© पंकज शुक्ल
अक्सर देखा ये गया है कि आपके भीतर का अभिनेता आपके ऊपर हावी नचैये के सामने कहीं खो जाता है। लोग आपका अभिनय देखना चाहते हैं और आपके निर्देशक ना जाने क्यों आपकी डांसिंग बॉय इमेज को छोड़ना नहीं चाहते?
-आप शायद सही कह रहे हैं। लेकिन, क्या हुआ कि जब मैं फिल्मों में बतौर हीरो काम करने आया तो लोगों को पता नहीं था कि मेरे ऊपर क्या जमेगा। केन घोष के साथ म्यूजिक वीडियो कर चुका था तो उन्हें लगा कि म्यूजिक के आसपास ही कुछ बात रखनी चाहिए। मुझे भी उस वक्त ज्यादा कुछ पता नहीं था। बस ये लगता था कि किसी तरह लोगों को फिल्म देखने आना चाहिए। तो ये भी कर लो, वो भी कर लो। इसे भी मत छोड़ो। ऋतिक रोशन मुझसे पहले फिल्मों में आ चुके थे और मैं परदे पर उनका नाच देखा भी करता था। ये सच है कि मैं उनका बहुत बड़ा फैन हूं और करियर की शुरुआत के वक्त ये लगा भी करता था कि मैं उनकी तरह अपना सौ फीसदी परदे पर दे पाऊंगा कि नहीं। ऋतिक की तरह ही मैंने भी शियामक डावर की क्लासेस ली थीं और शायद वहीं से ये डांसिंग बॉय इमेज साथ चली आ रही है।
लेकिन, आपके करियर की दो सबसे ज्यादा हिट फिल्में जब वी मेट और विवाह आपके डांस की बजाय आपकी अदाकारी और लोगों से आपके कनेक्ट की वजह से कामयाब हुईं। इस बारे में आप क्या कहेंगे?
मैं अपने करियर में लगातार इस कोशिश में रहा हूं कि मैं अलग अलग तरह के रोल करूं। इसके लिए मुझे अक्सर डांट भी खानी पड़ती है कि जिसमें मैं हिट हो रहा हूं मैं वही क्यों नहीं करता? लेकिन, क्या है कि मेरे भीतर का कलाकार मानता नहीं है। शायद कुछ खून का असर हो (शाहिद की मां नीलिमा के पिता मशहूर ऊर्दू पत्रकार अनवर अजीम मार्क्स की विचारधारा से प्रभावित रहे, वे मशहूर फिल्म निर्देशक ख्वाजा अहमद अब्बास के वारिस थे) लेकिन मैं लीक पर चलने का आदी कभी नहीं रहा। बचपन में भी इसे लेकर लोगों के निशाने पर रहा। रिटायरमेंट के बाद चाहूंगा कि इस पर एक किताब लिखूं, लेकिन फिलवक्त ये कह सकता हूं कि अगर अपने 10 साल के करियर में मुझे कोई पहचान मिली है तो इन्हीं किरदारों की वजह से ही मिली है। मैं मानता हूं कि प्रयोग करने में गलतियां भी होती हैं, लेकिन लोगों की तारीफ भी मिलती है। एक कलाकार के लिए उसके प्रशसंकों की तारीफ ही उसका सबसे बड़ा धन है।
"आम दर्शक समझदार लोगों से ज्यादा समझदार होता है। उसकी समझ से ही हमारा लेना देना है। अगर फिल्म का कनेक्ट उसके साथ बन गया तो बाकी लोग फिल्म के बारे में क्या सोचते हैं, इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता।"
विवाह की बात चली तो मुझे याद है कि इसकी रिलीज के दिन निर्देशक महेश भट्ट ने इसके बारे में मुझसे पूछा और मेरे ये कहने पर कि फिल्म सुपरहिट होगी, वो चौंक गए थे। आपको क्या लगता है कि हिंदी सिनेमा में दर्शकों की नब्ज पकड़ना कितना आसान और कितना मुश्किल है?
