सोमवार, 15 सितंबर 2008

जय भोले शंकर !!!


भोले शंकर बिहार में रिलीज़, सुपरहिट बनाने के लिए दर्शकों का आभार...

12 सितंबर 2008, ये दिन मुझे हमेशा याद रहेगा। इसलिए नहीं कि इस दिन मेरे निर्देशन में बनी पहली भोजपुरी फिल्म रिलीज़ हुई, बल्कि इसलिए कि भोजपुरी समाज ने ये दिखा दिया कि वो अच्छी फिल्मों को पंसद करते हैं और ऐसी फिल्में अगर रिश्तों की बात ढंग से करें तो बिना किसी अश्लीलता और फूहड़ता के भी भोजपुरी फिल्में कामयाब हो सकती हैं। फिल्म भोले शंकर के निर्माण के दौरान मेरी बिहार के तमाम बुद्धिजीवियों से मुलाकातें होती रहती रहीं और सबका तकरीबन एक ही अनुरोध रहा कि भोजपुरी सिनेमा की शक्ल और सूरत बदलने के लिए किसी ना किसी को तो पहल करनी ही होगी। आखिर कब तक महिला देह की सुंदरता बयान करने के लिए गीतकार मिसाइल और बम गोलों का इस्तेमाल करते रहेंगे और कब वो दिन आएगा जब पूरा परिवार एक साथ बैठकर बिना एक दूसरे से नज़रे चुराए कोई फिल्म फिर से देख पाएगा।
फिल्म भोले शंकर पूरे बिहार में 12 सितंबर को एक साथ तकरीबन दो दर्जन से ज़्यादा सिनेमाघरों में रिलीज़ हुई। एक दिन पहले मैं मुंबई में था। फिल्म के वितरक अभय सिन्हा से रात बात हुई तो उनकी बातों से लगा कि उन्होंने फिल्म के बिहार में प्रचार प्रसार में काफी मेहनत की है। फिल्म निर्माता की तरफ से होर्डिंग वगैरह समय से ना मिल पाने से वो निराश भले रहे हों लेकिन फिल्म के बिहार प्रचारक निशांत से बात होने पर पता चला कि पूरे बिहार में भोले शंकर का हल्ला हो चुका है। मुझे और फिल्म के हीरो मनोज तिवारी को 12 सितंबर की सुबह 5.30 बजे की फ्लाइट से पटना पहुंचना था। मैं तो पूरी रात सोया ही नहीं। कुछ फिल्म के रिलीज़ से पहले होने वाली बेचैनी और कुछ रात में देर से सोने की आदत। सुबह मनोज तिवारी से मुंबई हवाई अड्डे पर भेंट हुई, उन्होंने गले लगकर फिल्म रिलीज़ की बधाई दी। हम दोनों लोग हवाई जहाज में बैठे तो बैठते ही मेरी आंख लग गई। पटना हवाई अड्डे पहुंचे तो वितरक अभय सिन्हा की गाड़ी मौजूद नहीं थी। मुझे लगा कि अभी तो फिल्म रिलीज़ भी नहीं हुई और अभय जी ने अभी से हाथ खींच लिया। मनोज तिवारी के किन्हीं मित्र की गाड़ी तब तक हमें लेने पहुंच चुकी थी। हम लोग एयरपोर्ट से निकलने लगे तो अभय सिन्हा के भाई अरुण भी गाड़ी लेकर पहुंचे। हम लोगों का कुछ देर मौर्या होटल में विश्राम का कार्यक्रम था और उसके बाद हमें जाना था अपनी साल भर की मेहनत का रिपोर्ट कार्ड लेने पटना के एलफिस्टन थिएटर।
जैसे जैसे घड़ी के कांटे आगे खिसकते जा रहे थे, मेरी बैचैनी बढ़ती जा रही थी। पटना से ही पहले पापा को फोन किया फिर मां का आशीर्वाद लिया। दिल में भरोसा था कि फिल्म को दर्शकों का प्यार ज़रुर मिलेगा, लेकिन कहते हैं ना कि जब तक होनी को होते हुए ना देख लिया जाए, वो इतिहास में दर्ज नहीं हो पाती। साढ़े ग्यारह बजे से खबर आने लगी कि एलफिस्टन में तिल रखने की जगह नहीं है। भोले शंकर के संवाद लिखने में मेरा भोजपुरी ज्ञान बढ़ाने वाले अजय आज़ाद का तभी फोन आया, उन्होंने बताया कि बक्सर में भोले शंकर देखने वालों की इतनी भीड़ इकट्ठी हो चुकी है कि पुलिस को लाठी चार्ज करना पड़ा। अच्छी खबर की बोहनी हो चुकी थी। फिर एलफिस्टन से फोन आया कि भीड़ वहां भी बेकाबू हो रही है। हम लोग करीब 12 बजे होटल से निकले। अपनी मेहनत के पोस्टर पूरे पटना में एयरपोर्ट से आते हुए ही देख चुका था, लेकिन एलफिस्टन थिएटर पर लगे भोले शंकर के पोस्टर और थिएटर में की गई ज़बर्दस्त सजावट देखकर मन भावुक हो उठा। अंदर पहुंचे तो मीडिया का ज़बर्दस्त जमावड़ा था। हम लोगों ने फिल्म भोले शंकर को बिहार में होने वाले मुनाफे का दस फीसदी बिहार में आई बाढ़ से प्रभावित लोगों की मदद के लिए देने का ऐलान किया। अंदर फिल्म शुरू हो चुकी थी। पूरा