शुक्रवार, 7 मई 2010

निकम की बहस से 30 से ज़्यादा बार टूटी जजों की कलम

 फांसी जल्द से जल्द दिए जाने के हिमायती हैं उज्जवल निकम
 संवेदनशील मामलों में शामिल होने के चलते ज़ेड श्रेणी की सुरक्षा


मुंबई। पाकिस्तानी आतंकवादी अजलम कसाब को फांसी की सज़ा सुनाए जाने के साथ ही विशेष सरकारी वकील उज्जवल निकम की बहस के चलते फांसी के फंदे की तरफ बढ़ने वालों में एक और गुनहगार का इज़ाफ़ा हो गया। निकम देश के इकलौते ऐसे वक़ील हैं, जिनकी बहस के चलते अब तक 30 से ज़्यादा लोगों को फांसी की सज़ा सुनाई जा चुकी है और करीब सात सौ लोगों को उम्र कैद हुई।
जिन दूसरे चर्चित मुकदमों में निकम ने सरकारी के वक़ील के तौर पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, उनमें 1993 के मुंबई बम धमाके, गुलशन कुमार मर्डर केस, प्रमोद महाजन हत्याकांड, 2003 के गेटवे ऑफ इंडिया पर हुए बम धमाके, खैरलांजी सामूहिक हत्याकांड, नदीम प्रत्यर्पण मामला और पुणे का बहुचर्चित राठी हत्याकांड शामिल हैं। ये अलग बात है कि निकम की बहस के चलते फांसी की सज़ा पाए ज़्यादातर दोषी अब भी जेल की सलाखों के पीछे हैं। फांसी की सज़ा पाए लोगों को सुप्रीम कोर्ट से पुष्टि के बाद जल्दी से जल्दी फंदे तक पहुंचाने के समर्थक रहे उज्जवल निकम कई मौकों पर क्षमा याचिकाओं के निपटारे में में लगने वाले समय पर अपनी राय ज़ाहिर करते रहे हैं। यहां यह उल्लेखनीय है कि देश में 2004 के बाद से किसी को फांसी नहीं दी गई है और 1988 के बाद से अब तक केवल दो लोग फांसी पर लटकाए गए हैं।
महाराष्ट्र के जलगांव में वकील देवराव निकम के घर 30 मार्च 1953 को जन्मे उज्जवल निकम ने शुरुआती पढ़ाई विज्ञान के छात्र के रूप में की, लेकिन बीएससी करने के बाद उनका रुझान वक़ालत की तरफ हो गया। जलगांव के ही एस एस मनियार कॉलेज से कानून की पढ़ाई करने के बाद वो वकील बने और सबसे पहले जलगांव में ही सरकारी वकील बने।
निकम को अपने करियर का पहला बड़ा मौका 1994 में मिला जब मुंबई बम धमाकों के लिए टाडा कानून के तहत एक विशेष कोर्ट की स्थापना की गई और 12 मार्च 1993 में हुए बम धमाकों में बहस के लिए उन्हें सरकारी वकील के तौर पर नियुक्त किया गया। इन बम धमाकों में 129 आरोपितों में से 100 दोषी पाए गए और उन्हें सज़ा सुनाई गई। गुलशन कुमार और प्रमोद महाजन हत्याकांड में दोषियों को सज़ा दिलवाने के अलावा निकम को खैरलांजी हत्याकांड में 6 लोगों को फांसी की सज़ा दिलवाने में भी कामयाबी मिली। 2006 के इस मामले में खैरलांजी के एक दलित परिवार को पीट पीट कर मार डाला गया था।
तमाम संवेदनशील मामलों में सरकारी वकील होने की वजह से उज्जवल निकम को ज़ेड श्रेणी की सुरक्षा मिली हुई है और हाल तक मुकदमों की बहस के लिए वह जलगांव से ही मुंबई आते जाते रहे। बाद में मुख्यमंत्री कोटे से उन्हें मुंबई के वर्सोवा में म्हाडा का फ्लैट आवंटित किया गया। अपनी कार्यशैली के बूते आम लोगों के बीच नायक बनकर उभरे उज्जवल निकम को अब तक सरकारी-गैर सरकारी करीब 65 पुरस्कार मिल चुके हैं।
सरकारी वकील के तौर पर अपने करियर में उज्जवल निकम को शुरुआती दिनों में कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा। निकम तब अंग्रेजी ठीक से नहीं बोल पाते थे और इसके चलते लोग उनकी खिल्ली भी उड़ाया करते थे। निकम को वो दिन भी याद है जब मुंबई बम धमाकों की पहली सुनवाई के दिन देश विदेश के करीब सौ टीवी चैनलों के संवाददाताओं ने उनसे सवाल पूछे, उस दिन को निकम अपने जीवन का सबसे यादगार दिन मानते हैं।
वक़ालत के पेशे में कामयाबी की बेमिसाल ऊंचाइयां हासिल कर चुके उज्जवल निकम ने बीच में वक़ालत छोड़ने की भी इच्छा जताई थी, तब ये माना जा रहा था कि शायद निकम राजनीति में आएंगे। लेकिन, अभी तक उज्जवल निकम ने इस बारे में सार्वजनिक तौर से कुछ नहीं कहा है। दो बच्चों के पिता उज्जवल निकम लगातार सफर करते रहने की वजह से पेट की तमाम बीमारियों का शिकार हुए और अब वो जहां भी जाते हैं घर का पिसा आटा साथ लेकर जाते हैं। होटल में रुकने पर वो इसी आटे की चपातियां बनवाकर खाते हैं।
सुबह चार बजे उठने वाले उज्जवल निकम अब भी सुबह दो घंटे व्यायाम करते हैं और फिर दस बजे तक मुकदमों से संबंधित फाइलें पढ़ते हैं। निकम ने टेलीविजन देखने का अधिकतम समय दो घंटे तय कर रखा है और वो भी सम सामयिक घटनाओं से खुद को वाकिफ़ रखने के लिए। निकम सुबह अख़बार नहीं पढ़ते। अपनी व्यस्त दिनचर्या के चलते वो इसके लिए शाम को ही समय निकाल पाते हैं। लेट नाइट पार्टियों में जाने से उन्हें शुरू से ही परहेज़ रहा। मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर एम एन सिंह का वह आज भी एहसान मानते हैं, जिन्होंने उनकी काबिलियत परख कर उन्हें मुंबई बम धमाकों के मुकदमे में सरकार की तरफ से पैरवी करने के लिए जलगांव से मुंबई बुलाया।

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