देश में सरकार की तरफ से सिनेमा का सबसे बड़ा पुरस्कार दादा साहब फाल्के पुरस्कार जिन धुंदीराज गोविंद फाल्के के नाम से दिया जाता है, उनकी आत्मा लोकप्रिय पुरस्कारों के नए स्तर को देखकर जरूर दुखी होगी। लेकिन, शुचिता के पक्षधर करें भी तो क्या? क्योंकि खुद भारत सरकार पिछले साल सलमान खान की दबंग को संपूर्ण मनोरंजन देने वाली पूरे भारत में बनी फिल्मों में से सबसे अच्छी फिल्म मान चुकी है। नतीजा साफ है कभी वयस्क फिल्में दिखाने वाले थिएटरों के आसपास भी दिखने से डरने वाले बच्चे अब पीठ पर स्कूल का बस्ता टांगे झुंड बनाकर द डर्टी पिक्चर देखने पहुंचते हैं।
© पंकज शुक्ल
कहते हैं सिनेमा बड़ा हो गया है। बात भी सही है। अगले साल किसी भारतीय द्वारा बनाई देश की पहली फिल्म राजा हरिश्चंद्र के निर्माण के सौ साल पूरे हो रहे हैं। हिंदी सिनेमा के निर्देशकों की संस्था इसके जश्न की तैयारियां भी शुरू कर चुकी है और इसे लेकर मुंबई से दिल्ली तक हलचल भी तेज है। ये वही सिनेमा है जिसके प्रचार के लिए बनने वाले पोस्टरों पर पहले बड़ा बड़ा लिखा रहता था- संपूर्ण पारिवारिक मनोरंजन फिल्म। पर, जरा रुककर सोचिए तो जरा, और बताइए उस फिल्म का नाम जो आपने पिछली बार पूरे परिवार के साथ देखी हो।
शायद दिमाग पर जोर डालना पड़ रहा हो। जी हां, सिनेमा अब परिवार के साथ देखने लायक बचा ही नहीं है और हिंदी सिनेमा के सबसे अहम माने जाने वाले तीन लोकप्रिय पुरस्कारों स्क्रीन पुरस्कार, फिल्म फेयर पुरस्कार और जी पुरस्कार में से जिस पहले पुरस्कार से इस सीजन की बोहनी हुई है, उसने वाकई बता दिया है सिनेमा बड़ा हो गया। पिछले साल देल्ही बेली के एक गाने को सेंसर बोर्ड ने देश भर के टीवी चैनलों पर प्रसारित करने की मंजूरी दी। उत्तर भारत की एक भदेस गाली को तोड़मरोड़ कर बने इस गाने को सुनने के बाद निर्देशक राम गोपाल वर्मा ने कहा, हमें आमिर खान का शुक्रिया अदा करना चाहिए जिन्होंने पूरी एक पीढ़ी को एकदम से बड़ा कर दिया। बात भले तंज में कही गई हो, लेकिन इसके निहितार्थ हिंदी सिनेमा के उस नए चलन को पुख्ता करते हैं जिसमें अब शाहरूख खान बिकाऊ रहें हों या न रहें पर सेक्स ही कामयाबी की पहली गारंटी बन गया है।
किसी भी उद्योग में दिए जाने वाले पुरस्कार उस क्षेत्र की गुणवत्ता, चलन और चरित्र को ही नहीं दर्शाते बल्कि पुरस्कृत कलाकृतियों को इनका मानक भी मान लिए जाने की परंपरा रही है। तो, क्या अब हिंदी सिनेमा में आने वाली कलाकारों और निर्देशकों की नई पीढ़ी सिर्फ द डर्टी पिक्टर, शैतान और देल्ही बेली को अपना आदर्श नहीं मानेगी? एक्सप्रेस समूह की पत्रिका स्क्रीन द्वारा दिए जाने वाले पुरस्कारों में इस साल जिस तरह केवल वयस्कों के लिए बनी फिल्मों ने जी भरकर पुरस्कार जीते, उससे तो यही लगता है कभी हाशिए पर रहने वाला और आमतौर पर अछूत समझे जाने वाला एडल्ट सिनेमा ही अब मुख्य धारा का सिनेमा बन चुका है। और, ऐसा है तो फिर क्या इसे बदलते समाज का आईना नहीं कहा जाना चाहिए? छोटे परदे पर पॉर्न स्टार सनी लिओन की मौजूदगी को अपना लेने वालों के लिए घर से बाहर सिनेमाघर के अंधेरे और एकांत में शायद यही सब कुछ एंटरटेनमेंट है। जैसे कि विद्या बालन अपनी फिल्म द डर्टी पिक्चर में कहती भी हैं, फिल्म केवल तीन वजहों से चलती है-एंटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट। और मैं एंटरटेनमेंट हूं। लेकिन लोग यह भूल जाते हैं कि ये बात वो किरदार कह रहा है जो फिल्म जगत में कभी आइटम गर्ल से आगे गया ही नहीं। पर अब हर हीरोइन आइटम बनना चाहती है। आइटम यानी मुंबइया टपोरी भाषा का वो शब्द जो निचले तबके में आमतौर पर किसी ऐसी लड़की के लिए इस्तेमाल होता है, जो छिछोरे छोकरों को देखकर हमेशा मुस्कुराती है।