हाल खचाखच भरा हुआ था। अगले शो के लिए टिकटें बिकनी शुरू हो चुकी थीं। हम लोगों ने दर्शकों के इस प्यार का सिर झुकाकर आभार प्रकट किया। मनोज तिवारी के चेहरे पर खुशी देखने लायक थी। पिछले साल अक्टूबर में फिल्म जनम जनम के साथ के बाद ये उनकी पहली फिल्म थी, जिसके शो हाउसफुल हो रहे थे। मनोज तिवारी खुश भी थे और दर्शकों के कृतज्ञ भी, जिन्होंने उन्हें फिर से सिर माथे पर बिठा लिया था। एलफिस्टन से बाहर निकलकर हम लोग आरा के सपना थिएटर हाल के लिए निकले। बीच में कुछ देर हम लोग अभय सिन्हा जी के दफ्तर में रुके। पूरे बिहार से पहले दिन पहले शो की बुकिंग के नतीजे आ चुके थे। फिल्म हर जगह हाउसफुल थी। कुछ कुछ थिएटरों में तो सिनेमाघरों की क्षमता से डेढ़ गुना तक कलेक्शन था यानि कि जितने लोग वहां पहले से लगी सीटों पर बैठे थे, उतने ही लोग टिकट लेकर अंदर या तो खड़े थे या फिर अलग से लगाई गई कुर्सियों पर बैठे थे।
आरा पहुंचे तो पता चला कि वहां भीड़ को काबू मे करने के लिए मैनेजमेंट ने फिल्म का एक शो सुबह नौ बजे ही कर दिया। भोजपुरी सिनेमा में ये पहली बार हुआ कि किसी फिल्म के लिए जुटी भीड़ को नियंत्रित करने के लिए थिएटर में एक्स्ट्रा शोज़ करने पड़े। टिकट ब्लैक करने वालों के चेहरे पर भी महीनों बाद खुशी दिखाई दी। हर जगह भोले शंकर की टिकटें खूब ब्लैक में बिकीं। आरा में सबसे ज़्यादा खुशी मुझे फिल्म देखने आईं माता बहनों को देखकर हुई। माताएं बहनें घर से निकलेंगी तभी भोजपुरी सिनेमा की शक्ल और सूरत बदलेगी। भोले शंकर ने इस दिशा में पहला कदम बढ़ा दिया है, बारी अब दूसरे निर्माता निर्देशकों की है।
चलते चलते एक बात और। पटना में जुटी भीड़ देखकर जब मैंने खुशी जताई तो मनोज तिवारी ने कहा कि पहले दिन की भीड़ का क्रेडिट फिल्म के हीरो को जाता है। वैसे गंगोत्री जैसी फिल्मों में पहले दिन ही सिनेमाघरों में छाए रहे सन्नाटे का उनके पास जवाब नहीं था। लेकिन, मनोज तिवारी छोटे भाई हैं, तो उन्हें अगर इस बात में खुशी मिली तो मुझे नहीं लगा कि इस पर मुझे एतराज़ करना चाहिए। मनोज तिवारी ने कहा कि पहला दिन यानी शुक्रवार फिल्म के हीरो का, दूसरा दिन यानी शनिवार फिल्म के वितरक की पब्लिसिटी का, तीसरा दिन तो खैर संडे होता है। और इसके बाद अगर सोमवार को भी फिल्म अच्छा करे तो निर्देशक को खुश होना चाहिए। लिहाजा आज चौथे दिन के आंकड़े आने के बाद ही मैं अपने पाठकों के लिए कुछ लिख रहा हूं। पिछले तीन दिन अलग अलग सिनेमाघरों में 90 से 100 फीसदी की कमाई करती रही भोले शंकर ने आज भी कई सिनेमाघरों में हाउस फुल के बोर्ड लटकवाए। फिल्म भोले शंकर हिट हो चुकी है। मैं आभार प्रकट करता हूं सबसे पहले अपने निर्माता गुलशन भाटिया का जिन्होंने एक पारिवारिक कहानी को बनाने का बीड़ा उठाया। फिर आभार जताना चाहता हूं मिथुन चक्रवर्ती का, जिन्होंने बिहार की फिल्म वितरक संस्था की तरफ से मिले तिरस्कार के बावजूद अपने चाहने वालों के लिए फिल्म भोले शंकर में काम किया और इसके बाद आभार भोजपुरी के शो मैन अभय सिन्हा का, जिन्होंने भोले शंकर को बिहार के कोने कोने तक पहुंचाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। आभार फिल्म के बाकी सभी कलाकारों मनोज तिवारी, मोनालिसा, लवी रोहतगी, राजेश विवेक, शबनम कपूर, गोपाल सिंह, राघवेंद्र मुद्गल, मास्टर शिवेंदु, मास्टर उज्जवल और बेबी निष्ठा आदि का भी और फिल्म की पूरी तकनीकी टीम का भी मैं आभार प्रकट करता हूं। और, अंत में लेकिन जिसके बिना फिल्म भोले शंकर की मेकिंग आप तक नहीं पहुंचती, आभार अंजोरिया का। और एक बार फिर आप सबसे विनती कि भोले शंकर देखने जाएं तो अकेले नहीं बल्कि अपनी घर की सारी महिलाओं को लेकर, और यकीन मानिए कि जितना आनंद इन सबको फिल्म भोले शंकर देखते हुए आएगा, उससे कम आपको भी नहीं आएगा।

