भोले शंकर (10). गतांक से आगे
फिल्म भोले शंकर के क्लाइमेक्स से ठीक पहले भोले और शंकर दोनों भाइयों में जमकर तनातनी होती है और इस धमाकेदार सीन में भोले (मनोज तिवारी) एक डॉयलॉग बोलता हैं, " भइया उ कालिख रात के हमहूं नइखी भूला पइनी, हम इहो मानअ तानी कि ओकर मार सबसे ज्यादा तहरा भुगते के पड़अल, लेकिन भइया तू जवन रास्ता पर चलअ तारअ, ओकर अंत त फेन ओइसने नू होइ। भइया, बस तू छोड़ द, हमहूं इ गीत संगीत के विदा ले तानी, चलअ गांवे खेती कइल जाइ, चलअ छोड़अ इ सब।"
लेकिन, आप लोगों को एक राज़ की बात बताना चाहता हूं और वो ये कि इस फिल्म की शूटिंग से पहले एक काली रात मुझे भी जागते हुए बितानी पड़ी और वो थी 20 नवंबर की रात। दरअसल हुआ यूं कि हमने 21 नवंबर से फिल्म भोले शंकर की शूटिंग मुंबई के कमालिस्तान स्टूडियो में रखी थी। सारी तैयारियां भी उसी लिहाज से चलती रहीं। लाखों रुपये ड्रेस और बाकी चीज़ों पर खर्च हो चुके थे। और 19 नवंबर को मिथुन चक्रवर्ती ने मुंबई पहुंचते ही धमाका किया कि वो फिल्म की शूटिंग नहीं कर सकते। आप समझ सकते हैं कि ऐसी स्थिति में फिल्म के प्रोड्यूसर और डायरेक्टर की क्या हालत हो सकती है? गलती मिथुन दा की भी नहीं थी, पूर्वी भारत की जिस फिल्म संस्था के सम्मानित पदाधिकारी थे, उसी संस्था ने किसी भी बांग्ला कलाकार पर भोजपुरी या मैथिली फिल्म में काम न करने का आदेश जारी कर दिया था।
पूरी गड़बड़ी दरअसल उसी समय शुरू हो गई थी, जब मिथुन चक्रवर्ती की एक हिट बांग्ला फिल्म कुली को भोजपुरी में डब करके रिलीज़ कर दिया गया। बस झगड़ा बढ़ता गया। पहले निर्माताओं और वितरकों की बिहार की एक संस्था ने मिथुन दा और उनके परिजनों की फिल्मों को बिहार और झारखंड में रिलीज़ ना होने देने का ऐलान किया और बदले में आ गया पूर्वी भारत की संस्था का फऱमान। और इन दो संस्थाओं की नाक की लड़ाई का पहला शिकार हुई फिल्म भोले शंकर। 20 नवंबर को पूर दिन हम लोग शूटिंग की तैयारियों को छोड़ मिथुन चक्रवर्ती को शूटिंग के लिए राज़ी करने की कोशिशों में लगे रहे। मिथुन दा उस दिन एम्पायर स्टूडियो में अपने बेटे मिमोह की फिल्म जिमी के किसी गाने की रिकॉर्डिंग में व्यस्त थे। हम लोग वहीं पहुंचे, दादा ने बस एक शर्त रखी कि अगर बिहार और झारखंड की संस्था उन पर लगाया बैन सशर्त वापस ले ले तो वो कोलकाता की संस्था से बात करके मामला खत्म करा देंगे और अगले दिन से भोले शंकर की शूटिंग शुरू हो जाएगी।
