ा गया और इस पर एक प्रतिक्रिया जनाब शहरोज़ साहब की मुझे मिली हैं। शहरोज़ साहब लिखते हैं -
"लेकिन पढ़कर चकित हुआ कि एक टी वी का पत्रकार जिसे हसरत मोहानी से अतिरिक्त लगाव है और खुद को लेखक उनका अध्येता बता रहा है..लेकिन एक इतनी बड़ी चुक हो गयी.सरफरोशी की तमन्ना..जैसी ग़ज़ल का रचयिता आपने अतिरेक की हद में मौलाना हसरत मुहानी को बतला दिया. जबकि दर हकिअत इसे बिस्मिल अज़ीमाबादी ने लिखा था.अभी कुछ रोज़ पूर्व मैं ने अपने ब्लॉग रचना-संसारपर भी दर्ज किया था।"
अब पता नहीं शहरोज़ साहब को मेरे अतीत में टीवी पत्रकार भी होने के नाते मेरी मेहनत पर शक़ हुआ या मेरी नासमझी का यकीन। उन्होंने आज़ादी के मशहूर तराने "सरफरोशी की तमन्ना ..." का रचयिता हसरत मोहानी को बताए जाने को मेरा अतिरेक ही नहीं बल्कि अतिरेक ही हद मान लिया। ख़ैर, शहरोज़ भाई की भाषा पर मुझे दिक्कत नहीं क्योंकि जो कुछ उन्होंने पढ़ा वो उनकी अपनी खोजबीन पर सवाल लगाता था, सो उनका आपे से बाहर होना लाजिमी है। उनकी टिप्पणी मैंने अपने ब्लॉग पर बिना किसी संपादन के हू ब हू लगा दी है। साथ ही, उनके इस एतराज़ पर अपनी तरफ से जानकारी भी दे दी।
लेकिन, मुझे लगता रहा कि बात को और साफ होना चाहिए और दूसरे लोगों को भी इसमें अपनी अपनी राय देनी चाहिए। हिंदुस्तान बहुत बड़ा देश हैं और आज हम लोगों के पास इतिहास को जानने के अगर कोई तरीके हैं वो या तो अतीत में लिखी गई किताबें या फिर गिनती के जानकारों से बातचीत। हसरत मोहानी पर डॉक्यूमेंट्री बनाने से पहले मैंने और मेरे सहयोगियों ने कोई छह महीने इस बारे में रिसर्च की। इसके लिए हम हर उस जगह गए जहां से हसरत मोहानी का ज़रा सा ताल्लुक था, मसलन फतेहपुर ज़िले का हसवा, जहां हसरत मोहानी सिर्फ मैट्रिक पढ़ने गए थे। नेशनल आर्काइव की ख़ाक छानी गई, जामिया मिलिया यूनीवर्सिटी की लाइब्रेरी खंगाली गई। अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी के अलावा इस बाबत भारत सरकार की तरफ से छपी किताबें भी पढ़ी गईं।
इसी दौरान हम लोगों को एक किताब मिली, जिसे लिखा है उर्दू की मशहूर हस्ती जनाब मुज़फ्फर हनफी साहब ने, जिनके बारे में शहरोज़ साहब का कहना है -
"मुज़फ्फर हनफी साहब से भी चुक हुई.समकालीन सूचनाओं के आधार पर ही उन्होंने लिख मारा.बिना तहकीक़ किये. ढेरों विद्वानों ने ढेरों भूलें की हैं जिसका खमयाज़ा हम जैसे क़लम घिस्सुओं को भुगतना पड़ रहा है."