विद्या बालन कहती भी हैं, लोग मुझसे पूछते हैं कि मैं आइटम नंबर क्यूं नहीं करती। अरे जब मैंने पूरी फिल्म ही आइटम गर्ल की कर दी तो आइटम नंबर का क्या?लेकिन, हिंदी सिनेमा की नायिका की ऐसा ही मुस्कुराहाट कातिलाना है। और इसका असर दूर तक होता है। कभी केवल वयस्कों के लिए पोस्टर वाली फिल्मों के थिएटर तक जाने से पहले आसपास किसी परिचित की संभावित मौजूदगी की आहट लेते रहने वाले स्कूली बच्चे इस बार फिल्म द डर्टी पिक्टर दिखाने वाले सिनेमाघरों के सामने पीठ पर अपना बस्ता टांगे दर्जनों के झुंड में दिखाई दिए और फिल्मी विद्वानों ने इसे ही पिछले साल की सर्वोत्तम फिल्म भी माना। ऐसे में अगर पुरस्कार समारोह के दौरान विद्रूपता की सारी सीमाएं लांघते हुए फिल्म जगत के तीन पहले सितारों में से एक शाहरूख खान अगर पर तमाम तरह की भोंडी हरकतें अब करते भी हैं तो फिर गलत क्या? हौसला तो हम ने ही उनका बढ़ाया है। इस हौसले का ही नतीजा है कि मुंबई की पत्रकार वार्ताओं में उनकी देखादेखी अब ऋतिक रोशन भी कोई टेढ़ा मेढ़ा सवाल सुनकर सवाल करने वाली पत्रकार को अपने बेडरूम तक आने का न्यौता दे देते हैं, और वो भी सरेआम। कहीं से कोई विरोध नहीं, किसी पत्रकार संगठन के तरफ से कोई बयान तक नहीं। वजह? शायद अब हमें भी इसी में मजा आता है।
साल 2012 के पहले पुरस्कारों ने ये पूरी तरह साफ कर दिया कि सिनेमा की नायिका का पैमाना भी बदल रहा है। अब फिल्म में आइटम नंबर करने के लिए अलग से किसी मॉडल को ढूंढने की जरूरत नहीं होती। अब नंबर वन हीरोइन बनने की दावेदार कैटरीना कैफ खुद चिकनी चमेली बनने को तैयार है। अरसा पहले यही काम ऐश्वर्या राय ने करिश्मा कपूर की फिल्म शक्ति में इश्क़ कमीना में भी किया था। लेकिन मामला कभी मुख्य धारा का वैसे नहीं बना जैसा विद्या बालन ने फिल्म द डर्टी पिक्चर में कर दिखाया है। वह बीते साल की सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री बन चुकी हैं तो जाहिर है कि अब होड़ उनसे आगे निकलने की ही होगी। ऐसे में हर दूसरी अभिनेत्री न पूरी फिल्म में सही तो कम से कम किसी गाने में ही सिल्क स्मिता सी सिल्की सिल्की दिखने की कोशिश तो करेगी ही। चिकनी चमेली इसी का विस्तार है। विद्या बालन कहती भी हैं, लोग मुझसे पूछते हैं कि मैं आइटम नंबर क्यूं नहीं करती। अरे जब मैंने पूरी फिल्म ही आइटम गर्ल की कर दी तो आइटम नंबर का क्या? उनकी बात में दम है। और इसी दम का नतीजा है कि उनको बांग्ला साहित्य के भद्रलोक की परिणीता बनाकर बड़े परदे पर लाए मशहूर फिल्म निर्माता विधु विनोद चोपड़ा भी अब अपनी अगली फिल्म फरारी की सवारी में विद्या से एक आइटम नंबर कराने की सोच रहे हैं।
