बुधवार, 14 मार्च 2012

... दूसरी बस पकड़ता तो इनकम टैक्स के छापे मार रहा होता-प्रीतम


हिंदी सिनेमा में निर्देशक फिल्म बनाने के लिए सुपर स्टार के चक्कर काटता है। सुपर स्टार फिल्म के लिए हां कहने से पहले फिल्म के प्रोड्यूसर का नाम जानना चाहता है और हर फिल्म प्रोड्यूसर अपनी फिल्म को हिट कराने के लिए प्रीतम का संगीत चाहता है। ताज्जुब होता है प्रीतम के दफ्तर में फिल्म निर्माताओं को उनके लिए दो दो घंटे इंतजार करते देखकर, ये वो प्रोड्यूसर हैं जिनके लिए दूसरे लोग उनके दफ्तर में घंटों इंतजार करते हैं। ये हैं प्रीतम चक्रवर्ती। हिंदी सिनेमा के मौजूदा दौर के चोटी के संगीतकार।

© पंकज शुक्ल

संगीतकार प्रीतम को तो दुनिया जानती हैं लेकिन कोलकाता के उस प्रीतम चक्रवर्ती को कैसे लगी संगीत की धुन जो कभी आईएएस पीसीएस की तैयारी किया करता था?
-सच पूछिए तो मुझे कभी पता नहीं था कि मैं कभी सिनेमा की दुनिया में भी आऊंगा। मिडिल क्लास फैमिली का लड़का था। स्कूल कॉलेज में बैंड वगैरह में गा बजा लेता था। लेकिन, संगीत निर्देशन? ना बाबा ना। सपने में भी नहीं सोचा था। जो कुछ अब तक होता गया बिना किसी प्लानिंग के होता गया। शायद पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट पहुंचने के बाद ही मेरा ध्यान इस तरफ गया या कहें कि रुझान इस तरफ हुआ।

लेकिन पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट तो आप साउंड इंजीनियर बनने आए थे?
-हां, इसका भी दिलचस्प वाकया है। क्या है उन दिनों मैं अखबार में जो भी किसी कंपटीशन का विज्ञापन निकलता था, भर देता था। पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट का विज्ञापन देखा तो साउंड इंजीनियरिंग का कोर्स ही मुझे कुछ समझ में आया। पापा को भी लगा कि लड़का इंजीनियर बनना चाहता है। उन्हीं दिनों सेंट्रल एक्साइज और इनकम टैक्स का भी विज्ञापन निकला। वो भी मैंने भरा था। तो मजे की बात देखिए दोनों का इम्तिहान एक ही दिन और एक ही वक्त होना था।

फिर कैसे तय हुआ कि पुणे इंस्टीट्यूट की लिखित परीक्षा ही देनी है?
-कुछ तय नहीं हुआ। और न ही कुछ तय कर पाने की मनोदशा थी मेरी। हमारे पड़ोस में एक इनकम टैक्स अफसर रहते थे। उनका रुआब ज़बर्दस्त था। तो घर से निकला तो सोचा कि इनकम टैक्स वाला टेस्ट ही देना चाहिए। बस स्टॉप आ गया। वहां भी टेंशन थी तो एक कप चाय पी। दिलचस्प बात देखिए कि दोनों परीक्षाओं के सेंटर को एक ही बस जाती थी। 240 नंबर की। साउथ की तरफ जो बस जाती थी उधर फिल्म इंस्टीट्यूट की परीक्षा वाला सेंटर था और नॉर्थ की तरफ जाने वाली बस के रूट में इनकम टैक्स वाला परीक्षा सेंटर था। मैंने तय किया कि जो बस पहले आएगी उसी में चढ़ जाऊंगा। पहली बस साउथ की तरफ जाने वाली आई और मैं संगीतकार बन गया। नहीं तो शायद कहीं इनकम टैक्स अफसर बनकर छापा मार रहा होता।

फिर पुणे में रहते हुए वहां की स्टूडेंट फिल्म का संगीत तैयार करना आपने शुरू किया और बन गए फिल्म संगीतकार?
-पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट ने मुझे बहुत कुछ दिया। तीसरे साल में ही मुझे एक सीरियल में संगीत देने का मौका मिला और मेरा मुंबई आना जाना शुरू हो गया। उम्र काफी कम थी और मन में होता था कि लोग थोड़ा बुद्धिजीवी समझें तो सिगरेट पीनी शुरू कर दी। ये लत मुझे वहां फर्स्ट ईयर से ही लग गई। सिगरेट शायद सामाजिक तौर पर थोड़ा स्वीकार्य नशा है इसलिए लड़के इसकी तरफ जल्दी आकर्षित होते हैं। लेकिन, इससे बुरा नशा भी कोई नहीं क्योंकि इसे छोड़ना बहुत मुश्किल होता है।

