रविवार, 30 जून 2013

शाहरुख का ‘बहादुर’ और वॉटरमैन

पंकज शुक्ल

बहादुर के परिवेश के बारे में बताते वक्त 78 साल के आबिद सुरती के चेहरे की चमक देखने लायक थी। फिर जैसे ज़ोर का झोंका आए और लौ फड़फड़ाने लगे, वैसी ही बेचैनी के साथ बताने लगे, “शाहरुख से पहले कबीर सदानंद ने भी बहादुर पर फिल्म बनाने की प्लानिंग की थी। हमने इस किरदार को ट्रेडमार्क रजिस्टर्ड कराना चाहा। पर पता चला कि एक बहुत बड़े मीडिया हाउस ने 'बहादुर बाई आबिद सुरती' नाम का ट्रेडमार्क अपने नाम रजिस्टर्ड करा लिया है।”

गतांक से आगे...

शाहरुख खान के घर उस रोज़ उनसे लंबी बातें हुईं। बचपन की शरारतों के बारे में वो बोले, अपने सपनों के बारे में बातें की और बताया कि खाली वक्त में कैसे वो खुद को किताबों में बिजी रखते हैं। नीचे हाल में खड़े खड़े ऊपर के कमरे की तरफ इशारा किया और बोले, एक पूरी लाइब्रेरी मैंने बना रखी है वहां। आर्यन को तो ज्यादा किताबों का शौक रहा नहीं, हां, सुहाना को पन्नों में खोए रहना अच्छा लगता है।‘ बात घूम फिरकर फिर सिनेमा पर आई और एक बार फिर शाहरुख के दिल से छलक आई वो ख्वाहिश जो वो हिंदी सिनेमा के बादशाह होकर भी पूरी नहीं कर पा रहे हैं। दरअसल, शाहरुख बड़े परदे पर ‘बहादुर’ बनना चाहते हैं। जिनकी उम्र पैंतालिस पचास के आसपास होगी, उनको अपने बचपन के इंद्रजाल कॉमिक्स ज़रूर याद होंगे। एक रूपये की एक किताब मिलती थी और वो एक रुपया भी जुगाड़ना जतन का काम होता था। किराए पर तब 10 पैसे में मिला करते थे कॉमिक्स।

इंद्रजाल कॉमिक्स याद होंगे तो फिर उनका एक किरदार ‘बहादुर’ भी याद होगा। ‘बहादुर’ यानी इसी नाम से बनी कॉमिक सीरीज का हीरो। बाप जिसका डाकू था, लेकिन उसने कानून के पाले में आने का फैसला किया। केसरिया कुर्ता, डेनिम की जींस। कॉमिक्स की दुनिया का पहला हिंदुस्तानी हीरो। दुनिया भर में वो आबिद सुरती के बहादुर के नाम से मशहूर हुआ। शाहरुख खान इस किरदार का चोला पहनकर बड़े परदे पर आना चाहते हैं। बोले, “बचपन में इसके बारे में खूब पढ़ा। पूरा कलेक्शन जमा करके रखा। अब मन किया कि इस पर फिल्म बनाई जाए तो इसके कॉपराइट नहीं मिल रहे।” शाहरुख खान जैसी हस्ती किसी किरदार पर फिल्म बनाना चाहे और उसके सामने ऐसी अड़चनें आ जाए कि वो भी न पार सकें तो मन में उत्सुकता तो जागती ही है।

यहां से शाहरुख ने शुरू की कहानी मुंबई के वॉटरमैन की। ये वॉटरमैन और कोई नहीं, हमारे आपके अजीज़ आबिद सुरती साब ही हैं। जी हां, वही जिनके कॉमिक किरदार ढब्बू जी ने कभी धर्मवीर भारती तक पर उर्दू को बढ़ावा देने का इल्जाम लगा दिया था, और वो इसलिए कि ढब्बूजी धर्मयुग के पीछे के पन्ने पर छपते थे और लोग धर्मयुग खरीदने के बाद उसे पीछे से ही पढ़ना शुरू करते थे। आबिद सुरती के किरदार दुनिया भर में मशहूर हैं। उनकी लिखी कहानियां परदेस में हिंदी सीखने के इच्छुक लोगों को क्लासरूम में पढ़ाई जाती हैं। नाटककार भी वो रहे। फिल्मों में स्पॉट बॉय से लेकर लेखन तक में हाथ आजमाया। पेंटर ऐसे कि अगर एक ही लीक पकड़े रहते तो आज एम एफ हुसैन से आगे के नहीं तो कम से कम बराबर के कलाकार होते।

