बिना म्यूज़िकल इंस्ट्रूमेंट्स के बना हिंदी सिनेमा का ये इकलौता गाना है।- पंकज शुक्ल
डायरेक्टर सुभाष घई की 1989 में रिलीज़ हुई सुपर हिट फिल्म 'राम लखन' का हिट गाना है - धिना धिन धा। ये गाना आपने बहुत बार सुना होगा। अब रोहित शेट्टी फिल्म सिंबा के लिए इसका रिमिक्स करने जा रहे हैं लेकिन, ओरीजनल गाने में बजने वाले वाद्ययंत्र ध्यान से सुनेंगे तो इसकी खासियत समझ आएगी। संगीत दो तरह के वाद्य यंत्रों से बनता है, एक होते हैं परकशन व रिदम, जैसे तबला, ढोलक, मंजीरा, ड्रम्स, घुंघरू वगैरह और दूसरे होते हैं म्यूज़िक पीस जैसे गिटार, बांसुरी, शहनाई, वायलिन, सारंगी, ट्रम्पेट आदि। कभी स्टेज पर किसी को LIVE परफॉर्म करते देखते होंगे तो इनके बैठने की व्यवस्था भी अलग अलग दिखती है। म्यूज़िक पीस बजाने वाले सारे कलाकार गायक के बाईं तरफ और परकशन वाले सारे कलाकार गायक के दाईं तरफ बैठते हैं। दोनों का किसी भी गीत का संगीत बनाने में बराबर का योगदान रहता है। ये तय है कि ये जानकारी पढ़ने के बाद आपको फिल्म 'राम लखन' का ये गाना दोबारा सुनने का मन ज़रूर करेगा। और, इस बार आपके कान गाने के बोल पर नहीं इसके संगीत पर टिके रहेंगे। इस गाने की खासियत ये है कि आपको इस पूरे गाने में परकशन तो सुनने को मिलेगा लेकिन म्यूज़िक का एक भी इंस्ट्रूमेंट पूरे गाने में नहीं बजा है। जी हां, बिना किसी के बताए आम श्रोता का इस तरफ ध्यान भी नहीं गया होगा। इस पूरे गाने में म्यूज़िक के सारे पीस कोरस के गायकों ने गाए हैं। कहीं कोई गिटार नहीं, कहीं कोई वायलिन या सारंगी नहीं। बिना म्यूज़िकल इंस्ट्रूमेंट्स के बना हिंदी सिनेमा का इकलौता गाना है। इसके पीछे की कहानी भी बहुत दिलचस्प है। हुआ यूं कि जब ये गाना बन रहा था तो म्यूजिक पीस बजाने वाले सुट्टा ब्रेक पर थे, असिस्टेंट ने आवाज़ लगाई, "चलो, चलो, सब लोग। प्यारेलाल जी बुला रहे हैं।" किसी ने कहा, अरे आते हैं, वेट करो। हम आएंगे तभी तो गाना बनेगा। ये बात वहां से गुजरते प्यारेलाल जी ने सुन ली। उन्होंंने स्टूडियो के गेट बंद कराए। और सिर्फ परकशन और कोरस पर ये गाना तैयार कर दिया। इसीलिए कहते हैं, उस्तादी तो ठीक है पर उस्तादी उस्ताद से कतई ठीक नहीं है।