गुरुवार, 4 सितंबर 2008

मनोज तिवारी की एंट्री


भोले शंकर (14). गतांक से आगे...

हम लोगों को लखनऊ में शूटिंग करते हुए करीब पांच दिन हो चुके थे और अब बारी थी मनोज तिवारी के सीन शूट करने की। मनोज तिवारी उन दिनों इलाहाबाद में किसी फिल्म की शूटिंग कर रहे थे। मनोज को पांच दिसंबर को भोले शंकर की शूटिंग में शामिल होना था तो चार दिसंबर की दोपहर मैंने मनोज को फोन किया। फोन पर बात करते हुए मनोज ने बताया कि उस दिन भी उनकी शूटिंग इलाहाबाद में जारी थी, लेकिन उन्होंने वादा किया कि पांच दिसंबर को भोले शंकर की शूटिंग में वो ज़रूर शामिल होंगे। फिल्म इंडस्ट्री में कहावत है कि जब तक हीरो सेट पर आ ना जाए, तब तक शूटिंग हुई ना मानो। मनोज तिवारी को मैं व्यक्तिगत तौर पर तो वोट फॉर खदेरन के दिनों से जानता हूं और उनके स्वभाव को भी। मनोज इंसानियत की कद्र करने वाले इंसान हैं और वो ये भी जानते हैं कि किसे कितना भाव देना है। वो किसी को दिल से चाह लें तो उसके लिए सब कुछ निछावर कर देंगे लेकिन कोई उनसे पंगा ले ले तो फिर तो...।

भोले शंकर की यूनिट में ऐसे तमाम लोग थे, जो पहले भी मनोज तिवारी की फिल्मों की शूटिंग में शामिल रह चुके हैं। हरेक के पास मनोज तिवारी से जुड़े अपने अपने किस्से थे। भोजपुरी इंडस्ट्री में मनोज तिवारी को लोग भैयाजी कहके बुलाते हैं। सेट पर हीरो का सम्मान होना भी चाहिए। वैसे तो भोले शंकर के लिए मनोज तिवारी को साइन करने से पहले मैं उन्हें मनोज ही कहकर बुलाता था लेकिन जैसे ही उनसे एक निर्देशक और एक कलाकार का रिश्ता रस्मी हुआ, मैंने मनोज को मनोज जी कहना शुरू कर दिया। मनोज को भी शायद इसमें आनंद आ रहा होगा कि कल तक जो शख्स फोन पर उन्हें खरी खोटी सुनाता था, वो आज उन्हें मनोज जी कहकर बुला रहा है, लेकिन मैंने ऐसा इसलिए किया ताकि हीरो को हीरो का सम्मान मिले और फिल्म के सेट पर उन्हें अटपटा ना महसूस हो। खैर, हम लोग चार दिसंबर की शाम शूटिंग खत्म करके अपने होटल लौटे और तैयारी करने लगे अगले दिन की शूटिंग की। अगले दिन हमें भोले के बड़ा होने के बाद गांव लौटने, मां- गुरुजी से मिलने और पारवती से बातचीत के सीन शूट करने थे। और रात में करनी थी एक गाने की शूटिंग। लेकिन इन सीन के लिए ज़रूरी मनोज तिवारी और निराली अब तक होटल नहीं पहुंचे थे। फिर एक बार फोन किया तो मनोज ने वादा किया कि अगले दिन शूटिंग होगी और वो अगले दिन लखनऊ में होंगे। मैं मन ही मन सोचता रहा कि इतना कोहरा पड़ रहा है ये लोग कैसे आएंगे।

सब लोग खाना खाकर अपने अपने कमरों में सोने चले गए। लेकिन मुझे नींद नहीं आ रही थी। तड़के करीब पांच बजे हॉर्न की आवाज़ सुनाई दी। दो गाड़ियां होटल के अहाते में आकर रुकीं। मनोज तिवारी, मोनालिसा, निराली नामदेव सब इलाहाबाद से सड़क मार्ग से घने कोहरे के बावजूद लखनऊ पहुंच चुके थे। इसे कहते हैं समय की पाबंदी। मनोज तिवारी के बारे में भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में मशहूर है कि वो वक्त के पाबंद नहीं हैं। लेकिन, भोले शंकर की शूटिंग के पहले ही दिन जिस साहस के साथ वो पूरी रात जागते हुए इलाहाबाद से लखनऊ पहुंचे, मैं मनोज का कायल हो गया। मनोज तिवारी के बारे में भोजपुरी इंडस्ट्री में और भी कई तरह के मिथक चलते हैं, उन पर फिर कभी बात होगी। तीनों कलाकार सीधे अपने अपने कमरों में गए। होटल के स्टाफ को ये हिदायत पहले से थी कि इन्हें कतई डिस्टर्ब ना किया जाए। अगले दिन सबेरा होने पर यूनिट के सीनियर लोग जागे तो ये जानकर दंग रह गए कि मनोज तिवारी पूरी रात घने कोहरे के बीच सड़क के रास्ते इलाहाबाद से लखनऊ आ चुके हैं।