पहली अप्रैल 1936 को पैदा हुए हनफी साहब की गिनती देश में उर्दू अदब के चंद मशहूर लोगों में होती है। और उनकी क़लम पर शक़ करने की कम से कम मुझमें तो हिम्मत नहीं है। उन्होंने किस्से लिखे, कहानियां लिखीं, शेरो-शायरी भी लिखी। इसके अलावा पुराने ज़माने के लोगों के बारे में उनकी रिसर्च भी काफी लोगों ने पढ़ी। उनकी रिसर्च की भारत सरकार भी कायल रही और तभी नेशनल काउंसिल फॉर प्रमोशन ऑफ उर्दू ने उनके रिसर्च वर्क का अंग्रेजी और दूसरी भाषाओं में अनुवाद भी कराया। हनफी साहब ने हसरत मोहानी पर भी एक किताब तमाम रिसर्च के बाद लिखी, जिसे नेशनल बुक ट्रस्ट ने देश की दूसरी भाषाओं में भी प्रकाशित किया है।
इसी किताब के पेज नंबर 27 पर छठे अध्याय में हनफी साहब एक और मशहूर हस्ती गोपी नाथ अमन के हवाले से लिखते हैं कि आज़ादी के मशहूर तराने "सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाजू ए क़ातिल में है" को अक्सर बिस्मिल से जोड़कर देखा जाता है, दरअसल ये बिस्मिल ने नहीं लिखा बल्कि राष्ट्रीय आंदोलन को ये मोहानी का तोहफा था।
वैसे शहरोज़ साहब की काबिलियत पर भी शक़ की गुंजाइश कम है। कल को उनका रिसर्च वर्क भी इसी तरह शाया हो, ये मेरी दुआ है। क्योंकि विष्णुचंद्र शर्मा जी कहते हैं -
"मुझे लगता है ,शहरोज़ पर बात करने के लिए , सर्वप्रथम उसके समूचे रचनाकर्म पर काम करने की ज़रुरत है ,जैसा कभी भगवतीचरण वर्मा पर नीलाभ ने किया था।" (शहरोज़ जी के ब्लॉग पर उनके ही द्वारा शर्मा जी के हवाला देते हुए लिखा गया अपना परिचय)
शहरोज़ साहब अगर हनफी साहब की रिसर्च को झुठलाना चाहें तो इसके लिए वो आज़ाद हैं। वैसे वो इसके लिए खुदा बख्श लाइब्रेरी में बिस्मिल अज़ीमाबादी की हैडराइटिंग में रखे इस ग़ज़ल के पहले मतन का हवाला देते हैं। वो ये भी कहते हैं कि ये ग़ज़ल चूंकि कोर्स में शामिल है, लिहाजा इस पर विवाद की गुंजाइश नहीं है।
वैसे मुझे भी अपनी रिसर्च के दौरान नेशनल बुक ट्रस्ट ऑफ इंडिया की ही एक और क़िताब "स्वतंत्रता आंदोलन के गीत" पढ़ने को मिली जिसमें इस तराने के साथ राम प्रसाद बिस्मिल का नाम लिखा है। लेकिन, मैं इस बारे में जिस निष्कर्ष पर पहुंचा वो मोहानी साहब के घर वालों से मुलाक़ात और दूसरे इतिहासकारों के नज़रिए से वाकिफ़ होने के बाद ही पहुंचा। फिर भी, मैं चाहूंगा कि इस बात पर और रिसर्च हो क्योंकि फिल्मकार या पत्रकार किसी भी विषय का संपूर्ण अध्येता कम ही होता है। वो तो संवादवाहक है, मॉस कम्यूनिकेशन का एक ज़रिया। शहरोज़ साहब का ये कहना कि मुझे मोहानी साहब से अतिरिक्त लगाव है, भी सिर माथे। मोहानी साहब ने जिस धरती पर जन्म लिया, उसी ज़िले की मेरी भी पैदाइश है। जैसे कि बिस्मिल अज़ीमाबादी और शहरोज़ साहब की पैदाइश एक ही जगह की है।
मोहानी साहब तो ख़ैर एक शुरुआत है, मेरी डॉक्यूमेंट्री सीरीज़ - ताकि सनद रहे - में अभी ऐसे और तमाम नाम शामिल हैं। और, जब नई लीक खींचने की कोशिश होगी, तो संवाद और विवाद तो उठेंगे ही। वैसे, मराठी साहित्य भी "सरफरोशी की तमन्ना.." का रचयिता हसरत मोहानी को ही मानता है।
राम प्रसाद बिस्मिल hai.nice
जवाब देंहटाएंअभी आपको मेल किया ही था कि इस पोस्ट पर नज़र पड़ गयी.
जवाब देंहटाएंमैं बिस्मिल अजीमाबादी के गाँव या शहर का नहीं हूँ हाँ उनके प्रांत का आप कह सकते हैं.
उनकी एक पुत्री का विवाह , मैं मूलत:शेरघाटी के जिस क़ाज़ीमोहल्ले का हूँ, में हुआ है.इस नाते ..उस परिवार से निकटता रही है.
आपको मेरे लहजे से कोई ठेंस पहुंची हो तो खाकसार मुआफी चाहता है.
--खुदा बख्श खान लायब्ररी में सिर्फ एक शेर नहीं है बल्कि पूरी ग़ज़ल और वो भी उनके उस्ताद के संशोधन के साथ सुरक्षित है.
-----और हाँ कोलकोता में कविन्द्र रविन्द्र के पैतृक स्थान जोडासांकी,जाने का मौक़ा मिले तो वहाँ महाजाति सदन की दूसरी और तीसरी मंजिल पर स्वाधीनता संग्राम पर स्थायी रूप से एक वृहद् चित्र-दीर्घा है.वहाँ एक चित्र बिस्मिल अजीमाबादी का भी है.जिसके नीचे दर्ज है 'सरफरोशी की तमन्ना........ के रचयिता'.
----जून १९९८ में ज्ञानपीठ ग्रहण करते समय अली सरदार जाफरी ने भी बिस्मिल का स्मरण किया था.इसी सन्दर्भ में.कि ये ग़ज़ल असल में बिस्मिल अजीमाबादी की है.फ़िज़ूल अब तक भ्रांतियां रही हैं.
-----और हाँ इस सिलसिले में प्रकाशन विभाग से प्रकाशित मासिक आजकल [उर्दू], सितम्बर १९७८ का अंक देख सकते हैं.
