सोमवार, 12 सितंबर 2011

चटख़ चोला, फीक़े रंग..



मौसम के रंग देखकर रंगीं वो यूं हुए,
रंगों ने रातें ओढ़ लीं मौसम बदल दिए।

बदली घिरी बूंदों तले मेघों को हुआ रश्क़,
षडयंत्र सावनों के देख बादल बदल दिए।

भादों के भाव भोर तक गिनता रहा रफ़ीक,
घिरती घटा के छांव यूं घनघोर हो गए।

किलकी किरन बादलों के काले कोह चीर के,
छपकी छपक छलांगकर उस छोर हो गए।

रंगरेज़ बेईमान है, चोला है मुख़्तसर,
नीयत पे दाग़ इस कदर चेहरे बदल दिए

© पंकज शुक्ल। सितंबर 2011।


(image used here is only for referential purpose)

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