भोले शंकर (22) । गतांक से आगे...
लखनऊ में फिल्म भोले शंकर का पहला शेड्यूल खत्म होने के बाद पूरी यूनिट ने मुंबई लौटने की तैयारी शुरू कर दी। फिल्म उद्योग को सरकारी लापरवाही का शिकार किस तरह होना पड़ता है, इसकी एक मिसाल भी इसी दौरान हमें देखने को मिली। रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव की नज़रें इन दिनों पूर्वी उत्तर प्रदेश पर टिकी हैं। अपनी पार्टी का अधिवेशन भी वो हाल ही में यहां कर चुके हैं। मंशा ये बताई जा रही है कि पश्चिमी बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश से मिलकर बन सकने वाले भोजपुरी बहुल इलाके को एक नए राज्य की शक्ल दी जाए, और कम से कम ऐसा एक तो प्रदेश हो, जहां आरजेडी की सत्ता फिर से कायम की जा सके। कभी ज़ी टीवी तो कभी स्टार प्लस की टीआरपी बढ़ाने के लिए इनके शोज़ में पहुंचने वाले लालू प्रसाद यादव को भोजपुरी फिल्म जगत से इसका दस फीसदी भी लगाव हो जाए तो इस सिनेमा का बेड़ा पार हो सकता है। भोजपुरी सिनेमा का कोई माई बाप नहीं है। मुट्ठी भर लोग आकर मुंबई में सिनेमाघरों से भोजपुरी फिल्में उतरवा जाते हैं, और मुंबई से लेकर दिल्ली तक सब कुछ बयानबाजी के बाद शांत हो जाता है।
जहां की भाषा भोजपुरी है, वहां के लोगों को इस सिनेमा की परवाह नहीं और जहां इस सिनेमा की परवरिश हो रही है, वहां इसे घुसपैठिया करार दिया जा चुका है। खैर, मैं बात कर रहा था फिल्म भोले शंकर की यूनिट के मुंबई लौटने की। कोई सत्तर लोगों की क्रू को एक साथ किसी ट्रेन में रिजर्वेशन नहीं मिल सकता था, लिहाजा रेल मंत्री के कार्यालय से संपर्क किया गया। भरोसा मिला कि काम हो जाएगा। अब एक साथ कोई शख्स सत्तर टिकटें लखनऊ से मुंबई की खरीदे तो रेल मंत्रालय चाहे तो ट्रेन में नई बोगी भी लगवा सकता है। और बात जब भोजपुरी सिनेमा की हो तो लालू के मंत्रालय को तो इसकी तरफ खास तवज्जो देनी चाहिए। लेकिन, रेल मंत्री के कार्यालय से ऐन मौके पर जवाब आया कि काम नहीं हो पाया। अब इसमें किसकी कितनी गलती है, इस पर बहस का वक्त नहीं था। वक्त था अब ज़मीनी धरातल की असलियत को समझने का। जिन रेल मंत्री के कार्यालय ने एक भोजपुरी फिल्म के तकनीशियनों को अपनी रेल में जगह देने से हाथ खड़े कर दिए। उसी रेल विभाग के कर्मचारियों ने हमारी मज़बूरी का फायदा उठाते हुए हमसे लखनऊ स्टेशन पर मोटी रिश्वत ली और उसी ट्रेन में जगह दिला दी, जिस ट्रेन में जगह ना होने का रोना थोड़ी ही देर पहले रेल मंत्री कार्यालय के अफसर हमसे रो चुके थे।
खैर, किसी तरह सब लोग मुंबई पहुंचे। सारा माल असबाब करीने से लगा दिया गया। अब तक की शूटिंग का रिजल्ट भी हमने लैब में जाकर देख लिया। हम चुनौती थी, मुंबई शेड्यूल शुरू करने की, जिसके लिए हर दिन ज़रूरत थी हिंदी सिनेमा के कल्ट स्टार मिथुन चक्रवर्ती की। लेकिन उनके और बिहार के वितरक डॉक्टर सुनील के बीच चल रहा विवाद अब तक काफी तूल पकड़ चुका था। यहां तक कि भोजपुरी सिनेमा के दो खेमों में बंटने तक की नौबत आ गई, मुंबई से लेकर पटना तक बयानबाज़ी के दौर शुरू हो चुके थे और ऐसे में मिथुन ने फैसला लिया, सब कुछ फेडरेशन पर छोड़ देने का। उनका कहना था कि अब जो भी फैसला होगा वो फेडरेशन ही करेगी और फिल्म भोले शंकर की शूटिंग भी उसके बाद ही होगी। इस बीच मिथुन की समर्थन लॉबी ने अपने हीरो की नज़रों में चढ़ने के लिए कुछ अजीब हरकतें शुरू कर दीं। इन लोगों ने कमालिस्तान और दूसरे स्टूडियोज़ में जाकर भोजपुरी फिल्मों की शूटिंग बंद करा दीं। ये बात मुझे पता चली तो मैंने दादा को बताया, वो उस दिन पुणे में किसी फिल्म की शूटिंग कर रहे थे। दादा की दरियादिली देखिए, उन्होंने वहीं से फोन करके इन फिल्मों के निर्माताओं से बात की और कहा कि उनके विवाद के चलते वो भोजपुरी सिनेमा का नुकसान कतई नहीं चाहते। अगले दिन निजी दिलचस्पी लेकर मिथुन चक्रवर्ती ने किसी भी यूनियन को किसी भी भोजपुरी फिल्म की शूटिंग से दूर रहने को कहा। लेकिन फिल्म भोले शंकर में उनकी ऐक्टिंग को लेकर असमंजस अब भी कायम था।
