रे सूरज!
Pic: Pankaj Shukla 25102014 |
रे सूरज!
कैसा तू हठधर्मी है?
रोज समय से उग जाता
है
रोज समय से छिप जाता
है
चाल वही है ढाल वही
है
कहां कहां तू बिछ
जाता है?
रे सूरज!
कैसा तू हठधर्मी है?
नहीं तेरा है ध्यान
मान पे,
ना पंडित के
अर्ध्यदान पे,
मुंह फेरे तू चलता
जाता,
गौर तो कर तू
स्वाभिमान पे?
रे सूरज!
कैसा तू हठधर्मी है?
नीयत तेरी विंध्याचल
सी है
प्रकृति तेरी अस्ताचल
की है
क्यूं लेता तू ये
आराधन?
नियति तेरी छल आंचल
की है!
पंशु 22012016
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