रविवार, 26 अक्तूबर 2008

दीवाली मुबारक़...

आओ एक दीया जलाएं..
आओ एक मुस्कान सजाएं।

कहीं किसी दूर बस्ती में कहीं,
कहीं कोई पास में अपना हो यहीं,
इक टूटे हुए दिल में कोई आस जगाएं..
आओ एक दीया जलाएं..
आओ एक मुस्कान सजाएं।।

इन रस्तों में न हो कांटा भी कोई,
भूल जाएं गर हो अदावत भी कोई,
अंधियारे को हर इक दिल से मिटाएं...
आओ एक दीया जलाएं,
आओ एक मुस्कान सजाएं।।

दीवाली मुबारक़।

कहा सुना माफ़,

पंकज शुक्ल

शनिवार, 25 अक्तूबर 2008

जब जब आवे याद तोहार...

भोले शंकर (20). गतांक से आगे...

लखनऊ के आनंदी रिसोर्ट में मोनालिसा और मनोज तिवारी के ऊपर जिस दिन हम लोगों ने - केहू सपना में अचके जगाके - गाने का तीसरा अंतरा शूट किया, उसी दिन सुबह से लेकर दोपहर तक हम लोगों ने एक और गाने के दो अंतरे शूट किए। इनमें से एक अंतरा मोनालिसा पर और दूसरा अंतरा लवी रोहतगी पर फिल्माया गया। इस गाने के बोल हैं- जब जब आवे याद तोहार, ई मनवा तरसे ला....। ये गाना फिल्म में उस वक्त आता है, जब भोले म्यूज़िक कंपनी में अपना ऑडीशन दे रहा होता है, गाने की शुरुआत म्यूज़िक कंपनी के स्टूडियो से होती है और पहला अंतरा भोले ऑडीशन देते हुए गा रहा होता है। इस गाने को गाते हुए उसे गौरी की याद बार बार आती है, गाना मुंबई में शुरू होता है, और दूसरे अंतरे में हम गौरी के पास पहुंच जाते हैं और तीसरा अंतरा लवी पर फिल्माया गया, जिसमें वो भोले को याद कर रही है..।

इस गाने के पहले अंतरे की शूटिंग हमें बाद में मुंबई में करनी थी, लिहाजा हमने लखनऊ में दूसरे और तीसरे अंतरे का शूट पूरा कर लिया। गाने के दूसरे अंतरे में गौरी की विरह वेदना को दिखाया गया है और इसके लिए हमने मोनालिसा का पूरा गेटअप वैसा ही रखा। सफेद परिधानों में लिपटी मोनालिसा ने जब गौरी का रूप धरा तो पूरी यूनिट के लोग उसे देखते ही रह गए। सुबह के आठ बज रहे थे और इधर यूनिट अभी चाय पी ही रही थी और मोनालिसा पूरी तरह तैयार होकर लोकेशन पर पहुंच गई। कैमरामैन राजू केजी और कोरियोग्राफर रिक्की ने मोर्चा संभाला और मैंने उन्हें गाने का स्टोरी बोर्ड समझाना शुरू किया। इस गाने का जो अंतरा मोनालिसा पर फिल्माया गया है, उसे मेरी कल्पना के हिसाब से राजू केजी और रिक्की ने उम्मीद से कहीं बेहतर फिल्माया। मौसम सुबह से ही खुशगवार था और मोनालिसा गाने के बोल सुनकर पूरे जोश में थी, अरसे बाद उसे कोई ढंग का गाना बड़े परदे पर मिला था, जिसमें उसके चेहरे के भावों को पेश किया जाना था। मोना दिल ही दिल में खुश थी लेकिन गाने के हिसाब से उसे करना था रोने का अभिनय। पूरे अंतरे को हमने छह हिस्सों में बांटा और रिसॉर्ट के एक हिस्से में कुएं के आस पास खड़े यूकेलिप्टस के पेड़ों को ध्यान में रखते हुए हमने गाने की शूटिंग पूरी की। मोनालिसा ने इस गाने में खूब मेहनत की।

