बुधवार, 1 दिसंबर 2010

राम..


इसे कायदन मेरी पहली ग़ज़ल कह सकते हैं. रदीफ़, काफ़िया में न उलझलते हुए और बहर आदि की जानकारी न होते हुए भी बस क्रोंच पक्षी से मन के रुदन को शब्दों में पिरो डाला है। कहते हैं पहले भाषा आई, फिर उसे संस्कारित करने के लिए व्याकरण के नियम बने, लिहाजा 'जौ बालक कह तोतरि बाता' जैसी उदारता के साथ ही इसे पढ़ें और अपनी टिप्पणियों से ज़रूर अवगत कराएं। अवध के इलाके में जब तराजू उठाया जाता है तो पहला पलड़ा राम कह कर ही गिना जाता है, तो मेरी इन कोशिशों की शुरुआत भी राम से...।


पंशु

यूं न मौत को बदनाम करो ज़िंदगी के बाद,
अब आंखें किसी के इंतजार में जागती तो नहीं।

नश्तर ने यूं पाया उनके करतब से नया नाम,
गिरेबां में दोस्ती अब अपने ही झांकती तो नहीं।

सुलह थी सब्र की ज़ालिम से नीम रहने की,
रवानगी ये मेरे रगों की मानती तो नहीं।

पुराना कुर्ता है और चमक ये नील टीनोपाल की,
नज़र ये उनकी अब असलियत मेरी ढांकती तो नहीं।

रहा करे दिल में मेरे, मेरे बचपन का फितूर,
मेरे इंतजार में मां अब मेरी जागती तो नहीं।

चित्र सौजन्य - मुक्ता आर्ट्स की फिल्म "नौकाडूबी"

9 टिप्‍पणियां:

  1. wah pankaj kya baat hai, bahut khoob, seedhey dil pe asar karti hai..

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  2. मृणालिनी जी, बहुत बहुत धन्यवाद...

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  3. Vyakhya aur vyakran ka paripakva mishran....(I wish I knew Hindi typing...please copy edit if required...lols) But seriously quite sensitive thinking!

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  4. बहुत बहुत शुक्रिया, श्रीष भाई...

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  5. अंजलि, धन्यवाद। हिंदी टाइपिंग की ज़रूरत ही नहीं, तुमने जो लिखा कि 'व्याख्या और व्याकरण का परिपक्व मिश्रण' वह बहुत बड़ी बात है और इसके लिए वर्तनी का देवनागरी या रोमन होना बहुत छोटी बात है। धन्यवाद एक बार फिर से :)

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  6. Pankaj ji.....dil kuch aisa hi padna chah raha tha...aur aapki Gajal aankho ke samne thi...Behatarin...

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  7. शुक्रिया दीपेंदु भाई। शायद इसे ही कहते हैं टेलीपैथी।

    इसे भी पढ़िए और बताइए कैसी लगी?
    http://thenewsididnotdo.blogspot.com/2010_11_01_archive.html

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  8. शानदार गज़ल है सर्, यूं ही लिखरे रहिये, हमारा ज्ञान बढ़ता है...

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