रविवार, 1 जनवरी 2012

आओ 2012...


आओ 2012.
देखें तुम्हारी झोली में क्या क्या है?

क्या मां के घुटनों के दर्द का है कोई इलाज पक्का?
या इस साल भी मेरे न आने पर पापा रहेंगे हक्का बक्का?
क्या इस बार भी रक्षा बंधन पर बहन के घर पहुंचने दोगे?
क्या भाई की मन्नतों का सपना फिर पूरा होने दोगे?
क्या बिटिया का इंजीनियरिंग में एडमीशन मेरिट से ही हो जाएगा?
और, कहीं बेटा ये साल कोलावेरी डी गाने में ही तो नहीं लगाएगा?
क्या बीवी इस साल भी पूरे मन से विदा कर पाएगी?
और, क्या मेरे सपनों की बस्ती अब के बरस बस पाएगी?
आओ 2012.
देखें तो तुम्हारी झोली में क्या क्या है?

आओ 2012.
देखें तो तुम्हारी झोली में क्या क्या है..?

सब पटाखे दगाकर देखो शांत हो गए,
बस घोंसलों के पक्षी आक्रांत हो गए,
रस्मों की अदायगी का अब शोर बहुत है,
अफसर वही बड़ा जो सबसे बड़ा चुगद है,
चेहरे पर हरेक के कैसी ये खुशी आमद है,
क्यूं नजदीकियों की खामोशी हर ओर नदारद है,
यूं हरेक नए साल में कब और क्या बदलेगा?
याद है ना वो नारा, हम बदलेंगे, युग बदलेगा।
आओ 2012.
देखें तो तुम्हारी झोली में क्या क्या है..?

(पंशु. 01012012)

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