-विवाह राजश्री की फिल्म थी और उनकी फिल्में दो तीन साल में ही आती है। फिल्म के निर्देशक सूरज बड़जात्या की पिछली फिल्म ज्यादा चली भी नहीं थी। इसके अलावा विवाह के सफल होने की सबसे बड़ी वजह ये थी कि इसमें आम लोगों से जुड़े एक बहुत ही भावनात्मक और संवेदनशील मुद्दे को उठाया गया था। ये बातें कुछ लोगों को कम समझ में आती हैं। लेकिन, आम दर्शक समझदार लोगों से ज्यादा समझदार होता है। उसकी समझ से ही हमारा लेना देना है। अगर फिल्म का कनेक्ट उसके साथ बन गया तो बाकी लोग फिल्म के बारे में क्या सोचते हैं, इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। सूरज को दर्शकों की नब्ज पकड़ना आता है। बतौर कलाकार मेरा काम ये है कि एक बार फिल्म हाथ में लेने के बाद अपने निर्देशक पर पूरा भरोसा करना।
लेकिन, इस भरोसे ने आपको अपने करियर में नुकसान भी पहुंचाया है? शायद इसीलिए आप अब निर्देशकों को रिपीट करने में यकीन नहीं करते?
-नहीं मैं इसको इस तरह से नहीं लेता। केन घोष के साथ मैंने अपने करियर की पहली फिल्म की। इस फिल्म ने मुझे काफी फायदा भी पहुंचाया। फिर मैंने कुछ अलग करने के लिए फिदा की। ये फिल्म ज्यादा नहीं चली। फिल्म को करना न करना मेरा अपना फैसला होता है और इसके लिए हम किसी दूसरे को जिम्मेदार ठहरा भी नहीं सकते। लेकिन, जिन निर्देशकों से मेरी दोस्ती है, मैं उनके साथ ही लगातार काम करूं, ये जरूरी भी नहीं। अक्सर हम लोग अलग अलग विषयों पर बातें करते रहते हैं। इस दौरान जरूरी नहीं कि हर वो विषय जो मेरा दोस्त निर्देशक मुझे सुनाए, हम दोनों की सहमति उस पर एक जैसी हो। मैं खुल कर काम करने में यकीन करता हूं। रिश्तों में बंधकर काम करना हमेशा फायदेमंद नहीं होता। मेरा मानना है कि दोस्ती और काम दो अलग अलग चीजें हैं और इन दोनों का घालमेल जितना कम होगा, उतना ही बेहतर होगा।
"मैं चाहता हूं कि किसी भी हीरोइन के साथ मेरा कंफर्ट जोन जरूर बना रहे पर हम बार बार एक दूसरे के साथ रिपीट न हों। क्या होता है कि एक ही कलाकार के साथ बार बार काम करने से आपके अभिनय की नवीनता खत्म होने लगती है।"
ये फॉर्मूला सिर्फ निर्देशकों पर ही लागू होता है या फिर साथी कलाकारों पर भी?
-मैं समझ रहा हूं जो आप पूछना चाह रहे हैं। मैं इसका जवाब दूसरी तरह से देना चाहूंगा। सचिन और सहवाग दोनों बेहतरीन खिलाड़ी हैं। दोनों की ओपनिंग जोड़ी ने कमाल किए हैं। दोनों के चलने से देश को फायदा होता है। लेकिन, दोनों में से एक का भी आउट ऑफ फॉर्म होना देश के लिए परेशानी बन जाता है। बस मैं भी यही चाहता हूं। मैं चाहता हूं कि किसी भी हीरोइन के साथ मेरा कंफर्ट जोन जरूर बना रहे पर हम बार बार एक दूसरे के साथ रिपीट न हों। क्या होता है कि एक ही कलाकार के साथ बार बार काम करने से आपके अभिनय की नवीनता खत्म होने लगती है। आपको पता है कि सामने वाला कलाकार किसी दी गई सिचुएशन में कैसे रिएक्ट करेगा? तो ऐसे में आपकी प्रतिक्रिया भी पहले से तय जैसी होने लगती है। लेकिन, ऐसा नहीं कि मैं साथ काम नहीं कर रहा हूं तो मेरी कोई अदावत किसी से है। मैं स्वस्थ रिश्ते बनाए रखने में यकीन करता हूं।
यानी कि, बीती ताहि बिसारि दे आगे की ..?
-नहीं नहीं, मैं ऐसा नहीं कह रहा हूं। मेरे जीवन में मेरे करीबियों के साथ जो भी लम्हे गुजरे हैं, वे मेरी अनमोल यादों का हिस्सा आज भी हैं। मुझे लगता है जीवन में आप जैसे जैसे ऊपर उठते जाते हैं, आपको सादगी उतनी ही ज्यादा भाने लगती है। ये जीवन आपको सिखाता है कि मोह कैसा भी हो, लंबे समय तक नहीं रहता। फिर भी, हम यादों को अपने से सटाए रखना चाहते हैं। मैं भी ऐसा चाहता हूं और मैं भी अपनी यादों को अपनी पकड़ से फिसलना नहीं देना चाहता।
संपर्क: pankajshuklaa@gmail.com
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