साथियो! आप सरफ़रोशी की तमन्ना ....को जानने के लिए क्लिक कीजिये
जवाब देंहटाएंबलिदानी बिस्मिल ने ही।
जवाब देंहटाएंकविता जी, सुमन जी > ज्यादातर लोग इस तराने का रचयिता राम प्रसाद बिस्मिल को ही मानते हैं। लेकिन, जैसा कि मैंने खोजा और पाया और शहरोज़ भाई ने भी खोजा और पाया कि कम से कम राम प्रसाद बिस्मिल की कलम से ये तराना नहीं ही निकला।
जवाब देंहटाएंसरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है ...जैसी रचना के रचनाकार को जानने के लिएक्लिक कीजिये.
जवाब देंहटाएंकविवर शरद कोकास जी! कहाँ हैं? देखिए आप ने पुरातत्त्ववेत्ता पर लिखना क्या बन्द किया, लोग कविताई में पुरातात्विक अनुसन्धान करने लग गए !
जवाब देंहटाएं:)
हमलोग भी इस तराने का रचयिता राम प्रसाद बिस्मिल को ही जानते थे .. जब इतने कम समय में इतनी बडी गलतफहमी हो सकती है .. तो इतने लंबे अवधि के इतिहास पर शायद दावे से कुछ कहा ही नहीं जा सकता !!
जवाब देंहटाएंअब तक तो मैं भी राम प्रसाद बिस्मिल को ही मानता था लेकिन अब आपकी बात गले उतर रही है । विचार पूर्वक और भी पढूंगा तब बात साफ होगी
जवाब देंहटाएंसिविल सेवा के लिए इतिहास विषय के साथ तैयारी करते समय भी ये प्रश्न बहुत से विद्दार्थियों के सामने आया था और जैसा कि पंकज जी ने कहा ..मैं भी इससे पहले हसरत मोहानी का नाम पढ चुका हूं ....मगर नि:संदेह जाना ये बिस्मिल के कारण ही है ...बहरहाल शोध का विषय तो है ही ये
जवाब देंहटाएंअजय कुमार झा
Ho sakta hai Ram Prasad Bismil ne sirf ise ga kar mashhoor kar diya ho..
जवाब देंहटाएंगिरिजेश जी, संगीता जी, अलबेला खत्री जी, अजय भाई और दीपक जी,
जवाब देंहटाएंआप सबका मामले की तह तक पहुंचने का शुक्रिया। ये तराना जिसने भी लिखा, उसके हम सब ऋणी हैं, लेकिन उसे उजागर करने की कोशिशों को अगर किसी संस्था का भी समर्थन मिलना चाहिए। हो सकता है कल को कोई इतिहास का विद्यार्थी आज़ादी के तरानों पर ही रिसर्च करने निकल पड़े। बात निकली है तो सिरे तक पहुंचनी ही चाहिए।
shodh karane valo ko asaliyat pataa rahani chahiye. lekin anjane me hi agar ramprasad bismil ji k khate me bhi yah geet chalaa jata hai to chinta nahi karani chahiye. us shaheed ne hi us geet ko gaakar amar kar diya hai.''bismil'' upnaam ke karan bhram ban rahaa hai.bhavishy mey bhi shayad anaa rahe.khair, shahroz ne badaa kaam kiya, jo sayar bismil ji k avdaan se parichit karaya. ek achchijankari dee. shukl ji aap bhi achchha kaam kar rahe hai. mohani ji par likha aap ka lekh sarthak soochnaye deta hai.
जवाब देंहटाएंइस गीत का रचनाकार कहीं अँधेरे के गर्त में खो जाये इससे ज्यादा खराब बात क्या हो सकती है....आवश्यकता है सही रचनाकार का नाम जानने की....ये सही में एक शोध के लिए चुनौती है
जवाब देंहटाएंvaah daddy!!! Please mera bhi blog itna hi khubsurat banane mein help kardo!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लेख लिखा है... मनोरंजक भी और ज्ञानवर्धक भी... मैं आज तक ये ही समझता था की ये पंक्तियाँ "सरफरोशी की तमन्ना..." पंडित रामप्रसाद बिस्मिल जी की रचित हैं...
जवाब देंहटाएंपिछले लगभग २० वर्षों से आप को जनता हूँ और इस बात का दावा कर सकता हूँ की आप जो भी तथ्य लिखेंगे वो पूरी जानकारी के बाद ही लिखेंगे... .
आशा करता हूँ की आप आगे भी इसी तरह के लेख लिखते रहेंगे..
और हाँ, बधाई आप को.. कई सारे अन्तराष्ट्रीय फिल्म महोत्सवों से आमंत्रण पाने के लिए... कभी आप की सारी फ़िल्में देखूँगा... बहुत समय से तो मिलना भी नहीं हो पाया...
शुभकामनाएं.. भविष्य की योजनाओ के लिए..
आपका - अमित