दो तीन दिन बाद मिथुन वापस मुंबई लौटे, पता चला कि वो फिल्म सिटी में फिल्म सी कंपनी की शूटिंग कर रहे हैं। मैं वहां जाकर उनसे मिला तो महसूस हुआ कि बिना बात के बतंगड़ ने इस भले कलाकार को कितना दुखी कर दिया है। मिथुन हमेशा से दूसरों की मदद करने के लिए आगे आते रहे हैं। लेकिन, फिल्म भोले शंकर की शूटिंग में वो चाहकर भी शरीक नहीं हो पा रहे थे। उन्होंने उस दिन यहां तक कह दिया कि आपका प्रोड्यूसर परेशान हो तो वो साइनिंग अमाउंट वापस करने को तैयार हैं, लेकिन मैंने भी दादा से कह दिया कि फिल्म भोले शंकर में अगर कोई शंकर बनेगा तो वो मिथुन ही होंगे और इसके लिए मुझे उनका झगड़ा खत्म होने का इंतज़ार करने में कोई गुरेज नहीं। कहकर मैं वहां से वापस लौट आया। और उसके कोई हफ्ते दस दिन बाद ही दादा का मेरे पास फोन आया, बोले, “शुक्लाजी, जो भी परेशानी हुई उसके लिए माफी चाहता हूं। भोले शंकर की शूटिंग कब शुरू करनी है?” भोले शंकर की शूटिंग करने पहुंचे मिथुन चक्रवर्ती का कैसा रहा पहला दिन? और कैसे पूरी यूनिट को बना लिया दादा ने पहले ही दिन अपना मुरीद? जानने के लिए पढ़ते रहिए- कैसे बनी भोले शंकर?
लखनऊ में फिल्म भोले शंकर का पहला शेड्यूल खत्म होने के बाद पूरी यूनिट ने मुंबई लौटने की तैयारी शुरू कर दी। फिल्म उद्योग को सरकारी लापरवाही का शिकार किस तरह होना पड़ता है, इसकी एक मिसाल भी इसी दौरान हमें देखने को मिली। रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव की नज़रें इन दिनों पूर्वी उत्तर प्रदेश पर टिकी हैं। अपनी पार्टी का अधिवेशन भी वो हाल ही में यहां कर चुके हैं। मंशा ये बताई जा रही है कि पश्चिमी बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश से मिलकर बन सकने वाले भोजपुरी बहुल इलाके को एक नए राज्य की शक्ल दी जाए, और कम से कम ऐसा एक तो प्रदेश हो, जहां आरजेडी की सत्ता फिर से कायम की जा सके। कभी ज़ी टीवी तो कभी स्टार प्लस की टीआरपी बढ़ाने के लिए इनके शोज़ में पहुंचने वाले लालू प्रसाद यादव को भोजपुरी फिल्म जगत से इसका दस फीसदी भी लगाव हो जाए तो इस सिनेमा का बेड़ा पार हो सकता है। भोजपुरी सिनेमा का कोई माई बाप नहीं है। मुट्ठी भर लोग आकर मुंबई में सिनेमाघरों से भोजपुरी फिल्में उतरवा जाते हैं, और मुंबई से लेकर दिल्ली तक सब कुछ बयानबाजी के बाद शांत हो जाता है।
जहां की भाषा भोजपुरी है, वहां के लोगों को इस सिनेमा की परवाह नहीं और जहां इस सिनेमा की परवरिश हो रही है, वहां इसे घुसपैठिया करार दिया जा चुका है। खैर, मैं बात कर रहा था फिल्म भोले शंकर की यूनिट के मुंबई लौटने की। कोई सत्तर लोगों की क्रू को एक साथ किसी ट्रेन में रिजर्वेशन नहीं मिल सकता था, लिहाजा रेल मंत्री के कार्यालय से संपर्क किया गया। भरोसा मिला कि काम हो जाएगा। अब एक साथ कोई शख्स सत्तर टिकटें लखनऊ से मुंबई की खरीदे तो रेल मंत्रालय चाहे तो ट्रेन में नई बोगी भी लगवा सकता है। और बात जब भोजपुरी सिनेमा की हो तो लालू के मंत्रालय