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रविवार, 16 जनवरी 2011

फिर भूलूं, क्यूं याद करूं..


पं.शु.

मैं तारे भी तोड़ लाता आसमां में जाकर,
तुम ही छिटक के दूसरे का चांद हो गईं।

घनघोर घटाटोप* से मुझको कहां था डर,
तुम ही चमक के दूर की बरसात हो गईं।

रक्खा बचा के ग़म को तेरे नसीब से,
इतनी मिली खुशी के इफ़रात* हो गईं।

गाफिल* गिरेह भी होकर था तो मेरा यकीन,
तुम क़ातिल के हाथ जाकर वजूहात* हो गईं।

उन ख्वाबों, ख्वाहिशों का सिला क्या होगा,
भूला था तुमको, तुम ही मुलाकात हो गईं।


कलाकृति सौजन्य - संगीता रोशनी बाबानी
(समसामयिक भावों पर चित्र बनाने वाली संगीता भारतीय मूल की देश-विदेश में ख्याति प्राप्त चित्रकार हैं। उनकी एकल प्रदर्शनियां मुंबई समेत कई शहरों में लग चुकी हैं।)
*
घटाटोप - काले बादल
इफ़रात- उम्मीद से ज्यादा
गाफिल - बेख़बर
वजूहात - वजह का बहुवचन

बुधवार, 1 दिसंबर 2010

राम..


इसे कायदन मेरी पहली ग़ज़ल कह सकते हैं. रदीफ़, काफ़िया में न उलझलते हुए और बहर आदि की जानकारी न होते हुए भी बस क्रोंच पक्षी से मन के रुदन को शब्दों में पिरो डाला है। कहते हैं पहले भाषा आई, फिर उसे संस्कारित करने के लिए व्याकरण के नियम बने, लिहाजा 'जौ बालक कह तोतरि बाता' जैसी उदारता के साथ ही इसे पढ़ें और अपनी टिप्पणियों से ज़रूर अवगत कराएं। अवध के इलाके में जब तराजू उठाया जाता है तो पहला पलड़ा राम कह कर ही गिना जाता है, तो मेरी इन कोशिशों की शुरुआत भी राम से...।


पंशु

यूं न मौत को बदनाम करो ज़िंदगी के बाद,
अब आंखें किसी के इंतजार में जागती तो नहीं।

नश्तर ने यूं पाया उनके करतब से नया नाम,
गिरेबां में दोस्ती अब अपने ही झांकती तो नहीं।

सुलह थी सब्र की ज़ालिम से नीम रहने की,
रवानगी ये मेरे रगों की मानती तो नहीं।

पुराना कुर्ता है और चमक ये नील टीनोपाल की,
नज़र ये उनकी अब असलियत मेरी ढांकती तो नहीं।

रहा करे दिल में मेरे, मेरे बचपन का फितूर,
मेरे इंतजार में मां अब मेरी जागती तो नहीं।

चित्र सौजन्य - मुक्ता आर्ट्स की फिल्म "नौकाडूबी"

गुरुवार, 25 नवंबर 2010

उसका तमाशा...!!

















गुमनाम न मर जाएं, चलो बदनाम ही सही
ये सोच के ही उसने तमाशा बनाया होगा..।

वो बनके तमाशा सुपुर्द ए खाक हो गए,
मय्यत* के सोगवारों* को मज़ा तो आया होगा..।

उसे गुमान अपने तंज*, अपने तेगे*, अपने नश्तर पर,
किसे पता वो कलमा पढ़ के जिबह* होने आया होगा..।

था उसका ज़ामिन* उसी ने चाक जिगर कर डाला,
किसी फरेब ने उसको भी भरमाया होगा..।

गली, कूंचों में मुझे हर तरफ मोहब्बत ही मिली,
नादान दिल ही मेरा उसको न समझ पाया होगा..।

कहा था मां ने कभी घर से दूर मत जाना,
है छांव सर पे घनी ना उसका सरमाया होगा..।

पं.शु. 

(फोटो कर्टसी- अनुषा जैन)

* मय्यत - शवयात्रा, सोगवार - शोक प्रकट करने वाले, तंज - व्यंग्य, तेगा- खंजर, जिबह - कत्ल, जामिन - जमानत देने वाला।