कपूर खानदान की पहली बागी और हिंदी सिनेमा में अल्हड़पन की नई परिभाषा लिखने वाली करिश्मा कपूर की पिछली फिल्म बाज रिलीज हुए नौ साल का लंबा अरसा हो चुका है। लेकिन, अपनी नई फिल्म डैंजरस इश्क को वह अपनी कमबैक फिल्म मानने से इंकार करती हैं। बीच के इस वक्फे को छुट्टियां मानने वाली करिश्मा कपूर मानती हैं कि उनके दादा राज कपूर का उनके लिए खास स्नेह था और इसके चलते कपूर खानदान के बच्चे उनसे ईर्ष्या भी करते रहे हैं।
© पंकज शुक्ल
तो आप ये नहीं मानतीं कि आपकी हिंदी सिनेमा में वापसी हो रही है?
-इसमें मानने न मानने की बात ही कहां है। वापसी उसकी होती है जिसने कभी कहा कि वो सिनेमा छोड़कर जा रहा है। मैं तो यही थी। सबके बीच। बड़े परदे पर न सही पर तो छोटे परदे पर भी लोग मुझे देखते ही रहे हैं। और, हम सिर्फ फिल्म करने के लिए फिल्म नहीं कर सकते। हर कलाकार के जीवन में एक ऐसा वक्त आता है, जब उसे अपनी शख्सियत के हिसाब से किरदार करने के बारे में सोचना पड़ता है। मुझे जब लगा कि डैंजरस इश्क में संजना का किरदार मेरे हिसाब से ठीक रहेगा, तभी मैंने इसके लिए हां की। किरदार के अलावा मुझे कहानी को लेकर भी थोड़ा सचेत रहना ही होगा। अब मैं टीन एजर्स लड़कियों वाले रोल तो कर नहीं सकती तो जाहिर है नाच गाने के साथ साथ मुझे ऐसे किरदार करने होंगे, जो मेरे प्रशंसकों को मुझसे जोड़ सकें।
छोटे परदे पर करिश्मा-ए मिरैकल ऑफ डेस्टिनी और नच बलिए 4 जैसे कार्यक्रमों को करने के पीछे कोई तो मकसद रहा होगा? आपको क्या लगता है छोटे परदे के पहले से तय रीयल्टी शो बेहतर हैं, या फिर जिंदगी का वो कैनवस जो सिर्फ बड़े परदे पर ही मुमकिन है?
-सिनेमा में हम वो सब कुछ कर सकते हैं, जो छोटे परदे पर मुमकिन नहीं है। छोटे परदे की अपनी बंदिशें हैं और हमें उस तय दायरे में ही रहकर काम करना होता है। मैं ये तो नहीं कह सकती है कि टेलीविजन रीयल्टी शोज में परदे के पीछे क्या क्या गुणा भाग चलता है, लेकिन कहानी को दर्शकों तक पहुंचाने के लिए सिनेमा ही सबसे बढ़िया माध्यम है, इसे मानने में मुझे कोई हिचक नहीं होती। अब जैसे लोगों के पिछले जन्म में जाने का और वहां की बातों को खुद देखने के शौक को ही ले लें। मैं ऐसे तमाम लोगों को जानती हूं जो इन बातों को मानते हैं और ऐसा करते भी हैं। पहले सिर्फ हाथ की लकीरें और कुंडली देखकर भविष्य बताया जाता है।
अब लोग भविष्य से ज्यादा अपने अतीत को जानने के इच्छुक रहते हैं। अतीत से मेरा मतलब यहां पिछले जन्म से है। जहां तक मेरी अपनी बात है, तो मैं निजी जिंदगी के भूतकाल में कतई दिलचस्पी नहीं रखती। मैं नहीं जानना चाहती कि मैं पिछले जन्म में क्या थी और कैसे मरी? लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि मुझे इन सब बातों में यकीन नहीं है। मेरी ऐसे कई लोगों से बात हुई है जिन्होंने ये करके देखा है और उनकी तमाम बातों में दम भी दिखता है। पिछले जन्म में जाने की ये विध्ाा यानी प्रतिगमन (रिग्रेशन) के दौरान क्या क्या होता है, ये आप डैंजरस इश्क में देख पाएंगे। ये फिल्म हिंदी फिल्मों की लीक को तोड़ने की कोशिश करती है, और मुझे लगता है कि बेहतर कथानक को पसंद करने का जो नया दौर इन दिनों दिख रहा है, उससे इस फिल्म को भी फायदा होगा।
आपका इशारा पान सिंह तोमर, कहानी या डर्टी पिक्चर की तरफ है? या फिर आप कहना चाह रही हैं कि कहानी और डर्टी पिक्चर जैसी फिल्मों से महिला प्रधान फिल्मों का दौर हिंदी सिनेमा में लौट आया है?
