बुधवार, 29 अगस्त 2012

मेरे लिए, एक फूल, हाथों में, तुमने लिया।


पंकज शुक्ल

मेरे लिए,
एक फूल,
हाथों में,
तुमने लिया।

मैं मानता हूं,
तुम मेरे,
मित्र हो,
हितैषी हो,
शुभचिंतक हो।

इस फूल की,
लाज निभाने को,
मैंने कसमें खाईं,
रसमें निभाईं,

पुराने वादे,
तोड़े,
नए रिश्ते जोड़े।

फिर देखा
इस फूल को,

तुम्हारी पलकें,
झुकी ही रहीं,

मुझे दिखा,
उनमें,
स्नेह,
सामीप्य,
और संगम।

मैं निश्चिंत,
आत्ममुग्ध,
मित्रता के मोह में,
ना सोचा,
ना विचारा,
बस आंखें मूंदे,
रहा,
डूबता-उतराता।

और,
फिर आंखें खुलीं,
पलकों पर मिट्टी,
आंखों में अंधेरा,
देह दबी हुई,

सिर के छह हाथ ऊपर,
एक पट्टिका,
मेरे जन्म-मरण की,
मेरे नाम संग,
लगी हुई,

और वो फूल,
हाथों में तुमने लिया,

मेरे लिए,
रखने को मेरी समाधि पर।

हां, मुझे याद है,

मेरे लिए,
एक फूल,
हाथों में,
तुमने लिया...

(29082012)

14 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी पोस्ट 30/8/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें

    चर्चा - 987 :चर्चाकार-दिलबाग विर्क

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  2. वाह.....
    बहुत बहुत खूबसूरत !!!!

    अनु

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  3. रश्मि जी, आभार मेरी रचना को बुलेटिन ऑफ ब्लॉग के जरिए लोगों तक पहुंचाने के लिए।

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  4. शशि जी, आपकी तारीफ मेरा हौसला बढ़ाती है..शुक्रिया

    जवाब देंहटाएं
  5. अनु जी, आपका बहुत बहुत आभार..

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  6. नीलांश जी, धन्यवाद बार बार..

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  7. वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
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