किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार, किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार, किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार, जीना इसी का नाम है..! - शैलेंद्र (1959)
गुरुवार, 6 मई 2010
‘नदिया के पार’ के निर्देशक गोविंद मूनिस नहीं रहे
मुंबई। फिल्म फेयर पुरस्कार विजेता और सुपर डुपर हिट फिल्म नदिया के पार के निर्देशक गोविंद मूनिस का कल शाम निधन हो गया। वह 81 वर्ष के थे और कुछ समय से गले के कैंसर से पीड़ित थे।
दो जनवरी 1929 को उत्तर प्रदेश के ज़िले उन्नाव के गांव पासाखेड़ा में पंडित श्रीराम द्विवेदी के घर जन्मे गोविंद मूनिस की पढ़ाई कानपुर में हुई और यहीं 1947 में दैनिक नवभारत में पहली कहानी छपने पर उन्हें किस्से कहानियां लिखने का चस्का लगा। इसके बाद उन्होंने तमाम अनुवाद किए, लेख, कहानियां लिखीं और फिर अप्रैल 1952 में कलकत्ता चले गए। शुरुआत में मशहूर निर्देशक ऋत्विक घटक का शागिर्द बनने के बाद उनके हुनर को निखारा निर्देशक सत्येन बोस ने। 1953 में बंबई आने के बाद मूनिस ने सत्येन बोस की तकरीबन सभी फिल्मों में उनका साथ दिया, कभी सहायक निर्देशक के तौर पर तो कभी पटकथा और संवाद लेखक के तौर पर। ज़रूरत पड़ने पर उन्होंने गीत भी लिखे। फिल्म “दोस्ती” के लिए गोविंद मूनिस को सर्वश्रेष्ठ संवाद लेखक का फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला था।
अपने करियर का सबसे बड़ा मौका मूनिस को दिया राजश्री प्रोडक्शन्स ने फिल्म “नदिया के पार” में। इसके पहले वह हालांकि “मितवा” निर्देशत कर चुके थे, लेकिन “नदिया के पार” ने उन्हें सिनेमा के इतिहास में वो मकाम दिलाया, जो कम निर्देशक ही हासिल कर पाए। इस फिल्म ने कई सिनेमाघरों में लगातार 100 हफ्ते चलकर कामयाबी के रिकॉर्ड बनाए। गोविंद मूनिस फिल्मों के अलावा टीवी और बालफिल्मों के लिए भी लगातार सक्रिय रहे। बांग्ला फिल्मों और बांग्ला संगीत के प्रचार प्रसार के लिए गोविंद मूनिस ने मुंबई में अलग अलग सस्थाएं बनाकर काफी काम किया।
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अफ़सोस हुआ. इश्वर उनके आत्मा को शांति प्रदान करें
जवाब देंहटाएंMunis ji ki aatma ko ishwar shanti den..aapki post ke madhyam se main kafi kuch jaan paya inke bare me..
जवाब देंहटाएंआंचलिक भाषा कि फिल्म में जिस शुचिता की नींव उन्होंने रखी थी,अफसोस कि बाद के फिल्मकार उसपर काम नहीं कर पाए।
जवाब देंहटाएंदिवंगत आतमा का श्रृद्धांजली. व जानकारी के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंके ले जाई नदिया के पार...
जवाब देंहटाएंपढ़ीं
http://aapandesh.blogspot.com/2010/06/blog-post_11.html