जमाना बदगुमानी के बोलबाले का है और इस मैली गंगा में नाक बंद करके भी सब हाथ धोना चाहते हैं। तो भला फिल्म पुरस्कार ही पीछे क्यूं रहें। स्क्रीन पुरस्कारों में बेहतरीन अदाकारा का तमगा पाने के बाद विद्या बालन अब जी सिने अवार्ड्स समारोह को थोड़ा और नमकीन बनाने की तैयारी में हैं। जमाने की बलिहारी देखिए जिन पुरस्कारों के लिए अभी तक जी चैनल शाहरुख खान और प्रियंका चोपड़ा की मेजबानी को ही अपना तुरुप का इक्का मान रहा था, वही चैनल अब बाकायदा प्रेस विज्ञप्ति जारी कर ये बता रहा है कि विद्या बालन इस समारोह में दक्षिण के सिनेमा में नायिका के तमाम बिंबों और प्रतिबिंबों को अपनी शोख अदाओं के जरिए मंच पर सजीव करेंगी। वजह यही है कि ज्यादा से ज्यादा विज्ञापनदाता इसके लिए आए आएं। एक पान मसाला कंपनी पहले ही इस गंगा में तरने के लिए डुबकी लगा चुकी है।
बात लड़कों की करें तो नई पीढ़ी के कलाकारों में इन दिनों आगे निकलने की होड़ रणबीर कपूर और इमरान खान में लगी है। रणबीर ने अपनी इमेज बचाए रखने के लिए भले देल्ही बेली से हाथ जोड़ लिए हों, पर इमरान खान इसे करके अब भी न सिर्फ गौरान्वित महसूस करते हैं बल्कि अपने मामू आमिर खान के साथ मिलकर इस बात की जी तोड़ कोशिश कर रहे हैं कि किसी तरह ये फिल्म टेलीविजन पर भी आ जाए और उनके खास हुनर का जलवा हिंदुस्तान का बच्चा बच्चा देख ले। इस बारे में बात करने पर वह कहते हैं, हमने पहले ही लोगों का बता दिया था कि ये फिल्म बड़ों की फिल्म है। और, इसकी भाषा वो है जो आम तौर पर आजकल बड़े लोग आपस में बातचीत करते वक्त इस्तेमाल करते हैं। लेकिन, उन दृश्यों का क्या जो वात्स्यायन के कामसूत्र को भी मात करते हैं? इस सवाल पर वो चुप्पी साध जाते हैं। वो चुप्पी साधें तो साधें रहे पुरस्कार देने वालों को इसी फिल्म का स्क्रीनप्ले पिछले साल बनी सारी फिल्मों में द बेस्ट लगा, आखिर खुश तो आमिर खान को भी रखना है न। फिल्म को दो पुरस्कार और भी मिले। एडल्ट फिल्मों के जश्न की रही सही कसर एक ऐसी फिल्म ने पूरी कर दी जिसके निर्माता अनुराग कश्यप की छवि ही ऐसी फिल्में बनाने की है, जो पंरपराओं से विद्रोह करती हों और फिल्म को यू सर्टिफिकेट दिए जाने की सोचती तक न हों। घर वालों से पैसे ऐंठने के लिए अपने ही किसी साथी का अपहरण कर लेने की तरकीब बताती और तमाम तरह की सामाजिक बुराइयों का जलसा सजाती इस फिल्म के निर्देशक को साल के पहले ही पुरस्कार में बीते साल अपनी पहली फिल्म बनाने वाले सारे निर्देशकों में सर्वोत्तम माना गया। बलिहारी है जमाने की भी और बलिहारी है सिनेमा के इस बदलते रूप की, जिसमें सेक्स, ड्रग्स, नशा सब जायज है। कुछ नाजायज है तो बस पूरे परिवार के साथ फिल्म देखने आना।
(नई दुनिया 22 जनवरी 2011 के साप्ताहिक परिशिष्ट 'रंगोली' में प्रकाशित)
पूरे परिवार के साथ फिल्म देखने आना नाजायज कहाँ है सर जी...?
जवाब देंहटाएंअनुराग कश्यप ने मुझे याद है 2010 में ऐसी फ़िल्में अपनी बेटी के साथ देखने का भी दावा किया था.... सो फैमली फ़िल्में हैं सपरिवार देखने जाना होगा..
बिल्कुल नाजायज नहीं है। लेकिन पूरे परिवार के साथ देखने लायक अब फिल्में बनती ही कितनी हैं। अनुराग कश्यप भी जाहिर है अपनी बेटी के साथ वही फिल्में देखने जाते होंगे, जिन्हें पिता और पुत्री दोनों एक साथ देखने में असहज नहीं महसूस करते होंगे। हालांकि, ये उनका निजी मसला है, इसमें हमें और आपको टिप्पणी करने से परहेज ही करना चाहिए।
जवाब देंहटाएंNice and Interesting Story and प्यार की बात Shared Ever.
जवाब देंहटाएंThank You.