मंगलवार, 10 अप्रैल 2012

अच्छी कहानियों पर तवज्जो देने की ज़रूरत: सनी देओल


सनी देओल का नाम लेते ही जो सबसे पहली इमेज जेहन में उभरती है वो है ढाई किलो के हाथ वाले एक ऐसे शख्स की, गुस्सा जिसकी नाक पर रहता है। लेकिन, सनी देओल असल जिंदगी में इसके ठीक उलट हैं। बेहद शांत स्वभाव, आसपास की चीजों पर पैनी नजर और फोटोग्राफी का शौक। सनी इन दिनों अपने करियर के बेहद अहम मोड़ पर हैं। और, इस मोड़ पर वो जो फिल्में कर रहे हैं, उनमें से हरेक में उनका किरदार दूसरे से बिल्कुल इतर है। सनी से एक और खास मुलाकात।

© पंकज शुक्ल

इन दिनों हर तरफ एक ही बात की चर्चा हो रही है कि हिंदी सिनेमा की गति और इसका ग्लैमर बदल रहा है। निर्माता निर्देशक फिर से जमीन से जुड़ी कहानियां तलाश रहे हैं। आपका क्या मानना है इस बारे में?
हिंदी सिनेमा की पहचान ही शुरू से इसकी कहानियों की ही वजह से रही है। स्टारडम से फिल्में चलती हैं, लेकिन उसके लिए भी कहानी पहली जरूरत है। मेरा निजी तौर पर ये मानना है कि किसी भी फिल्म को चलाने के लिए इसकी कहानी का दिलचस्प और मनोरंजक होना जरूरी है। विद्या बालन की फिल्म कहानी का असली हीरो इसकी कहानी ही है। लोग अब ग्लैमर के साथ साथ कहानियों में सच्चाई तलाश रहे हैं, ऐसी कहानियां जो उन्हें अपने आसपास की भी लगें और उनकी कल्पना को एक नए धरातल पर भी ले जाएं। ये अच्छा संकेत है कि हिंदी सिनेमा फिर से अपनी मजबूती को समझ रहा है और इस तरफ कोशिशें भी अच्छी हो रही हैं।
तो क्या समझा जाए कि एनआरआई सिनेमा और विदेशी लोकेशन्स पर शूटिंग करने के दिन हिंदी सिनेमा में लदने वाले हैं?
मैं जो समझ पा रहा हूं उसके मुताबिक हिंदी सिनेमा के दर्शक इन दिनों सूचनाओं के विस्फोट के दौर से गुजर रहे हैं। वे अपने घरों में तमाम टीवी चैनलों पर विदेश की खूबसूरत जगहों से लेकर वे सारी चीजें देखते हैं, जिन्हें देखने के लिए कभी सिर्फ सिनेमा ही उनके पास इकलौता जरिया हुआ करता था। लेकिन, इसके बावजूद ग्लैमर का आकर्षण तो रहना ही है। सिनेमा देश में बने या परदेस में, उसका दर्शकों के लिए ईमानदार होना जरूरी है। अगर फिल्म का हीरो दर्शकों को भाता है तो फिर वहां कहां जाकर क्या करता है? इसका फर्क नहीं पड़ता।
आपकी फिल्म मोहल्ला अस्सी हिंदी सिनेमा का एक ऐसा मोड़ कही जा रही है, जिसके आगे हिंदी सिनेमा एक नई पहचान पा सकता है। खासतौर से अपने कथानक की वजह से।

