शुक्रवार, 31 अगस्त 2007

...हुनर दिखाया तो दस्ते हुनर भी जाएगा (दुबई मुशायरा- 3)

आज की शाम मंज़र भोपाली साहब के नाम!

मंज़र भोपाली
16.08.2007 - दुबई

वक्त के तकाजों पर ग़र हम जिए होते
क्यूं हमारे होठों पर मर्सिए होते

आपकी जगह होते हम जो बागबां अब तक
हमने सारे फूलों में रंग भर दिए होते

इज़्ज़तों से से बढ़कर हमको जान प्यारी है
वर्ना हमने जिल्लत के घूंट क्यूं पिए होते

सितमगरों का ये फरमान, ये घर भी जाएगा
ग़र मैं झूठ ना बोला, तो ये सिर भी जाएगा

बनाइए ना किसी के लिए भी ताजमहल
हुनर दिखाया तो दस्ते हुनर भी जाएगा

ये शहर वो है वफ़ाओं को मानता ही नहीं
यहां तो रायगा ख़ून ए ज़िगर भी जाएगा

ये मांएं चलती हैं बच्चों के पाओं से जैसे
उधऱ ही जाएंगी, बच्चा जिधर भी जाएगा

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उस घर के किसी काम में बरक़त नहीं होती
जिस घर में भी मां बाप की इज्ज़त नहीं होती

हम मारे गए तेरी मोहब्बत के भरोसे
दुश्मन कोई होता तो ये हालत नहीं होती

इस क़ातिले आलम से ना रख अमन की उम्मीद
जल्लाद की आंखों में मुरव्वत नहीं होती

लगता है मुझे यूं तुझे छूना भी गुनाह है
जबतक तेरी आंखों की इजाज़त नहीं होती


कोई भी रुत हो सफ़र को निकलना पड़ता है
शिकम के वास्ते कांटों पर चलना पड़ता है

ज़रा सा वक़्त गुजर जाए गफ़लतों में अगर
तो अच्छे अच्छों को फिर हाथ मलना पड़ता है

ये ज़िंदगी की हक़ीक़त नसीब है सबका
कि शाम होते ही सूरज को ढलना पड़ता है

जारी...

दीपिकाएं बुझती नहीं हैं.....

शायद ज़ी न्यूज़ की तत्कालीन संपादक अलका सक्सेना जी ने वो कॉल मुझे मॉरीशस से की थी, बस दो लाइनें और एक सवाल। “हम लोग यहां मार्केटिंग और सेल्स की टीम के साथ हैं। तुमने आज तक के मूवी मसाला से टक्कर के लिए जो बोले तो बॉलीवुड का कॉन्सेप्ट तैयार किया, वो अच्छा है। कितने दिन की नोटिस पर काम शुरू हो सकता है?” अलका जी जानती थी कि मेरा जवाब क्या होगा, लेकिन इसी भरोसे के साथ उनका बड़प्पन भी छुपा था और वो कि हर फैसला अपने सहयोगियों को भरोसे में लेने के बाद लेना। मैंने कहा कि वर्किंग हैंड्स मिलने के दो दिन बाद।

वो लौटीं और अगले दिन मेरी डेस्क पर एक बेहद खूबसूरत लेकिन घरेलू सी लगने वाली लड़की पहुंची। नाम-दीपिका तिवारी। परिचय- ज़ी सिने स्टार्स की खोज की फाइनलिस्ट। ख्वाहिश- मुट्ठी बढ़ाकर जल्द से जल्द आसमान समेट लेना। बोले तो बॉलीवुड की वो सबसे कामयाब एंकर बनी। उसके फैन्स भी खूब थे। खाड़ी देशों से अक्सर उसकी तारीफ के ख़त आते। मेहनत भी उसने खूब की और काम सीखने की लगन ने उसे जल्द ही एक अच्छा रिपोर्टर और कॉपी राइटर बना दिया।