कहा सुना माफ़,
पंकज शुक्ल
निर्देशक भोले शंकर

9 टिप्‍पणियां:

  1. पंकज जी,
    इस खबर को पढकर मन प्रसन्न हो गया । आपको और आपकी पूरी टीम को हार्दिक बधाई और भोजपुरी सिनेमा के लिये एक सुखद बदलाव की आहट सुनायी दे रही है ।

    बहुत बढिया, ईश्वर ने आप सभी की मेहनत का खूब फ़ल दिया ।

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  2. आदरणीय
    पंकज जी

    जानकर बड़ी प्रसन्ता हुई कि आपकी फिल्म भोले शंकर सुपर हिट हो गई है। आपने जिस लगन और मेहनत से इस फिल्म का निर्देशन किया है उससे यह तो होना ही था। साफ-सुथरी फिल्म का स्वागत आज भी किया जाता है चाहे वह हिंदी हो या फिर भोजपुरी, लेकिन हमारी फिल्मी दुनिया के लोग सोचते हैं कि जब तक फिल्मों में लटके-झटके नहीं होंगे तब तक फिल्म नहींं चलेगी। यही कारण है कि आज की फिल्मों में आइटम गानों की बाढ़ सी आ गई है। हालांकि इसे समय-समय पर कई फिल्मों ने झुठलाया है। फिर भी इनकेदिमाग की गंदगी नहीं साफ होती और उसे जनता पर उछालते रहते हैं।
    बहरहाल, यह एक बहस का विषय है। आपको अपनी मेहनत का फल मिला है। इसके लिए ढेर सारी शुभकामनाएं।

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  3. जय भोले शंकर ........
    अर्जी हमारी है मर्जी तुम्हारी है ...
    करोगे वही शम्भू जो मन मै विचारी है ...

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  4. मोगाम्‍बो खुश हुआ। ढेर सारी बधाई।

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  5. आप सभी को भोले शंकर की पूरी टीम की तरफ से हार्दिक धन्यवाद।

    सादर,
    पंकज

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  6. आपकी कामयाबी का किस्सा सुनकर बेहद खुशी हुई- ईश्वर आपको इसी तरह कामयाबी के पथ पर आगे बढाता रहे बस यही कामना है।
    कभी मुंबई में हो तो फोन जरूर कीजियेगा।

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  7. murad kare puri shiv ji teri
    tu sirf unhein yaad rakhna
    abhi to bhole shanker ka jalwa
    aage ke liye sirf chalte rehna ...

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