इसी गाने के दूसरे अंतरे के लिए हमने लोकेशन चेंज की और आ गए रिसॉर्ट के वाटर पार्क के अंदर। रिसॉर्ट के इस हिस्से की अलग अलग जगहों पर हमें गाने का तीसरा अंतरा शूट करना था। दूसरे अंतरे में भोले की याद करती गौरी जहां विरह वेदना से दुखी हैं, वही तीसरे अंतरे में हमें रंभा के अंदर भोले को लेकर उमड़ती काम इच्छा को दिखाना था। बैकग्राउंड को खुशनुमा बनाने के लिए वाटर पार्क के सारे राइड्स ऑन करा दिए गए, और हर राइड पर पानी भी बहने लगा। इस बीच पता चला कि लवी रोहतगी ने नखरे दिखाने शुरू कर दिए हैं। यूनिट के कुछ सीनियर लोगों का कहना था कि हमने लवी को ज़रूरत से ज़्यादा सिर पर चढ़ा रखा है और ये सारे नखरे भी वो तभी दिखा रही है।

वैसे भोले शंकर के लिए मिथुन चक्रवर्ती और मनोज तिवारी के नाम फाइनल होने के बाद हीरोइन्स की बात छिड़ने पर सबसे पहले हम लोग लवी रोहतगी से ही मिले थे और वो इसलिए क्योंकि हम फिल्म में ज्यादा से ज्यादा कलाकार उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले ही लेना चाहते थे। लवी आगरा की रहने वाली है, इसलिए हम लोगों का उसके लिए थोड़ा सॉफ्ट कॉर्नर भी था। लेकिन लवी ने गाने की शूटिंग से ठीक पहले अपना मुंबइया रंग दिखाना शुरू कर दिया। वो अपना पेमेंट कैश में चाहती थी और चूंकि पूरी फिल्म में हमने सारा हिसाब किताब ऑन पेपर रखने का फैसला किया था लिहाजा उसे कैश देना मुश्किल था। चेक लेने को वो राज़ी नहीं हुई, किसी तरह प्रोड्यूसर के बेटे गौरव भाटिया ने उसके लिए कैश का जुगाड़ किया और तब जाकर वो शूटिंग के लिए राज़ी हुई। गाने की डिमांड के लिहाज से लवी को थोड़ा मॉडर्न कपड़े पहनने थे। बामुश्किल वो लोकेशन पर आई और उसके इतना सब नाटक करने के बाद भी हमने उसे परदे पर खूबसूरती से पेश करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। लवी ने इस अंतरे की शूटिंग के बाद एक गलती और कर दी और ये ऐसी गलती थी कि जिसके लिए उसे माफ करना किसी भी प्रोड्यूसर के लिए मुश्किल होता। और कोई प्रोड्यूसर होता तो उसके खिलाफ तगड़ा कानूनी कदम उठा सकता था, लेकिन मेरे समझाने पर गौरव ने बात को रफा दफा कर दिया। लेकिन लवी की नादानी ने मुझे ये सोचने पर मजबूर कर दिया कि कहीं मैंने उसका सेलेक्शन करके कोई गलती तो नहीं कर दी? अगले अंक में जानिए फिल्म के क्लाइमेक्स से ठीक पहले वाले सीन की शूटिंग को लेकर क्यों हुई मेरी और मनोज तिवारी की तक़रार? पढ़ते रहिए- कैसे बनी भोले शंकर।

कहा सुना माफ़,

पंकज शुक्ल

मंगलवार, 14 अक्तूबर 2008

लखनऊ में कश्मीर...

भोले शंकर (19). गतांक से आगे...