खैर मैंने सबसे तुरंत तैयार होने को कहा और सीधे लोकेशन पर पहुंचने की बात कही। प्रोड्यूसर के बेटे गौरव को मैंने होटल पर छोड़ा और निकल लिया लोकेशन पर सारी तैयारी ठीक करने के लिए। लोकेशन पर सब कुछ ठीक हो गया तकरीबन उसी समय मनोज तिवारी तैयार होकर लोकेशन पर पहुंच गए। फिल्म भोले शंकर का जो पहला सीन मनोज ने शूट किया वो था उनका बस से उतर कर मां और गुरूजी से मिलना। गुरुजी बने राजेश विवेक और मां का रोल कर रहीं शबनम कपूर को मैं पूरा काम समझा चुका था। मनोज तिवारी के आते ही मैं उनके साथ सीन डिस्कस करने बैठा ही था कि लुधमऊ गांव के प्रधान ने हंगामा कर दिया। प्रधान का कहना था कि बिना उनकी इजाज़त गांव में शूटिंग नहीं हो सकती। पंचायती राज का ये नया नमूना था। पिताजी हमारे भी करीब 15 साल अपने गांव के प्रधान रहे लेकिन कभी उन्होंने ना तो गांव को, ना गांव के तालाब को और ना ही गांव के स्कूल पर अपना कोई हक समझा। पालक में जब मालिक की भावना आने लगे तो ऐसा ही होता है। प्रधान ने पूरी कोशिश की शूटिंग रोकने की। कहां तो मैं शूटिंग में बिज़ी था, और कहां शुरू हो गया एक नया बवाल। मैं लोकेशन से उठकर वहां गया जहां प्रधान बैठे थे। पहले तो मैं प्यार से उन्हें समझाता रहा। उन्हें लगा कि मुंबई का कोई डायरेक्टर है, उनकी घुड़की में आ जाएगा और शूटिंग रुकते देख तुरंत रकम ढीली करेगा। बाद में मुझे ये भी पता चला कि प्रधान को पूरी घुट्टी फिल्म के ही एक प्रोडक्शन के बंदे ने पिलाई थी। सीधी उंगली घी ना निकलते देख, मैंने प्रधान से अवधी में बात करनी शुरू कर दी। मेरा घर पड़ोस के ज़िले उन्नाव में ही है, ये भी प्रधान को तब ही पता चला। इसके आगे प्रधान के साथ क्या कुछ हुआ, वो यहां लिखने लायक नहीं है।

मैं वापस लोकेशन पर लौटा तो मनोज तिवारी को सहायक निर्देशक अजय आज़ाद सीन समझा चुके थे। मनोज को आदतन सीन की कुछ लाइनें ठीक नहीं लग रही थीं। तो मैंने उनसे कहा कि सीन आप समझ लीजिए और जो भाव मुझे चाहिए वो दे दीजिए। लाइनों में अटकने की ज़रूरत नहीं है, वैसे भी मनोज के उस सीन में ज़्यादा डॉयलॉग्स थे नहीं। मनोज को एक बात खटक रही थी और वो ये कि अगर ये उनका फिल्म में पहला सीन है तो बहुत हल्का है। हीरो की एंट्री तो थोड़ी दमदार होनी चाहिए। मनोज की बात में दम था, लेकिन मैंने भी पहले से ही सोच रखी थी भोजपुरी के सुपर सितारे की धमाकेदार एंट्री। तो कैसी है फिल्म भोले शंकर में भोजपुरी के सुपर सितारे मनोज तिवारी की एंट्री, जानने के लिए पढ़ते रहिए, कैसे बनी भोले शंकर?


कहा सुना माफ़,

पंकज शुक्ल
निर्देशक - भोले शंकर

7 टिप्‍पणियां:

  1. अत्र कुशलं तत्रास्तु ......आप शब्दों के जादूगर है .कौन से शब्द का कहा कितना प्रभाव होगा आप बेह्तर जानते है...ऐसे ही लिखते रहिये और आगे बढ़ते रहिये हम छोटो की शुभकामनाये आपके साथ है....

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  2. कितना अच्छा लिख लेते हैं। सजीव एवं जीवंत चित्रण।

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  3. पंकज जी, आपके लेखन में पाठक को अंत तक बान्धे रखने की अद्भुद कला है.

    आभार

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  4. संगीता जी, पीयूष और कामोद भाई,

    सराहना के लिए आप सभी का हार्दिक आभार। बस स्नेह बनाए रखिए।

    कहा सुना माफ़,
    पंकज

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  5. बेहतरीन चल रहा है भाई-पढ़वाते चलिए.

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  6. पंकज, फिल्म तो जबरदस्त टाईप की लग रही है, ऐसा लगता है दो भाईयों की कहानी है। जुल्म के खिलाफ लड़ने के लिये भाईयो के विचार आपस में नही मिलते।

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  7. समीर भाई, तरुन भाई,

    फिल्म की मेकिंग के बारे में लिखना कुछ कुछ वैसा ही एहसास दे रहा है, जैसे मां अपने बच्चे के जन्म के समय की प्रसव पीड़ा को याद करती है। उसे दर्द तो याद आता है, लेकिन एक नए जीवन को पोसने का संतोष भी चेहरे पर रहता है।

    स्नेह बनाए रखें...
    पंकज

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