हिंदी सिनेमा में शोहरत के जिस मुकाम पर आप हैं, वहां पहुंचने के बाद तो किसी को भी किसी के ऐब पर एतराज़ नहीं होता, लेकिन फिर भी आपको सिगरेट छोड़े काफी अरसा हो चुका है?
-सिगरेट बहुत बुरी लत है। इसे छोड़ने की मेरी तमाम कोशिशें बेकार रही हैं। लेकिन कभी न कभी तो आपकी ये लत छोड़नी ही होती है। मैंने भी छोड़ी। कभी 15 दिन, कभी दो महीने लेकिन हर बार दोबारा शुरू हो जाती। फिर एक बार किसी ने मुझे कहा कि डॉक्टर बोले उससे पहले खुद छोड़ देनी चाहिए ये लत। कभी न कभी तो डॉक्टर ये बात बोलेगा ही। अभी नहीं तो हार्ट अटैक आने के बाद।

तो आपके लिए वो पल कब आया?
-मैं बांग्लादेश गया हुआ था एक शो के लिए। वहां मुझे ज़बर्दस्त खांसी हुई। इतनी ज़बर्दस्त कि मैं गा भी नहीं पाया। अगले दिन मैंने बिल्कुल सिगरेट नहीं पी। खांसी आने पर पहले भी दो चार बार में छोड़ चुका था। क्या है कि बीमारी में सिगरेट छोड़ना आसान होता है। तो इस बार मैं लौटा तो मुझे एक किताब पढ़ने को मिली। मेरी पत्नी को उसके जन्मदिन पर किसी ने कुछ किताबें दी थीं। उनमें ये किताब भी थी। कॉलिन जेम्स की ये पॉकेट बुक मेरे लिए वरदान साबित हुई। साल भर हो चुका है सिगरेट छोड़े। लेकिन लोग ये भी कहते हैं कि सिगरेट छोड़ने के लिए कम से कम सात साल चाहिए होते हैं। मैं बस ये प्रार्थना करता हूं कि ये लत दोबारा न लगे।

तो अपने प्रशंसकों खासकर युवाओं को क्या कहना चाहते हैं?
-जिस किताब की बात मैं कर रहा हूं, उसमें एक जगह ये बात लिखी है। किसी भी नशे को दोबारा शुरू करने के तमाम कारण होते हैं। कभी होता है कि चलो आज दोस्तों की पार्टी है, एक कश लगा लिया जाए। या कि आज मुझे बहुत तनाव है चलो एक सिगरेट पी लेता हूं। या कि जिस लड़की के लिए मैंने ये नशा छोड़ा वो तो अब मेरे साथ है नहीं तो क्यों ना दोबारा शुरू कर लिया जाए। मेरा कहना है कि आपको अपना आत्मविश्वास बनाए रखना है। आप नहीं चाहोगे तो आपको कोई लत लगेगी नहीं।

आपको नहीं लगता कि तंबाकू का इतना विरोध करने पर तंबाकू लॉबी आपके पीछे लग जाएगी? वो तो सार्वजनिक जगहों पर सिर्फ सिगरेट हाथ में पकड़े रहने के लिए सितारों को लाखों देती है?
-(ठहाका लगाकर हंसते हुए) यही तो खेल है सारा..।

(संडे नई दुनिया 11 मार्च 2012 के अंक में प्रकाशित)

17 टिप्‍पणियां:

  1. good article but more focused on smoking than his singing career...

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  2. good article.but more focused on smoking rather than his singing.

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  3. Priyambada - This is cleared in the intro of the interview itself. I mostly talk on topics other than films with film celebrities.

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  4. ek dilchasp interview ..jisme purani bate kam aur naye batte adhik..ammuman hota hai ye ki kisi ke interview me purani batto ka adhik jalwa hota hai..ye interview hume pritam ke dedcation ke bare me batatat hai...

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  5. is interview mw khas baat ye hai ki purani baate kam jarur hai but naye baato ke sath purani baato ka accha mishran hai..

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  6. प्रीतम जी के जीवन के विभिन्न पहलुओं के बारे में जानकर अच्छा लगा...

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