फिल्म भोले शंकर की मेकिंग के दौरान कई बार ऐसा हुआ कि यूनिट से जुड़े सभी लोगों का सिर ईश्वर के सामने धन्यवाद के लिए झुक गया। कहते हैं कि तकदीर हौसला करने वालों का ही साथ देती है और भोले शंकर का पूरा लखनऊ शेड्यूल इसी हौसले के साथ चलता रहा। ऐसा कम ही होता है कि किसी फिल्म का शेड्यूल तय समय से एक दिन पहले ही खत्म हो जाए, लेकिन हमने भोले शंकर की मेकिंग के दौरान ऐसा भी किया। फिल्मों के गानों की शूटिंग के दौरान अक्सर हम देखते हैं कि पेड़ों के पीछे एक खास तरह की धुंध दिखती है, साफ मौसम में इसके लिए ना जाने कितने जतन करने पड़ते हैं। फॉग मशीन मंगाओ, बड़े बड़े फैन्स मंगाओ, पूरी लाइटिंग उसी लिहाज से सेट करो और इसके बावजूद भी भरोसा नहीं रहता है कि जैसा चाहिए वैसा असर आएगा भी या नहीं।

फिरंगियों के चक्कर में जो गाना हम दो अंतरे करके चले आए थे, उसका बाकी बचा अंतरा हमने अगले दिन लखनऊ में दूसरी जगह शूट करने का फैसला किया। कोरियोग्राफर रिक्की जो आदतन घुमक्कड़ टाइप के हैं, ने लखनऊ में जहां हम ठहरे थे, उसी रिसॉर्ट के दूसरी तरफ एक नायाब लोकेशन गाने के लिए तलाश ली। ये लोकेशन ऐसी है कि परदे पर आपको लगेगा कि गाना कश्मीर में शूट हुआ है। और, इस अंतरे की शूटिंग में हम पर कुदरत भी पूरी तरह मेहरबान रही। साफ मौसम ने अचानक अंगड़ाई ली और पूरे आसमान को बादलों ने ढंक लिया। पूरा मौसम बिल्कुल गाने के मूड के हिसाब से अपनेआप बन गया। छुटपुट बारिश भी शुरू हो गई और लाइट बस इतनी कि गाना शूट हो सके। इस दिन ईश्वर ने तो बहुत साथ दिया, लेकिन हमारे हीरो मनोज तिवारी दूसरो को खुश करने के चक्कर में हमें परेशान कर गए।

दरअसल मनोज तिवारी जल्दी जल्दी किसी को ना नहीं कर पाते। कहते हैं कि ना कहना भी एक कला है। और कामयाबी के लिए इसे सीखना भी बहुत ज़रूरी होता है। एक स्टार और एक चमकते सिक्के में ज़्यादा फर्क नहीं होता। सिक्का जितना कम चलता है, उसकी चमक उतने ही ज़्यादा दिन कायम रहती है और स्टार भी जितना सोच समझ कर कम फिल्में करता है, उसके करियर की गाड़ी भी उतनी ही लंबी चलती है। मनोज तिवारी की शुरू की दो फिल्में ससुरा बड़ा पइसा वाला और दरोगा बाबू आई लव यू जैसे ही हिट हुईं, धनकुबेरों ने उनके लिए अपनी तिजोरियां खोल दीं। टी सीरीज के ऑफिस की कैंटीन में पूरा पूरा दिन गुजार देने वाले किसी भी गायक को अपने नाम की ऐसी कीमत पता चले तो ज़ाहिर है वो मुश्किल से ही अपने पर काबू रख पाएगा। मनोज तिवारी ने कुछ रिश्ते निभाने के लिए, कुछ बॉलीवुड के बड़े बड़े नामों के साथ अपना नाम जोड़ने के लिए और कुछ बस पैसे कमाने के लिए एक के बाद एक दनादन फिल्में साइन कर लीं। चार साल में पैंतीस फिल्में करना किसी भी कलाकार के लिए फख्र की बात हो सकती है। लेकिन, इसका नुकसान भी मनोज तिवारी को हुआ है। लोगों ने मनोज तिवारी का नाम कैश कराने के लिए मार्केट में बेसिर पैर की फिल्मों की लाइन लगा दी। अब भोजपुरी फिल्में देखने वाले बाहर से तो आने से रहे और बिहार, मुंबई, पंजाब, दिल्ली और यूपी में लोग फिल्म देखने जाते हैं मनोरंजन के लिए, लेकिन ये दर्शक ऐसे हैं कि इन्हें आप अमिताभ बच्चन का नाम लेकर भी बुद्धू नहीं बना सकते।

