शुक्रवार, 22 जनवरी 2016

फरिश्तों का ग़र पता होता !!



फरिश्तों का ग़र पता होता...।

फरिश्तों का ग़र पता होता,

ना वो बच्चा बिन मां बाप का होता,
सिसकती ना पहाड़िन वो,
याद में फौजी प्यारे की,
ना उस बूढ़ी अकेली मां,
का हर दिन, रात सा होता..
फरिश्तों का ग़र पता होता।

फरिश्तों का ग़र पता होता,

ना हरिया खुदकुशी करता,
ना गिनती सूद की वो सेठ ,
पहाड़ों के साथ यूं करता,
ना वो बूढ़ा हथेली पर,
लिफाफे ख्वाब के बुनता..
फरिश्तों का ग़र पता होता।

फरिश्तों का ग़र पता होता,

ना उसके हाथ की मेहंदी,
का रंग यूं राहे गुजर रहता,
ना वो ईंटों के घरौंदों में,
बसर करता, सफर करता,
ना दिन रात होते टीस के,
फरिश्तों का ग़र पता होता...

-पंशु 02052011

(चित्र व्यावसायिक उपयोग के लिए नहीं है। अगर इसके रचयिता को इस्तेमाल पर आपत्ति हो, तो इसे हटाया जा सकता है)

रे सूरज!


रे सूरज!


Pic: Pankaj Shukla 25102014

रे सूरज!
कैसा तू हठधर्मी है?

रोज समय से उग जाता है
रोज समय से छिप जाता है
चाल वही है ढाल वही है
कहां कहां तू बिछ जाता है?

रे सूरज!
कैसा तू हठधर्मी है?

नहीं तेरा है ध्यान मान पे,
ना पंडित के अर्ध्यदान पे,
मुंह फेरे तू चलता जाता,
गौर तो कर तू स्वाभिमान पे?

रे सूरज!
कैसा तू हठधर्मी है?

नीयत तेरी विंध्याचल सी है
प्रकृति तेरी अस्ताचल की है
क्यूं लेता तू ये आराधन?
नियति तेरी छल आंचल की है!

पंशु 22012016