बिहार और झारखंड मोशन पिक्चर्स एसोसिएशन के माई बाप कहे जाने वाले डॉक्टर सुनील ही ऐसा कर सकते थे, और मेरा इससे पहले उनसे कोई परिचय भी नहीं था। एक दो शुभचिंतकों ने सलाह भी दी कि सीधे डॉक्टर सुनील को फोन कीजिए और वो इतने नेक इंसान हैं कि किसी निर्माता का नुकसान नहीं होने देंगे। लेकिन मैंने इस मामले में मनोज तिवारी की मदद लेना उचित समझा। मनोज तिवारी ने मामले की गंभीरता को देखते हुए पूरा किस्सा अपने हाथ में ले लिया। डॉक्टर सुनील को उन्होंने फोन भी किया और ये भी कहा कि शाम तक मिथुन दा और उनके परिजनों पर बिहार झारखंड में लगे बैन को वो हटवा देंगे और इस बारे में फैक्स भी मंगवा लेंगे। मैंने यही बात मिथुन दा को बताई, वो अपना काम खत्म करके घर जा चुके थे, लेकिन जाने से पहले वो अपने करीबी विजय उपाध्याय को हमारे दफ्तर में बिठा गए, ये कहकर कि अगर मेरे पास फैक्स आ जाए तो विजय उन्हें इत्तला करेंगे और वो अगले दिन आठ बजे कमालिस्तान पहुंच जाएंगे शूटिंग करने।
सूरज ढल गया, रात घिर आई, तारे निकल आए, लेकिन फैक्स नहीं आया। थोड़ी देर बाद मनोज तिवारी भी दफ्तर आ गए। वो भी हमारी परेशानी में बराबर परेशान दिखे। गुलशन भाटिया जी कहां तो अपनी पहली फिल्म के पहले दिन की शूटिंग के लिए दिल्ली से आए थे, और कहां गले पड़ गई ये मुसीबत। मनोज तिवारी ने एक दो फोन और किए और फिर मुझे खुद लगने लगा कि बात बन नहीं पाएगी। लिहाजा मैंने भाटिया जी से सलाह ली कि हम लोग मुंबई का शेड्यूल कैंसल कर देते हैं और अगले शेड्यूल की तैयारी करते हैं। फिल्म का अगला शेड्यूल मुंबई का शेड्यूल खत्म करते ही एक दिसंबर से लखनऊ में था। मैंने कहा कि जब तक हम लखनऊ में शूटिंग करेंगे तब तक मामला शायद निपट जाए। भाटिया जी और मनोज तिवारी दोनों को मेरी सलाह ठीक लगी और आधी रात के बाद करीब दो बजे हम लोग दफ्तर से निकले सुबह की शूटिंग कैंसिल करने का फैसला लेकर। घर पहुंचकर नींद कहां आनी थी, बस सोचता रहा कि आखिर वजह क्या है, क्या ईश्वर इम्तिहान ले रहा है। कहते हैं कि ईश्वर कुछ भी देने से पहले परीक्षा ज़रूर लेता है। अब लगता है कि शायद ऐसा ही था। हरिवंश राय बच्चन ने अपने बेटे अमिताभ को नैनीताल के शेरवुड स्कूल में एक सीख दी थी, "मन का हो तो अच्छा ना हो तो और भी अच्छा।" इस लाइन का फलसफा समझने का वक्त एक बार और सामने था। वो काली रात शायद मैं भी कभी भूल नहीं पाऊंगा। अंजोरियो होने को थी, लेकिन नींद ना जाने कहां खो चुकी थी। आज बस इतना ही, अगले अंक में भोले शंकर की शूटिंग के पहले दिन के बारे में कुछ बातें।
कहा सुना माफ़,
पंकज शुक्ल
निर्देशक- भोले शंकर
रोचक विवरण है-आगे इन्तजार है.
जवाब देंहटाएंआप स -विस्तार ,
जवाब देंहटाएंसारा किस्सा सुना रहे हैँ
तब पता लग रहा है कि,
एक फिल्म के रीलीझ होने तक कितनी समस्याओँ से सामना करना पडता है !
दर्शक तो फिल्म देखकर कह देते हैँ कि अच्छी है या बस ठीक !
- लावण्या
वाकई काफी रोचक विवरण है.....अगले विवरण का ईंतजार है।
जवाब देंहटाएंअत्यंत रुचिकर प्रसंग है ....आपके अगले लेख का इंतजार रहेगा
जवाब देंहटाएंआप सभी का हार्दिक आभार...
जवाब देंहटाएंसादर,
पंकज
rochak vivran...kai baar aise museebat ke palon ka saamna karna padta hai.
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