खैर हम बात कर रहे थे केहू सपना में अचके जगा के गाने के तीसरे अंतरे की। ये अंतरा हमने दोपहर बाद शूट करने का प्लान बनाया था, लिहाजा एक दिन पहले शाम को ही मैंने मनोज को बता दिया कि अगले दिन उनकी ज़रूरत दोपहर दो बजे पड़ेगी। मैं अपने कमरे से सुबह आठ बजे बाहर निकला तो मनोज सोए हुए थे। मनोज तिवारी के स्पॉट ब्वॉय विकास को मैंने समझा दिया कि वो मनोज को सोने दें और करीब 11 बजे ही जगाएं ताकि तैयार होकर वो दो बजे लोकेशन पर पहुंच सकें। करीब 12 बजे से मैंने अंतरे की शूटिंग के लिए शॉट लगवाना शुरू किया और साथ ही मनोज को फोन किया। पता चला कि वो तो कब के तैयार होकर लखनऊ के किसी थिएटर में अपनी किसी फिल्म का प्रचार करने निकल गए हैं। पूरी यूनिट के तो हाथों के तोते उड़ गए। दोपहर दो बजे के लिए लग रहा शॉट तो एक घंटे में ही रेडी हो गया, लेकिन उस दिन मनोज तिवारी सेट पर तय समय से पूरे दो घंटे लेट पहुंचे। लोकेशन पर आते ही मनोज तिवारी को मेरे गुस्से का अंदाज़ा हो गया था, लिहाजा वो बडी देर तक चुहल करते रहे, मेरा मूड ठीक करने की कोशिश में उन्होंने सबके सामने अपने हाथ से एक विदेशी घड़ी निकालकर भी मुझे ऐलानिया तौर पर गिफ्ट कर दी, घड़ी कम से कम लाख रुपये की रही होगी। गलती मनोज तिवारी की भी नहीं थी, ऐसे में गलती होती है उन लोगों की, जो शूटिंग के बीच पहुंचकर किसी सितारे से अपने रिश्तों को तौलने बैठ जाते हैं। अब हीरो इनसे बात ना करे तो ये नाराज़ और इनसे बात करने के दौरान अगर शूटिंग रुकी रही तो फिल्म का प्रोड्यूसर- डायरेक्टर नाराज़।

