किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार, किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार, किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार, जीना इसी का नाम है..! - शैलेंद्र (1959)
बुधवार, 29 अगस्त 2012
मेरे लिए, एक फूल, हाथों में, तुमने लिया।
पंकज शुक्ल
मेरे लिए,
एक फूल,
हाथों में,
तुमने लिया।
मैं मानता हूं,
तुम मेरे,
मित्र हो,
हितैषी हो,
शुभचिंतक हो।
इस फूल की,
लाज निभाने को,
मैंने कसमें खाईं,
रसमें निभाईं,
पुराने वादे,
तोड़े,
नए रिश्ते जोड़े।
फिर देखा
इस फूल को,
तुम्हारी पलकें,
झुकी ही रहीं,
मुझे दिखा,
उनमें,
स्नेह,
सामीप्य,
और संगम।
मैं निश्चिंत,
आत्ममुग्ध,
मित्रता के मोह में,
ना सोचा,
ना विचारा,
बस आंखें मूंदे,
रहा,
डूबता-उतराता।
और,
फिर आंखें खुलीं,
पलकों पर मिट्टी,
आंखों में अंधेरा,
देह दबी हुई,
सिर के छह हाथ ऊपर,
एक पट्टिका,
मेरे जन्म-मरण की,
मेरे नाम संग,
लगी हुई,
और वो फूल,
हाथों में तुमने लिया,
मेरे लिए,
रखने को मेरी समाधि पर।
हां, मुझे याद है,
मेरे लिए,
एक फूल,
हाथों में,
तुमने लिया...
(29082012)
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