कि,
भरोसा बार बार क्यूं करता हूं.
कि धोखा बार बार,
क्यूं पाता हूं,
हर चमक
कुंदन नहीं होती,
मन को समझाता हूं,
पर, बावरा मन,
कसौटी को करता
दरकिनार,
खुद ही चल देता है
खुद को कसने कसौटी पर।
कि
कभी तो कसौटी
को भी कसा जाएगा,
और, तब, होगा हिसाब,
हुनर का, हौसले का,
और कसौटी पर कसने
वालों का..
(पंशु. 07102012)
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