मैंने भी कह दिया कि अगर सूरज ढलने के पहले ये अंतरा शूट नहीं हुआ तो फिल्म में गाना दो अंतरे का ही जाएगा। ये तीसरा अंतरा दोबारा और कहीं शूट नहीं होगा। रूसा रूसी के इस माहौल को हल्का करने का काम किया मौसम ने। सूरज ने बादलों के बीच से आंख मिचौनी करनी शुरू कर दी, और कोरियोग्राफर रिक्की ने मनोज तिवारी की चापलूसी। बाद में मुझे पता चला कि मनोज तिवारी को देरी से आने के लिए रिक्की ने ही कहा था और ये काम रिक्की ने मनोज की दूसरी जगह व्यस्तता को देखते हुए कहा या फिर अपनी फिल्म छुटका भइया ज़िंदाबाद के लिए डेट्स निकलवाने की ख़ातिर उनको खुश करने के लिए, ना मैंने जानने की कोशिश की और ना ही मैंने इसकी ज़रूरत समझी। रिक्की ने जो किया था, वो कतई प्रोफेशनल नहीं था, और ये बात मैंने रिक्की से स्पष्ट तौर पर कह भी दी। इसके बाद रिक्की और मनोज तिवारी ने मिलकर समय के नुकसान की भरपाई के लिए एड़ी चोटी का ज़ोर लगा दिया। किसी तरह जल्दी जल्दी हम लोगों ने गाना शूट किया। कैमरा मैन राजूकेजी आखिर तक कन्फ्यूज रहे कि उन्हें सही लाइट मिली या नहीं। मैंने तभी राजू भाई से कह दिया था कि वे निश्चिंत रहे, आखिरी रिजल्ट हमारे ही हक़ में जाएगा। लेकिन शूटिंग के बाद फिल्म जब एडिट टेबल पर पहुंची तो मुंबई में सबसे पहले राजूकेजी ने यही अंतरा आकर देखा और जब रिजल्ट उन्हें सही मिले, तो उनकी भी जान में जान आई। मनोज तिवारी और मोनालिसा पर हमने ये अंतरा दोपहर के दो बजे के बाद फिल्माया, लेकिन हमारी शूटिंग तो सुबह आठ बजे से जारी थी। इस दिन सुबह सवेरे मोनालिसा ने किया कौन सा कमाल और दूसरी हीरोइन लवी रोहतगी की किस बात पर होटल में मचा बवाल? जानने के लिए पढ़ते रहिए - कैसे बनी भोले शंकर?

पंकज शुक्ल
निर्देशक- भोले शंकर

मंगलवार, 7 अक्तूबर 2008

फिरंगियों का फेर...



भोले शंकर (18)- गतांक से आगे...




भोले शंकर की कामयाबी के बाद कई निर्माता मेरे साथ भोजपुरी फिल्म बनाना चाहते हैं। लेकिन, भोले शंकर का काम खत्म होने के साथ ही मैं जुट गया था दो हिंदी फिल्मों की स्क्रिप्ट तैयार करने में। अब ये काम पूरा हो तो मैं दूसरा कोई काम हाथ में लूं। इसीलिए, इधर मेकिंग लेखन भी थोड़ा सुस्त रहा। कल मिथुन दा का दोपहर में फोन आया। मेरे हैलो कहते ही बोले, "अरे कहां हैं शुक्ला जी, कितने दिनों से आपको फोन ट्राइ कर रहा हूं, लेकिन नंबर ही नहीं लग रहा। मेरे छोटे बेटे ने बताया कि भोले शंकर बहुत बड़ी हिट हो गई है।" मैंने दादा से माफी मांगी और बताया कि मैं इन दिनों दिल्ली में हूं और मुंबई वाला नंबर शायद नेटवर्क की समस्या की वजह से नहीं मिल पा रहा होगा। दादा से और भी तमाम बातें हुईं, उनका ज़िक्र मैं फिर कभी अलग से करने की कोशिश करूंगा। लेकिन, ये बातें ऐसी हैं कि मेरी आंखें उनके बड़प्पन से नम हो आई। आज सुबह पुराने साथी उमेश चतुर्वेदी से फोन पर बात हुई तो उन्होंने उलाहना दिया कि मेरा लेखन कम हो गया है। तो पेश है फिल्म भोले शंकर की मेकिंग की बाकी बची बातें।


