न ख़त आता है, न खयाल आता है,
ज़िंदगी तुझ पर ही क्यूं मलाल आता है..
वो चल पड़ा है नई मंज़िल की जानिब,
उसके रस्ते कहां रिश्तों का सवाल आता है..
किए होंगे तूने एहसां रगों में भर भरके,
किस्सों में कहीं शहीदों का हवाल आता है?
कदों को नाप तू अपने कभी तो उनके भी,
तेरी परछाई ही अक्सर धूप ए बवाल आता है,
मां ने समझाया बहुत घर की देहरी तक,
जवानी में कहां सीखों का निकाल आता है,
‘पंशु’ करूं फरेब या यूं ही बहते जाऊं,
ईमां डिगाने क्यूं कर ये टकसाल आता है..
© पंकज शुक्ल
21092013
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न ख़त आता है, न खयाल आता है,
जवाब देंहटाएंज़िंदगी तुझ पर ही क्यूं मलाल आता है.. कमाल की लाइन है सर......एसा लग रहा है जैसे आपने मेरे लिए ही लिखा हो....जो भी इसे पढ़ेगा उसे एसा ही एहसास होगा....