-हां, मेरे नजरिये से ये एक अच्छा संकेत है सिनेमा के लिए भी और कलाकारों के लिए भी। अब लेखक फिर से अभिनेत्रियों को ध्यान में रखकर फिल्में लिखने लगे हैं। लेकिन, ऐसा नहीं कि ये सब अब हो रहा है। अगर आप ध्यान दें तो ऐसी फिल्में मैं तो बरसों पहले कर चुकी हूं। फिजा, जुबैदा, शक्ति और बीवी नंबर वन, वे फिल्में हैं जिन्होंने महिला किरदारों को हिंदी सिनेमा में मजबूती दी और एक नई पहचान दी। मुझे महिला प्रधान फिल्में अच्छी लगती हैं और ये काफी रोचक भी होता है। लेकिन ये कोई नया ट्रेंड है, इसे मैं नहीं मानती। मेरा ये मानना है कि एक अच्छी कहानी और एक अच्छी पटकथा का कोई तोड़ नहीं है। दोनों एक साथ हों तो दर्शक सिनेमाघरों तक आते ही हैं। ये किसी दौर की बातें नहीं हैं। ऐसा हर दौर में होता है। अगर आप में अदाकारी का दम है तभी आपके पास अच्छी कहानियां आएंगी। खुशी बस इस बात की होनी चाहिए कि ये चलन लगातार बना रहे।
मतलब कि आप सिनेमा के करीब रहें या सिनेमा से दूर, सिनेमा से इश्क आपका बना ही रहता है। दर्शकों या कि कहें अपने प्रशंसकों से इस दौरान आपने रिश्ता कैसे बनाए रखा?
-ये थोड़ा कठिन सवाल लगता है मुझे, पर मैं इसका जवाब भी पूरी ईमानदारी से देने की कोशिश करूंगी। हां, ये सही है कि अगर आप लगातार परदे पर नजर नहीं आते हैं तो दर्शकों की आपसे दूरी बनने लगती है, पर मैं शुक्रगुजार हूं अपने उन प्रशंसकों की, जिन्होंने मुझे कभी ये महसूस नहीं होने दिया कि मैं छुट्टी पर हूं या फिर मैं लगातार फिल्में नहीं कर रही हूं। ऐसे तमाम प्रशंसक हैं जिनके कार्ड्स, शुभकामना संदेश और बधाई संदेश लगातार आते रहते हैं। सिनेमा में कैमरे के सामने मैंने लंबा अरसा गुजारा है। मैंने भले कभी अपने प्रशंसकों या दर्शकों के बीच बैठकर उनकी प्रतिक्रिया ना जानी हो, पर मुझे पता है कि अपने चाहनेवालों व प्रशंसकों के संपर्क में रहना कितना सुखकर होता है। एक कलाकार को और क्या चाहिए, वो तो तालियों का ही भूखा होता है ना?
अब जबकि आपकी बच्ची बड़ी हो गई है, वह स्कूल भी जाने लगी है तो आपने अपनी छुट्टियां खत्म होने का ऐलान कर दिया है। वे दिन भी याद आते होंगे, जब आपकी स्कूल की छुट्टियां खत्म होती होंगी और आप स्कूल ना जाने की जिद करती होंगी?
-नहीं ऐसा तो कोई खास वाकया याद नहीं आता। हमारे यहां किसी पर कभी कोई दबाव नहीं रहा। कपूर खानदान में सबको अपने फैसले लेने की छूट रही है। बस हमें जीवन में अपनी प्राथमिकताएं तय करना आना चाहिए। अगर आपकी प्राथमिकता देर तक सोना है तो जाहिर है आप सुबह की मुस्कुराहट मिस करेंगे ही करेंगे। रही बात बचपन की तो मुझे याद है कि मैं पूरे खानदान की सबसे लाडली बिटिया रही हूं और मेरी हर बात सब मानते थे। राज जी भी मुझे बहुत चाहते थे और बाद में जब करीना, रणबीर और ऋद्धिमा का जन्म हुआ तो ये तीनों मुझसे चिढ़ते भी थे क्योंकि बाबा की मैं सबसे दुलारी पोती थी।
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