दो साल पहले का अपना जन्मदिन मुझे अब भी याद है जब उसने मुझसे बोले तो बॉलीवुड की पूरी टीम को फिल्म दिखाने को कहा। मैंने दिखाई भी और अगले दिन वो पूरी टीम से चंदा करके मेरे लिए एक सुंदर सा पुलोवर बतौर बर्थडे गिफ्ट खरीद लाई। फिर पता नहीं उसे क्या हुआ, काम में उसका मन नहीं लगता। मैंने एक दिन डांटा तो एचआर तक शिकायत कर आई। फिर लौटकर माफी भी मांगी। शायद जो ख्वाब उसने देखे थे, उनमें रंग नहीं उतर पा रहे थे। एक दिन आकर बताया कि उसे किसी से प्यार हो गया है। और वो दोनों शादी करने वाले हैं। लड़के का नाम भी बताया। और फिर दो दिन बाद ही रात करीब 11 बजे रोते हुए फोन किया कि सर मुझे ले जाइए। उसका अपने ब्वॉय फ्रेंड से झगड़ा हो गया था और वो बारिश में नोएडा की किसी सड़क पर अकेली खड़ी थी। मैंने समझाया कि प्यार में फैसले प्यार से ही लिए जाते हैं, गुस्से में नहीं। किसी तरह दोनों में समझौता हुआ।

...लेकिन इस बार दीपिका का फोन नहीं आया। बस ख़बर आई कि वो दुनियादारी से हार चुकी है।

दीपिका, दूसरी लड़कियों के लिए एक मिसाल बनकर उभरी थी। लेकिन इससे पहले कि उसकी रौशनी फैल पाती, उसे ग्रहण लग गया। ग्रहण जल्द से जल्द ऐश की ज़िंदगी जीने का। इसीलिए उसने फिर से मुंबई की राह पकड़ी, फिर वापस दिल्ली लौटी। लेकिन इस बार उसके जीने का फलसफा बदला हुआ था। ज़िंदगी उसके लिए एक स्टेशन नहीं ट्रेन बन चुकी थी। वो हर फासला जल्द से जल्द पूरा कर लेना चाहती थी, बिना ये देखे कि आगे पटरियां हैं भी या नहीं। गाड़ी ने हिचकोले खाए, लेकिन वो नहीं संभली। वो अब ग्लैमर की दुनिया से दूर रहकर अपनी खुद की दुनिया बसाने को बेताब थी। वो हार्डकोर न्यूज़ एंकर बनना चाहती थी, लेकिन ग्लैमर का ठप्पा उससे उतरा नहीं। वो बरखा दत्त बनना चाहती थी, लेकिन दुनिया ने उसे दीपिका तिवारी से ऊपर उठने नहीं दिया।

दीपिका हारी नहीं, उसे हरा दिया गया। दीपिकाएं बुझती नहीं हैं, या तो तेज़ हवा का कोई झोंका उन्हें विदा कर देता है, या फिर तेल साथ छोड़ देता है। और पीछे अंधेरे में रह जाता है तो बस एक सवाल? काश, दीपिका ने फिर फोन किया होता? काश, कोई तो होता ऐसा जिससे वो अपना हर दुख कह पाती? तब शायद दीपिका की रौशनी आज भी कोई कोना रौशन किए होती।

दीपिका तुम जहां भी रहो, जगमगाती रहो...

शुक्रवार, 24 अगस्त 2007

दुबई मुशायरा (2)

दुबई मुशायरे में एक बेहद उम्दा शायर को सुनने का इत्तेफाक़ हुआ और यकीन मानिए जो भी मुशायरे में था, इन साहब की शायरी का कायल हुए बिना ना रह सका। आप भी गौर फरमाइए -

अज़्म बेहज़ाद
16.08.2007 - दुबई

सबको एहसासे तहफ्फुज़ ने हिरासां कर दिया
सब अपने सामने दीवारें चुनना चाहते हैं...
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कहां गए वो लहजे, दिल में फूल खिलाने वाले
आंखें देख के ख्वाबों की ताबीर बताने वाले

कहां गए वो रस्ते जिनमें मंज़िल पोशीदा थी
किधर गए वो हाथ मुसलसल राह दिखाने वाले

कहां गए वो लोग जिन्हें जुल्मत मंज़ूर नहीं थी
दिया जलाने की कोशिश में खुद जल जाने वाले