लखनऊ के जिस इंस्टीट्यूट में हम लोग फिल्म भोले शंकर की शूटिंग कर रहे थे। उसी के पास एक बहुत बड़ा फॉर्म हाउस है। फॉर्म हाउस में खेती होती है और इसकी पूरी की पूरी उपज विदेश भेजी जाती है। और, इस खेती को नाम दिया गया है ऑर्गेनिक फार्मिंग। गांव देहात के लोगों को इसका मतलब समझा दिया जाए तो ज़ाहिर है हर कोई ठट्ठा मारकर हंसेगा। जी हां, रासायनिक खाद खरीदना अभी तीस साल पहले तक गांव के हर किसान के बस की बात नहीं होती थी। वो तो बस घूरे और गोबर की खाद से ही काम चलाता था। और अब गोबर की खाद से होने वाली खेती को नाम दे दिया गया है ऑर्गेनिक फार्मिंग। और विदेश में ऐसी खेती से होने वाली फसल की बड़ी पूछ है। खैर, इस फार्म हाउस का जिक्र यहां मैं कर रहा हूं उस गाने के लिए, जिसकी शूटिंग हमने यहां की। हुआ यूं कि आईआईएसई के जिन मामाजी की जिक्र मैंने पिछले लेख में किया था, उन्होंने ही मुझसे इस फार्म हाउस के गुणगान किए। उन्होंने ये भी कहा कि वो यहां शूटिंग की परमीशन चुटकियों में दिला देंगे। उन्होंने अपना वादा निभाया भी। उनके कहे मुताबिक हमने अगले दिन फार्म हाउस में डेरा डाल दिया। लोकेशन वाकई दिल फरेब थी और गाने के लिए एकदम मुफीद। ये गाना फिल्म भोले शंकर में उस जगह आता है जहां भोले अपनी एक गलती के लिए गौरी से माफी मांगने आता है और बदले में गौरी अपना दिल भोले को दे बैठती है।

कोरियोग्राफर रिक्की और कैमरामैन राजू केजी के साथ रात में बैठक हुई और तय हुआ कि सुबह आठ बजे से हम लोग शूटिंग शुरू कर देंगे। हीरोइन को तैयार होने में अमूमन वक्त ज़्यादा लगता है लिहाजा मोनालिसा पहले लोकेशन पर पहुंची। फार्म हाउस की ही एक सुंदर सी झोपड़ी को मोनालिसा का मेकअप रूम बना दिया गया। मनोज तिवारी को आठ बजे तक होटल से तैयार होकर पहुंचना था। मोनालिसा के तो आठ बजे तक तैयार हो जाने का मुझे पूरा भरोसा था, बस थोड़ी हिचक थी तो इस बात की कि मनोज आठ बजे पाएंगे या नहीं। मनोज की आदत रात में देर से सोने और सुबह थोड़ा देर से जागने की है, इसका मुझे अंदाज़ा था। और इसी आशंका के चलते मैंने शूटिंग सात बजे की बजाय आठ बजे से रखी, लेकिन मनोज आठ बजे तक होटल से ही निकल पाए। इसी बीच मोनालिसा का मेकअप मैन महेश भागते हुए आया कि मोना मुझे बुला रही हैं। मैंने सोचा पता नहीं कि क्या दिक्कत खड़ी हुई। तुरंत मोना के मेकअप रूम में पहुंचा तो उसका चेहरा उतरा हुआ था। मानसी की हेयरस्टाइल और बाबू के मेकअप ने उस दिन मोनालिसा को किसी अप्सरा की तरह सजा दिया था, लेकिन मोना के चेहरे की परेशानी बता रही थी कि उसे कोई दिक्कत है। मैंने सभी लोगों से बाहर जाने को कहा। तो मोनालिसा ने अपनी दिक्कत बताई। दरअसल ड्रेस डिज़ाइनर ने मोनालिसा के लिए जो ब्लाउज़ तैयार किया था, वो इतना बड़ा बना दिया था कि टुनटुन को भी ढीला पड़े। परेशानी की वजह जानकर मुझे एकदम से हंसी गई, लेकिन मोना एकदम से उदास हो गई। बोली, यही एक रोमांटिक गाना आपने मुझे फिल्म में दिया है और उसकी भी ड्रेस गड़बड़ है। मोना से ये बात सुनकर मैं सीरियस हुआ, लेकिन शहर से इतनी दूर ना तो दर्जी मिल सकता था और ना ही नया ब्लाउज़।


