किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार, किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार, किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार, जीना इसी का नाम है..! - शैलेंद्र (1959)
गुरुवार, 19 जुलाई 2012
टाइम हो गया है, पैक अप
"मैंने पहली बार उन्हें एक फिल्म पत्रिका में देखा, शायद फिल्मफेयर थी। उन्होंने फिल्मफेयर-माधुरी प्रतियोगिता जीती थी, वो प्रतियोगिता जिसके लिए आने वाले साल में मैंने भी अप्लाई किया और रिजेक्ट कर दिया गया। उनकी फिल्म आराधना दिल्ली में कनॉट प्लेस के रिवोली थिएटर में हमारी अगली मुलाकात का सबब बनी, जिसे देखने मेरी मां मुझे साथ ले गई थीं। खचाखच भरा सिनेमाहाल और दर्शकों की इस खूबसूरत नौजवां के लिए बजती तालियों को कोई रोक नहीं सकता था।
फिल्मफेयर माधुरी कांटेस्ट में हुआ मेरा प्राथमिक रिजेक्शन मुझे सेटैल्ड जॉब के लिए कलकत्ता ले आया था। मैं घर से दूर आया था ताकि मैं इंडस्ट्री में शामिल होने के कुछ दूसरे रास्ते तलाश सकूं। लेकिन राजेश खन्ना को देखने के बाद मुझे लगा कि ऐसे लोगों के आसपास होते हुए इस नए प्रोफेशन में मेरे लिए शायद ही कोई मौका या चांस हो।
जब सात हिंदुस्तानी के लिए मुझे कॉल आया। मैं मुंबई गया, मुझे रोल मिला और मैंने शूटिंग शुरू कर दी। इन में से एक हिंदुस्तानी यानी अनवर अली से मेरी दोस्ती मुझे उनके मशहूर भाई अनवर के भी करीब ले आई। महमूद भाईजान के इंडस्ट्री में दबदबे और उनकी अपनी पहचान ने मुझे एक बार फिर राजेश खन्ना से उनकी एक शूटिंग के दौरान एक इनफॉर्मल मीटिंग का मौका दिया। हमने बहुत औपचारिक तौर से हाथ मिलाया। उनके लिए ये रोजमर्रा की बात थी, पर मेरे लिए सम्मान की।
जल्द ही मुझे उनके साथ आनंद में काम करने का मौका मिला। ये चमत्कार जैसा था, भगवान का आशीर्वाद और इसने मुझे रिवर्स रेसपेक्ट भी दिलाया। जैसे ही किसी को भी पता चलता कि मैं दि राजेश खन्ना के साथ काम कर रहा हूं, मेरी अहमियत बढ़ जाती। और, मेरी टकटकी बंधी रहती इसे लेकर। शूटिंग से जब छुट्टी मिलती तो दिल्ली लौटता और जिन लोगों से भी मेरी मुलाकात होती, उनसे मैं फिल्म के सीन्स और डॉयलॉग की खूब बातें करता। और, फिल्म के संगीत की भी। तब सीडी नहीं होती थीं, सिर्फ गोल गोल घूमते टेप्स होते थे और और ऋषि दा से ऐसा कोई टेप मिल पाना, बेकार की कोशिश होती। लेकिन, मैं किसी तरह..कहीं दूर जब दिन ढल जाए..पाने में कामयाब रहा। मेरे पुराने टेप रिकॉर्डर पर ये गाना लगातार बजता रहता।
वह बहुत ही साधारण और शांत थे। उनका खासमखास कबीर स्टीयरिंग के पीछे होता, और वह अपनी हेराल्ड की फ्रंट सीट पर होते। उनसे मिलने वालों की तादाद खासी होती थी और वे लोग हमेशा उन्हें घेरे रहते, ताज्जुब होता कि ऋषि दा इसकी इजाज़त भी देते थे। उन्हें लेकर लोगों में जो क्रेज था, उसे देखकर हैरत होती थी। सत्तर के दशक में उनके प्रशंसक स्पेन से उनसे मिलने आते थे, तब ऐसी बातें अनसुनी ही होती थीं। अपने ट्रेड मार्क राजेश खन्ना कुर्ता पायजामा में वह हमेशा किसी घरेलू लड़के जैसे दिखते, ऐसी कि हर लड़की जिसे अपनी मां से मिलवाना चाहे। लेकिन, इस सबके बीच भी उनका अपना आकर्षण अलग था। उस लड़कपन की सादगी में भी कुछ था ऐसा जो उनके अंदाज को रईसाना बना देता था। ये वो चुंबक था जिसके चलते लोग उनकी तरफ आकर्षित होते थे।
मैं आशीर्वाद सिर्फ एक बार गया उन दिनों जब हम साथ काम कर रहे थे। मैं उन्हें बर्थडे विश करने गया था और एक दिन पहले आ गया था। ये उनकी दरियादिली थी कि उन्होंने मेरी असहज हालत को समझा और मुझे रुकने को कहा। थोड़ी देर बाद वो मुझे शक्ति सामंत के यहां डिनर के लिए ले गए, जिन्होंने उनके साथ आराधना औऱ तमाम दूसरी फिल्में बनाईं और मुझे लेकर ग्रेट गैम्बलर औऱ बरसात की एक रात बनाई। अगले दिन वो फिर मेरे मेजबान थे। बरसों बाद उन्होंने मुझे अपने प्रोडक्शन हाउस की एक फिल्म में काम करने के लिए अपने दफ्तर बुलाया, पर बात बन नहीं सकी। उनसे मेरी पिछली मुलाकात आईफा के मंच पर हुई, जहां उन्हें लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड देने की जिम्मेदारी मुझे सौंपी गई। उस दिन उन्होंने जो कहा, वो आज तक मेरे कानो में गूंजता है।
ऋषि दा की फेवरेट लोकेशन मोहन स्टूडियो जो कि अब एक कंक्रीट की हाउसिंग कॉलोनी में तब्दील हो चुका है, में जब आनंद की शूटिंग शुरू हुई तो सबसे ज्यादा परेशानी मुझे उस लास्ट सीन को लेकर हो रही थी, जिसमें उन्हें मरना था और मुझे रोते हुए उन्हें फिर से बोलने के लिए कहना था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं इसे कैसे करूं। मैंने इसके लिए महमूद भाई की मदद मांगी। उन्होंने कहा, अमिताभ बस एक बात सोचो। राजेश खन्ना मर गया है। और, बाकी सब अपने आप हो जाएगा।
उनके निधन की जानकारी पाकर मैं जब उन्हें श्रद्घांजलि देने पहुंचा, उनका एक करीबी मेरे पास आया और रुंधे गले से उसने मेरे कान में उनके आखिरी शब्द फुसफुसाए.....टाइम हो गया है, पैक अप.."
अमिताभ बच्चन
(श्री अमिताभ बच्चन के ब्लॉग http://srbachchan.tumblr.com/ की पोस्ट संख्या 1152 का हिंदी अनुवाद। इस प्रस्तुति का उद्देश्य कतई व्यावसायिक नहीं है और इसे हिंदीभाषियों व हिंदी प्रेमी पाठकों की सुविधा के लिए यहां प्रस्तुत किया जा रहा है।)
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THE GREAT RAJESH KHANNA AND THE GREAT MAHA NAYAK AMITABHA BACHCHAN .WINAMRA SHRADDHANJALI.
जवाब देंहटाएंअभिनय की एक अलग और संजीदा विधा का अंत हो गया
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