किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार, किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार, किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार, जीना इसी का नाम है..! - शैलेंद्र (1959)
मंगलवार, 27 दिसंबर 2011
भरत कर मनन भारत का...
पुरुष छह, दिन तीन,
गुणा औ अट्ठारह दिन का,
नहीं रहा कुरुक्षेत्र,
रण ये दिन गिन गिन का।
स्वयं सब पांडव बताते,
कौरव औ होंगे कौन,
के बन शिखंडी कौन,
बनेगा तूण का तिन तिनका।
के फिर शय्या पर पितामह,
औ द्वंद्व है चिंतन का,
रही है दिल्ली कांप,
ये अभिशाप पुर हस्तिन का।
कांचन पुरी का मध्य,
औ मौन ये संजय का,
युवराज का रण राग,
गांधारी के तम गगन का।
खुर तेग है किस ओर,
द्वापर नहीं कलयुग का,
अब व्यास गद्दी छोड़,
भरत कर मनन भारत का।
(पंशु. 27122011)
फोटो : गिरीश श्रीवास्तव
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