अब बारी ड्रेसमैन समीर के इम्तिहान की थी। मैंने समीर को अकेले में बुलाया। परेशानी की वजह समझाई और मोनालिसा से कहा कि वो थोड़ा इंतज़ार कर ले, मैं इंतज़ाम करता हूं। समीर ब्लाउज़ लेकर स्टोर रूम गया। बेचारे ने सुई धागे से 15 मिनट के भीतर ब्लाउज़ की फिटिंग दुरुस्त की। जिस काम के लिए पटेल ड्रेसवाला ने दो हफ्ते गंवाए, वो काम समीर मिनटों में कर लाया। लेकिन दाएं तरफ की आस्तीन में अब भी कुछ गड़बड़ थी तो कोरियोग्राफर रिक्की का अनुभव काम आया। रिक्की ने मोनालिसा के लिए नई स्टाइल सोच ली। जिसमें उसे दाहिने बाजू पर अपनी साड़ी पीछे की तरफ से लानी थी। तब तक मनोज तिवारी भी गए और शुरू हो गई गाने की शूटिंग। मैंने राजू केजी और रिक्की गुप्ता को स्टोरीबोर्ड समझाया और अपने कुछ मेहमानों से बातें करने लगा। गाने के दो अंतरे शूट हो भी नहीं पाए थे कि एकदम से फार्म हाउस में मुझे कुछ बेचैनी समझ में आने लगी। मैंने पता लगाया तो मालूम हुआ कि फार्म हाउस की मालकिन आने वाली है और फार्म हाउस के मैनेजर ने मामाजी को शायद दोपहर दो बजे तक का ही समय दिया था। मैंने खुद जाकर फार्म हाउस के मैनेजर से बातचीत की लेकिन वो मानने को तैयार नहीं हुए। उनका कहना था कि उनकी विदेशी मालकिन के कुछ विदेशी मेहमान आने वाले हैं और वो फार्म हाउस पर उस दिन लंच करने वाले हैं। इन फिरंगियों को हिंदुस्तानियों का आसपास दिखना शायद ठीक नहीं लगता और वो पूरी तसल्ली के साथ अकेले में ही मस्ती करना चाहते थे।

मेरी परेशानी ये थी कि मैं दूसरे अंतरे को बीच में आधा नहीं छोड़ सकता था। तीसरा अंतरा तो खैर मैं पहले ही दूसरी लोकशन पर करने वाला था, लेकिन समस्या ये थी की फार्म हाउस मैनेजर हमें ये अंतरा भी शूट नहीं करने दे रहा था। वो तुरंत पैकअप चाहता था तो मैंने समझाया कि भैया सौ लोग पूरे सामान के साथ एकदम से तो फार्म हाउस के बाहर नहीं निकल सकते, सब्र रखो, हम काम बंद कर चुके हैं, बस सामान निकलने में जितनी देर लगे। वो आश्वस्त रहें और शूटिंग से दूर भी तो मैंने एक प्रोडक्शन वाले को इनके साथ लगाया और कहा कि इन्हें लेकर गेट पर जाएं ताकि इन्हें सामान बाहर निकलता दिखता रहे। अब सुनिए कमाल की बात, फार्म हाउस मैनेजर को गेट पर खड़ा करके मैं भागा वहां जहां शूटिंग चल रही थी, मैंने रिक्की और राजूकेजी दोनों को समझाया कि जब तक उधर से सामान उठ रहा है आप लोग इधर फटाफट अंतरा पूरा कर लें। अब हो ये रहा था कि फार्म हाउस के एक कोने से लाइट्स और क्रेन वगैरह ट्रक में लोड हो रही थीं और दूसरे कोने पर हम ट्राली, रिफ्लेक्टर और कैमरा लेकर अंतरा निपटाने में लगे थे। और जब तक सामान हटते हटते लोग हम तक पहुंचे हम लोग अंतरा शूट कर चुके थे, गाने के दूसरे अंतरे में फिरंगियों के फेर ने परेशानी में डाला तो तीसरे अंतरे में सूरज देवता ने ली हमारी परीक्षा, लेकिन इस पर बात अगली बार, पढ़ते रहिए कैसी बनी भोले शंकर?

कहा सुना माफ़,

पंकज शुक्ल
निर्देशक - भोले शंकर