किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार, किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार, किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार, जीना इसी का नाम है..! - शैलेंद्र (1959)
रविवार, 11 अक्तूबर 2009
दंश : The Sting
शॉर्ट फिल्म नंबर 3
टीना को दफ्तर ज्वाइन किए हुए अभी हफ्ता भर भी नहीं हुआ था और उसे लगने लगा था कि कंपनी के सीईओ की उस पर कुछ खास ही नज़रे इनायत होने लगी है। टीना देखने में सुंदर थी। आकर्षक कद काठी। जल्दी से जल्दी सबसे आगे निकल जाने का अरमान। इंटरव्यू के दौरान भी सीईओ कुमार साहब ने उससे पूछा था कि अगले पांच साल में तुम खुद को कहां देखना चाहती हो और उसने उस वक्त उसके दिमाग में जो भी आया बोल दिया। उसने कहा था सर मैं खुद को आपकी सीट पर देखना चाहती हूं। एक सेक्रेटरी के लिए ये था तो अजीब जवाब लेकिन कुमार साहब ने ना जाने क्या सोचकर तब बस हल्का सा मुस्कुरा दिया था। दो दिन बाद उसके घर पर फोन आया कि उसका सेलेक्शन हो गया है और आज ही के दिन पिछले शनिवार को वो इस कंपनी में सीईओ की सेक्रेटरी बन गई।
आम तौर पर शनिवार को बाकी स्टाफ समय से पहले ही निकल जाता है, रविवार की छुट्टी की तैयारी करने। लेकिन, कुमार साहब अब भी घर नहीं गए थे। टीना अपना बैग समेट कर घर जाने की तैयारी कर चुकी थी। वो कुमार साहब की इजाज़त लेने के लिए उनके केबिन में घुसी तो कुमार साहब को किसी काम में व्यस्त पाया। उसने जाने की बात कही तो कुमार साहब ने बिना उसकी तरफ देखे ही हां कह दिया लेकिन टीना अभी पलट कर दरवाजे तक पहुंची ही थी कि कुमार साहब को कुछ याद आया। उन्होंने आवाज़ लगाई - टीना!
टीना के कदम जहां थे वहीं रुक गए। कुमार साहब ने तब उसे बताया कि कंपनी ने कल शाम पूरे दफ्तर के लिए सरप्राइज़ पार्टी रखी है, क्योंकि कंपनी ने इस क्वार्टर में मुनाफे का नया रिकॉर्ड बनाया। टीना के चेहरे पर खुशी देखने लायक थी। सीईओ जैसे गरिमामयी पद पर होने के बाद भी ये बताते बताते कुमार साहब के चेहरे पर कामयाबी और अभिमान की मिली जुली छाया तैर आई थी।
टीना ने पलटकर तुरंत कुमार साहब को बधाई दी और बोली कि वो चिंता ना करे। संडे की सरप्राइज़ पार्टी का इंतजाम वो खुद संभाल लेगी। कुमार साहब ने चैन की सांस ली। और उन्होंने टीना के हाथ में पार्टी के लिए बुलाए गए कर्मचारियों और अधिकारियों की पूरी लिस्ट सौंप दी। टीना को पहली बार इतना बड़ा जिम्मा मिला था लिहाजा वो भी काफी चहकती हुई दफ्तर से विदा हुई।
अगले दिन संडे था। देर रात तक पार्टी चलती रही। पार्टी के बाद कुमार साहब लड़खड़ाते हुए बाहर निकले तो टीना भागती हुई उनकी मदद को आ गई। कुमार साहब से गाड़ी की चाभी ही नहीं संभल रही थो भला गाड़ी वो कैसे संभालेंगे। ये सोचकर टीना ने खुद गाड़ी खोली और कुमार साहब को सहारा देकर पीछे की सीट पर लिटाने लगी। जवां बदन की खुशबू और कुमार साहब के अब तक दबे रहे अरमान। कुछ शायद टीना की बेतकल्लुफी ने भी आग में घी का काम किया। कुमार साहब ने अपने दिल की बात कह डाली और टीना भी ना न कर सकी।
