शनिवार, 21 सितंबर 2013

न ख़त आता है, न खयाल आता है...



न ख़त आता है, न खयाल आता है,
ज़िंदगी तुझ पर ही क्यूं मलाल आता है..

वो चल पड़ा है नई मंज़िल की जानिब,
उसके रस्ते कहां रिश्तों का सवाल आता है..

किए होंगे तूने एहसां रगों में भर भरके,
किस्सों में कहीं शहीदों का हवाल आता है?

कदों को नाप तू अपने कभी तो उनके भी,
तेरी परछाई ही अक्सर धूप ए बवाल आता है,

मां ने समझाया बहुत घर की देहरी तक,
जवानी में कहां सीखों का निकाल आता है,

‘पंशु’ करूं फरेब या यूं ही बहते जाऊं,
ईमां डिगाने क्यूं कर ये टकसाल आता है..

© पंकज शुक्ल
21092013






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मंगलवार, 10 सितंबर 2013

टोपी टोपी, इनकी पहचान बताती है..




टोपी टोपी, इनकी पहचान बताती है..

पंकज शुक्ल


बात इनकी, इनकी पहचान बताती है
आदत इनकी, इनकी पहचान बताती है।



किए थे वादा, सूबे की नई सूरत का,
कैसे ये सूबेदार? इनकी पहचान बताती है।



बदले हैं रोज़ रंग, ये नाईं गिरगिट के,
टोपी टोपी, इनकी पहचान बताती है।



धुआं ये कैसा फिर से मेरी बस्ती पर,
झुलसी हुई हथेली, इनकी पहचान बताती है।



‘पंशु’ न कर ऐतबार, अब किसी जवानी पर
बूढ़े थे इनके बदतर, इनकी पहचान बताती है।

10.09.2013