को तो इसकी तरफ खास तवज्जो देनी चाहिए। लेकिन, रेल मंत्री के कार्यालय से ऐन मौके पर जवाब आया कि काम नहीं हो पाया। अब इसमें किसकी कितनी गलती है, इस पर बहस का वक्त नहीं था। वक्त था अब ज़मीनी धरातल की असलियत को समझने का। जिन रेल मंत्री के कार्यालय ने एक भोजपुरी फिल्म के तकनीशियनों को अपनी रेल में जगह देने से हाथ खड़े कर दिए। उसी रेल विभाग के कर्मचारियों ने हमारी मज़बूरी का फायदा उठाते हुए हमसे लखनऊ स्टेशन पर मोटी रिश्वत ली और उसी ट्रेन में जगह दिला दी, जिस ट्रेन में जगह ना होने का रोना थोड़ी ही देर पहले रेल मंत्री कार्यालय के अफसर हमसे रो चुके थे।
खैर, किसी तरह सब लोग मुंबई पहुंचे। सारा माल असबाब करीने से लगा दिया गया। अब तक की शूटिंग का रिजल्ट भी हमने लैब में जाकर देख लिया। हम चुनौती थी, मुंबई शेड्यूल शुरू करने की, जिसके लिए हर दिन ज़रूरत थी हिंदी सिनेमा के कल्ट स्टार मिथुन चक्रवर्ती की। लेकिन उनके और बिहार के वितरक डॉक्टर सुनील के बीच चल रहा विवाद अब तक काफी तूल पकड़ चुका था। यहां तक कि भोजपुरी सिनेमा के दो खेमों में बंटने तक की नौबत आ गई, मुंबई से लेकर पटना तक बयानबाज़ी के दौर शुरू हो चुके थे और ऐसे में मिथुन ने फैसला लिया, सब कुछ फेडरेशन पर छोड़ देने का। उनका कहना था कि अब जो भी फैसला होगा वो फेडरेशन ही करेगी और फिल्म भोले शंकर की शूटिंग भी उसके बाद ही होगी। इस बीच मिथुन की समर्थन लॉबी ने अपने हीरो की नज़रों में चढ़ने के लिए कुछ अजीब हरकतें शुरू कर दीं। इन लोगों ने कमालिस्तान और दूसरे स्टूडियोज़ में जाकर भोजपुरी फिल्मों की शूटिंग बंद करा दीं। ये बात मुझे पता चली तो मैंने दादा को बताया, वो उस दिन पुणे में किसी फिल्म की शूटिंग कर रहे थे। दादा की दरियादिली देखिए, उन्होंने वहीं से फोन करके इन फिल्मों के निर्माताओं से बात की और कहा कि उनके विवाद के चलते वो भोजपुरी सिनेमा का नुकसान कतई नहीं चाहते। अगले दिन निजी दिलचस्पी लेकर मिथुन चक्रवर्ती ने किसी भी यूनियन को किसी भी भोजपुरी फिल्म की शूटिंग से दूर रहने को कहा। लेकिन फिल्म भोले शंकर में उनकी ऐक्टिंग को लेकर असमंजस अब भी कायम था।
दो तीन दिन बाद मिथुन वापस मुंबई लौटे, पता चला कि वो फिल्म सिटी में फिल्म सी कंपनी की शूटिंग कर रहे हैं। मैं वहां जाकर उनसे मिला तो महसूस हुआ कि बिना बात के बतंगड़ ने इस भले कलाकार को कितना दुखी कर दिया है। मिथुन हमेशा से दूसरों की मदद करने के लिए आगे आते रहे हैं। लेकिन, फिल्म भोले शंकर की शूटिंग में वो चाहकर भी शरीक नहीं हो पा रहे थे। उन्होंने उस दिन यहां तक कह दिया कि आपका प्रोड्यूसर परेशान हो तो वो साइनिंग अमाउंट वापस करने को तैयार हैं, लेकिन मैंने भी दादा से कह दिया कि फिल्म भोले शंकर में अगर कोई शंकर बनेगा तो वो मिथुन ही होंगे और इसके लिए मुझे उनका झगड़ा खत्म होने का इंतज़ार करने में कोई गुरेज नहीं। कहकर मैं वहां से वापस लौट आया। और उसके कोई हफ्ते दस दिन बाद ही दादा का मेरे पास फोन आया, बोले, “शुक्लाजी, जो भी परेशानी हुई उसके लिए माफी चाहता हूं। भोले शंकर की शूटिंग कब शुरू करनी है?” भोले शंकर की शूटिंग करने पहुंचे मिथुन चक्रवर्ती का कैसा रहा पहला दिन? और कैसे पूरी यूनिट को बना लिया दादा ने पहले ही दिन अपना मुरीद? जानने के लिए पढ़ते रहिए- कैसे बनी भोले शंकर?
bhole shankar ke baare me itni bate jaankar achha lag raha hai. aage janne ke utsukta hai .
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