रात का वक्त। घुप्प अंधेरा। शायद टीना भी हल्के हल्के नशे में थी। ना जाने क्या हो गया दोनों को। भावों में वो बह गए। टीना को भी लगा वो खुद पर काबू नहीं रख पाएगी। फिर भी उसने रिक्वेस्ट की सर प्रोटेक्शन प्लीज़। प्रोटेक्शन प्लीज़। प्रोटेक्शन प्लीज़। आवाज़ धीरे धीरे मद्धम पड़ती गई। और फिर तेज़ सांसों की आवाज़ों में कहीं खो भी गई। अगले दिन कुमार साहब देर तक परेशान रहे। टीना नौकरी पर फिर नहीं आई।
कुछ हफ्तों बाद।
कुमार साहब के केबिन का फोन बजा। नायर ने फोन पर बताया कि पुरानी सेक्रेट्री टीना मिलने आई है। कुमार साहब को लगा कि उन्हें माफी मांगने का मौका आख़िर भगवान ने दे ही दिया। वो तबसे पश्चाताप में ही जी रहे थे। टीना ने दरवाजे पर दस्तक दी। वो अंदर आई। सलवार सूट में वाकई उस दिन टीना ग़ज़ब की खूबसूरत लग रही थी। पेट ज़रूर कुछ चढ़ा सा दिख रहा था। सामने रखी अपनी फैमिली फोटो से नज़र हटाकर कुमार साहब सीट छोड़कर उठे और तकरीबन हाथ जोड़ते से बोले, टीना मैं तुम्हें कब से तलाश रहा हूं। प्लीज़....
कुमार साहब की बात पूरी भी नहीं हो पाई कि टीना बोल पड़ी। सर मैं मां बनने वाली हूं और कल हम कोर्ट मैरिज करने जा रहे हैं। ये आज ही अपने पैरेंट्स से बात करने वाले हैं। बस आपका आशीर्वाद लेने आ गई। जो हुआ उसे भूल जाइए। उसमें जितनी गलती आप से हुई उतनी ही मुझसे भी। कुमार साहब ने शायद कहना चाहा। लेकिन टीना आई एम एच...।
लेकिन टीना ने इसी बीच पर्स से एक फोटो निकालकर कुमार साहब के हाथ में थमा दिया। "सर देखिए ना हमारी जोड़ी ठीक रहेगी या नहीं।" टीना ने थोड़ा प्यार से और थोड़ा अधिकार से कुमार साहब का हाथ झिंझोड़ा। कुमार साहब की नज़र जैसे ही फोटो पर गई, ऐसा लगा कि जैसे उन्हें लकवा मार गया हो। उनके मुंह से बस इतना ही निकला, "नवीन"। अब चौंकने की बारी टीना की थी। उसने पूछा कि कुमार साहब उसे कैसे जानते हैं। कुमार साहब बस इतना ही कह पाए, "ये मेरा बेटा है।"
(समाप्त)
कुशाग्र क्रिएशंस प्रस्तुति । कहानी और निर्माता- शरद मिश्र । पटकथा- निर्देशक – पंकज शुक्ल।
© & ® with Film Writers Association, Mumbai and IMPAA, Mumbai
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छोटी सी बात में बहुत कुछ कह जाने का अंदाज अच्छा है.
जवाब देंहटाएं- ओम
VERY GOOD.
जवाब देंहटाएंK.N.Gupta
PRESIDENT
GOPIO INDIA
maafi chahti hoon mujhe yeh kahani pasnd nahi aayi...bahuroopiya ke muqabale to bilkul nahi...shuruaat achhi thi lekin ant mein jo shock value dene ki koshish ki hai woh bilkul nayee nahi hai aur zabardasti dee gayee kagati hai.
जवाब देंहटाएंKadvi pratikriya ke liye maafi.
Bhawna Pandey
भावना जी. आपके नज़रिये का मैं सम्मान करता हूं। आपने अपनी बात बेबाकी से कही वो मुझे अच्छी लगी। आपकी बात सिर माथे पर।
जवाब देंहटाएंओपी जी और गुप्ता सर, आप लोगों का बहुत बहुत शुक्रिया उत्साहवर्धन के लिए।
rukne walo ke liye din ki shuruwat nhi hoti ,
जवाब देंहटाएंjo dekh lete ujale ko unki kabhi raat nhi hoti.
best of luck.......