गुरुवार, 25 नवंबर 2010

उसका तमाशा...!!

















गुमनाम न मर जाएं, चलो बदनाम ही सही
ये सोच के ही उसने तमाशा बनाया होगा..।

वो बनके तमाशा सुपुर्द ए खाक हो गए,
मय्यत* के सोगवारों* को मज़ा तो आया होगा..।

उसे गुमान अपने तंज*, अपने तेगे*, अपने नश्तर पर,
किसे पता वो कलमा पढ़ के जिबह* होने आया होगा..।

था उसका ज़ामिन* उसी ने चाक जिगर कर डाला,
किसी फरेब ने उसको भी भरमाया होगा..।

गली, कूंचों में मुझे हर तरफ मोहब्बत ही मिली,
नादान दिल ही मेरा उसको न समझ पाया होगा..।

कहा था मां ने कभी घर से दूर मत जाना,
है छांव सर पे घनी ना उसका सरमाया होगा..।

पं.शु. 

(फोटो कर्टसी- अनुषा जैन)

* मय्यत - शवयात्रा, सोगवार - शोक प्रकट करने वाले, तंज - व्यंग्य, तेगा- खंजर, जिबह - कत्ल, जामिन - जमानत देने वाला।