ये खलवत का रोना है जो बातें करती थीं
ये कुछ यादों के आंसू है दिल पिघलाने वाले

किसी तमाशे में रहते तो कब के गुम हो जाते
एक गोशे में रहकर अपना आप बचाने वाले

हमें कहां इन हंगामों में तुम खींचे फिरते हो
हम हैं अपनी तनहाई में रंग जमाने वाले

इस रौनक में शामिल सब चेहरे हैं खाली खाली
तनहाई में रहने वाले या तनहा रह जाने वाले

अपनी लय से ग़ाफिल रहकर हिज़्र बयां करते हैं
आहों से नावाकिफ़ हैं ये शोर मचाने वाले

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कितने मौसम सरगर्दां थे
मुझसे हाथ मिलाने में

मैंने शायद देर लगा दी
खुद से बाहर आने में

एक निग़ाह का सन्नाटा है
एक आवाज़ का बंजारापन

मैं कितना तन्हा बैठा हूं
कुरवत के वीराने में

बिस्तर से करवट का रिश्ता
टूट गया एक याद के साथ

ख्वाब सरहाने से उठ बैठा
तकिए को सरकाने में

आज उस फूल की खुशबू मुझमें
मैहम शोर मचाती है
जिसने बेहद उजलत बरती
खिलने और मुरझाने में

बात बनाने वाली रातें
रंग निखारने वाले दिन
किन रस्तों में छोड़ आया मैं
उमर का साथ निभाने में

...जारी

गुरुवार, 23 अगस्त 2007

दुबई मुशायरा

पहले तो इस बात की माफ़ी कि अरसे से यहां कुछ लिख नहीं पाया। दरअसल, पहली फिल्म की बात फाइनल होने के बाद से उसी के काम में लगा रहा। हिंदी फिल्म अब अगले साल होली के आसपास शुरू होगी, पहले एक भोजपुरी- मिथुन चक्रवर्ती और मनोज तिवारी के साथ। पिछले हफ्ते दुबई में था हिंदी फिल्म के लिए कुछ रिसर्च करने और लोकेशन देखने के लिए, वहीं एक बेहतरीन मुशायरा सुनने को मिला। अगले एक दो दिन तक उसी मुशायरे की शायरी आपतक पहुंचाने की कोशिश रहेगी।

राहत इंदौरी
16.08.2007 - दुबई


सरहदों पर बहुत तनाव है क्या
कुछ पता करो चुनाव है क्या

खौफ़ बिखरा है दोनों सम्तों में
तीसरी सम्त का दबाव है क्या

सिर्फ खंजर ही नहीं आंखों में प्यार भी है
ऐ खुदा दुश्मन भी मुझे खानदानी चाहिए

मैं अपनी खुश्क़ आंखों से लहू छलका दिया
एक समंदर कह रहा था मुझको पानी चाहिए

राहत इंदौरी ने मुशायरे में कुछ फुटकर शेर भी पढ़े। एक झलक उनकी भी।

किसने दस्तक दी ? कौन है ?
आप तो दिल में हैं, बाहर कौन है ?

शाखों से टूट जाएं वो पत्थर नहीं हैं हम
आंधियों से कह दो ज़रा औकात में रहें

खुश्क़ दरियाओं में थोड़ी रवानी और है
रेत के नीचे थोड़ा पानी और है...

उस आदमी को बस एक धुन सवार रहती है..
बहुत हसीन है दुनिया, इसे ख़राब कर दूं

मुझमें कितने राज़ हैं बतला दूं क्या
बंद एक मुद्दत से हूं खुल जाऊं क्या

और चलते चलते मज़ाहिया शायर सागर खय्यामी की एक भौं भौं...

सागर खय्यामी
16.08.2007 - दुबई


ये बोला दिल्ली के कुत्ते से गांव का कुत्ता
कहां से अदा सीखी तूने दुम दबाने की

वो बोला दुम दबाने को कायरी न समझ
जगह कहां है दुम तलक हिलाने की