मोहल्ला अस्सी मैंने बहुत सोच विचार करने के बाद की है। ऐसी फिल्में रोज रोज नहीं बनती। फिल्म की शूटिंग पूरी होने के करीब है और अभी हम इसके गाने शूट करने बनारस आए हुए हैं। लोग मुझे बता रहे हैं कि बनारस में वैसे तो तमाम फिल्में शूट हो चुकी हैं, लेकिन किसी भी फिल्म में अब तक बनारस को बनारस के नजरिए से देखने की कोशिश नहीं की गई। काशीनाथ सिंह के उपन्यास काशी का अस्सी पर बन रही इस फिल्म का असली मंतव्य ही यही है कि लोग अपनी चीजों को अपने नजरिए से देखने की पहल शुरू करें। मोहल्ला अस्सी की चर्चा इसीलिए हो रही है और इस फिल्म का सबसे बड़ा योगदान यही है कि इसी फिल्म की शुरूआत ने लोगों को जमीन से जुड़ी कहानियों की तरफ ध्यान देने के लिए प्रेरित किया। ये हिंदी सिनेमा का टर्निंग प्वाइंट हो सकती है।
शाहरुख खान के गाने छैंया छैंया में जैसे ट्रेन का और कैटरीना कैफ के गाने धुनकी धुनकी में जिस तरह ट्रकों का इस्तेमाल किया गया, वैसे ही इस फिल्म के गाने हर हर गंगे में नावों का इस्तेमाल किया जा रहा है। इस गाने के बारे में कुछ बताएंगे?
फिल्म के निर्माता विनय तिवारी गोरखपुर से हैं और बनारस उनके दूसरे घर जैसा ही रहा है। उन्होंने और डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने मिलकर इस गाने की परिकल्पना तैयार की और कोरियोग्राफर अहमद खान ने इसे हकीकत में तब्दील करने की कोशिश की है। अपने पूरे प्रवाह के दौरान गंगा दो स्थान पर ही धारा के विपरीत यानी दक्षिण से उत्तर की तरफ बहती है। ये स्थान हैं-उत्तरकाशी और बनारस। वरूणा और अस्सी के इस मिलन स्थल पर हमने एक गाना शूट किया है जिसमें पाल लगी दर्जनों नावें एक साथ गंगा पर तैरती दिखेंगी। बहुत ही मुश्किल शूट था ये। नावों पर सवार सैकड़ों लोग और तमाम दूसरे कलाकार। लेकिन, हमें खुशी है कि पूरा गाना बहुत ही सुरक्षित तरीके से शूट हो गया है, लोग जल्द ही इसे टीवी चैनलों पर देख पाएंगे।
और आगे?
इन दिनों काफी कुछ चल रहा है और मुझे उम्मीद है कि मेरे प्रशंसकों को इस बारे में जल्द ही जानकारी भी मिलनी शुरू हो जाएगी। मैं इन दिनों कहानियां खूब सुन रहा हूं और इनमें से तमाम नए निर्देशक और लेखक भी हैं। सिनेमा में जो नए लोग आ रहे हैं, उनका नजरिया एक दो दशक पहले के निर्देशकों से बिल्कुल अलग है। सबसे ज्यादा खुशी मुझे इस बात की भी होती है कि हिंदी सिनेमा में आ रहे नए लोगों की कहानियां पश्चिम से ज्यादा प्रभावित नहीं है। ये लोग हिंदुस्तान को जेहन में रखकर सिनेमा लिख रहे हैं और आने वाला सिनेमा इन्हीं लोगों का है।

संपर्क - pankajshuklaa@gmail.com

4 टिप्‍पणियां:

  1. बढिया साक्षात्‍कार, दिनों बाद सन्‍नी देओल की इंटरव्‍यू पढा.. वाकई एक ईमानदार नायक.. और भी कुछ पढवाइए.. संभव हो तो कासिद काशीनाथ जी का इंटरव्‍यू ले आए.. :)

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया सारंग। काशीनाथ तक भी भिजवाते हैं, क़ासिद को वक़्त आने दीजिए।

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  2. सन्नी देओल का इंटरव्यू पढ़कर बहुत ही अच्छा लगा। मुहल्ला अस्सी जैसी फिल्में सच्चे कथानक पर बन रही हैं और बनारस से इसका गहरा नाता है। दर्शकों को सन्नी देओल की यह फिल्म जरूर पसंद आएगी। नेशनल दुनिया के रीजनल एडिटर बनने पर आपको हमारी हार्दिक शुभकामना और सादर प्रणाम। आशा है यह समाचारपत्र पाठकों को पसंद आएगी और एक नया मुकाम बनायेगा।

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