आबिद सुरती मुंबई से थोड़ा दूर बसे इलाके मीरा रोड में अकेले रहते हैं। दोनों बेटे सैटल हो चुके हैं। एक का तो शाहरुख ने नाम भी लिया, किसी कंपनी में नौकरी लगवाने के सिलसिले में। आबिद की पत्नी अपने बच्चों के साथ हैं, और वो मीरा रोड में ही ड्रॉप डेड एनजीओ के नाम पर नलों से पानी टपकने के खिलाफ मुहिम चलाते हैं। पढ़ने में अजीब सा लग सकता है लेकिन कोई छह साल पहले अपने एक दोस्त के घर में लेटे आबिद सुरती को घर के बूंद बूंद टपकते नल ने सोने नहीं दिया। और, बस वहीं से ये ख्याल जनमा। हर इतवार आबिद अपना झोला लेकर घर से निकलने लगे। झोले में होती कुछ रिंचे, प्लास और वाशर। वो सोसाइटी के घर घर जाकर टपकते नल ठीक करने लगे। और, यहीं से शुरू हुई ड्रॉप डेड फाउंडेशन की। शाहरुख खान ने आबिद सुरती की इस मुहिम के बारे में किसी अखबार में पढ़ा और उन्हें एक लंबा एसएमएस भेज दिया। शाहरुख ने ये भी लिखा कि कैसे वो बचपन से “बहादुर” के फैन रहे हैं। फैन मैं भी बचपन से ढब्बू जी का रहा हूं। शाहरुख ने बस इस किरदार को बनाने वाले आबिद सुरती से मुलाकात की मेरी इच्छा को फिर से जगा दिया। आबिद सुरती की फ्रेंड लिस्ट में मैं शामिल रहा हूं और उनकी सालगिरह पर मुबारक़बाद भी भेजता रहा हूं। इस बार बात आगे बढ़ी। मैंने संदेश भेजा। उनका जवाब आया। पिछले इतवार हम मिले फन रिपब्लिक के पास एक रेस्तरां में।

बातों बातों में ज़िक्र फिर से बहादुर का निकला। बहादुर के परिवेश के बारे में बताते वक्त 78 साल के आबिद सुरती के चेहरे की चमक देखने लायक थी। फिर जैसे ज़ोर का झोंका आए और लौ फड़फड़ाने लगे, वैसी ही बेचैनी के साथ बताने लगे, “शाहरुख से पहले कबीर सदानंद ने भी बहादुर पर फिल्म बनाने की प्लानिंग की थी। हमने इस किरदार को ट्रेडमार्क रजिस्टर्ड कराना चाहा। पर पता चला कि एक बहुत बड़े मीडिया हाउस ने 'बहादुर बाई आबिद सुरती' नाम का ट्रेडमार्क अपने नाम रजिस्टर्ड करा लिया है।” सुनकर बड़ा दुख हुआ। दूसरों के अधिकारों की दिन रात बात करने वाले मीडिया हाउस क्या ऐसे भी किसी कलाकार का हक मार देते हैं। कॉपीराइट कानून कहता है कि किसी कृति के बनाते ही उसका कॉपीराइट सृजक के नाम हो जाता है। उसका कहीं रजिस्ट्रेशन जरूरी नहीं। माने कि अगर कोई ढंग का वकील आबिद सुरती का मामला अपने हाथ में ले तो उनके बौद्धिक संपदा अधिकार उन्हें मिल सकते हैं। मुझे खुद एक हफ्ता लग गया इस बात को दुनिया के सामने लाने में। चाहता हूं उनकी लड़ाई लड़ूं। जितना बन सकेगा कोशिश करूंगा। क्या आप साथ देंगे?

10 टिप्‍पणियां:

  1. बड़े दुःख की बात है, हम भी बचपन से ढब्बू जी और बहादुर के फेन रहे और आज भी अगर वोह कॉमिक मिल जाये तो बड़े चाव से पढ़ते हैं, पंकज जी आप आगे बढिए हम से भी जैसे बन पड़ेगा अवश्य साथ देंगे !! आबिद जी हमारे आइडियल हैं हम उनका मन से आदर करते हैं !

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  2. social media se neenv rakhne kee shuruaat karke ek bada aandolan khada kiyaa ja sakta hai.. hum saath hain.

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  3. बड़ा दुख हुआ जान कर पूरे मसले के बारे मे ... 'बहादुर' हमारा भी पसंदीदा किरदार था ... आबिद साहब को उनका हक़ मिलना ही चाहिए !

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    1. इस मसले को बाकी लोगो तक पहुंचा पाएँ तो समझेंगे कुछ सार्थक कर पाये ... :)

      इस ख्याल से आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आप की इस पोस्ट को भी शामिल किया है ... नीचे दिये लिंक पर एक बार जा कर देखें !

      ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन खास है १ जुलाई - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  4. ये सरासर गलत है- ये धोखा और और उसके अधिकारों का हनन है हम आपके साथ हैं---

    शाहिद "अजनबी"

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  5. ये सरासर गलत है- ये धोखा और और उसके अधिकारों का हनन है हम आपके साथ हैं---

    शाहिद "अजनबी"

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  6. apni kalaktari ka mahatv ek kalakaar ke liye vaise hi hota hai jaise kisi maa ka apne bachche ke liye. Abid ji ke dard ko samajna koi mushkil nai. Yah baat aaj unke saath hui kal kisi ke saath bhi ho sakti hai.Is maamle ko raushni me laakar apne bada kaam kiya hai. Abid ji desh ki dharohar hain.Hum aapke saath hain. Shukriya.

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  7. This s very unfaire. Yah to kisi ke bhi saath ho sakta hi. Kisi bhi srajak se uski rachna ka vahi rishta hota hai jo ek maa ka apne bachche ke saath. Keep it up. I hope is ladaayi me aapke saath saara desh hoga. Shukriya Pankaj ji.

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  8. आलेख पढ़कर आबिद साहब और शाहरुख खान के लिए जहां दिल में इज्जत आफजाई हुई, वहीं एक बड़े मीडिया हॉउस की माफियागिरी के बारे में पढ़कर अचंभित हूं।

    आपने सही लिखा है: "(आबिद सुरती साहब ने) … …इस किरदार को ट्रेडमार्क रजिस्टर्ड कराना चाहा। पर पता चला कि एक बहुत बड़े मीडिया हाउस ने 'बहादुर बाई आबिद सुरती' नाम का ट्रेडमार्क अपने नाम रजिस्टर्ड करा लिया है।” सुनकर बड़ा दुख हुआ। दूसरों के अधिकारों की दिन रात बात करने वाले मीडिया हाउस क्या ऐसे भी किसी कलाकार का हक मार देते हैं। कॉपीराइट कानून कहता है कि किसी कृति के बनाते ही उसका कॉपीराइट सृजक के नाम हो जाता है। उसका कहीं रजिस्ट्रेशन जरूरी नहीं। माने कि अगर कोई ढंग का वकील आबिद सुरती का मामला अपने हाथ में ले तो उनके बौद्धिक संपदा अधिकार उन्हें मिल सकते हैं। मुझे खुद एक हफ्ता लग गया इस बात को दुनिया के सामने लाने में। चाहता हूं उनकी लड़ाई लड़ूं। जितना बन सकेगा कोशिश करूंगा। क्या आप साथ देंगे?"

    अंधेरगर्दी की भी हद होती है। बहादुर के कैरेक्टर को लेकर वाकई में एक निहायत शानदार फ़िल्म बनाई जानी चाहिए। सर, मैं दिलोजान से आपके साथ हूं, आपकी इस मुहिम के साथ हूं।

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  9. आलेख पढ़कर आबिद साहब और शाहरुख खान के लिए जहां दिल में इज्जत आफजाई हुई, वहीं एक बड़े मीडिया हॉउस की माफियागिरी के बारे में पढ़कर अचंभित हूं।

    आपने सही लिखा है: "(आबिद सुरती साहब ने) … …इस किरदार को ट्रेडमार्क रजिस्टर्ड कराना चाहा। पर पता चला कि एक बहुत बड़े मीडिया हाउस ने 'बहादुर बाई आबिद सुरती' नाम का ट्रेडमार्क अपने नाम रजिस्टर्ड करा लिया है।” सुनकर बड़ा दुख हुआ। दूसरों के अधिकारों की दिन रात बात करने वाले मीडिया हाउस क्या ऐसे भी किसी कलाकार का हक मार देते हैं। कॉपीराइट कानून कहता है कि किसी कृति के बनाते ही उसका कॉपीराइट सृजक के नाम हो जाता है। उसका कहीं रजिस्ट्रेशन जरूरी नहीं। माने कि अगर कोई ढंग का वकील आबिद सुरती का मामला अपने हाथ में ले तो उनके बौद्धिक संपदा अधिकार उन्हें मिल सकते हैं। मुझे खुद एक हफ्ता लग गया इस बात को दुनिया के सामने लाने में। चाहता हूं उनकी लड़ाई लड़ूं। जितना बन सकेगा कोशिश करूंगा। क्या आप साथ देंगे?"

    अंधेरगर्दी की भी हद होती है। बहादुर के कैरेक्टर को लेकर वाकई में एक निहायत शानदार फ़िल्म बनाई जानी चाहिए। सर, मैं दिलोजान से आपके साथ हूं, आपकी इस मुहिम के साथ हूं।

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